Jan 29, 2016
Thought of the day
परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से
ध्यान के मुख्य अंग
ध्यान के लिए कुछ निवेदन आप सब की सेवा में । ध्यान साधकजनों हमेशा बैठ के, आँख बंद कर के, रीड़ की हड्डी सीधी एवं बिना हिले जुले।
ध्यान कभी खड़े नहीं, खुली आँख नहीं, लेट के नहीं, चलते फिरते नहीं । ध्यान हमेशा एक स्थान पर बैठके। अब हम उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी हैं । अतैव ध्यान एक स्थान पर एक समय। हमेशा बैठके, आँख बंद करके, रीड़ की हड्डी बिल्कुल सीधी, गर्दन बिल्कुल परमात्मा के आमने सामने।
क्योंकि बिना हिले जुले, इसलिए ध्यान हमेशा थोड़े समय के लिए। दस पंद्रह मिनट का ध्यान पर्याप्त होता है। परमेश्वर की कृपा हो जाए तो आधे धण्टे के लिए भी , सुबह शाम ध्यान की अवधि रखी जा सकती है । और अधिक कृपा हो जाए तो और भी अधिक समय के लिए, परमेश्वर अपने ध्यान में बिठा सकते हैं ।
ध्यान का शुभारम्भ कैसे होता है? परमेश्वर को अपने अंग संग मानके, झुके प्रणाम करना । भीतर भी बाहर भी , इधर भी, उधर भी विराजमान परमात्मा । ऐसे को कहते हैं अंग संग मानना। फिर सीधे होकर बैठ जाना, रीड़ की हड्डी सीधी और त्रिकुटी स्थान को देखना । फिर मन ही मन राम राम राम करिएगा। सतत राम राम । संसारी विचार आए तो रोकिएगा ।
यह बहुत लम्बी यात्रा है। निराश नहीं होना , हताश नहीं होना। सफलता न मिले तो भीतर विराजमान परमात्मा से प्रार्थना कीजिएगा। परमेश्वर क्या मेरी ज़िन्दगी में वह दिन कभी नहीं आएगा जब मुझे तेरे ध्यान की सच्ची झाँकी देखने को मिल सकेगी ? एक झलक तो दिखा कि यह ध्यान क्या होता है । मुझे वह रस मिल जाए, मुझे वह स्वाद मिल जाए।तो फिर मैं उस स्वाद को चखने के लिए सदा लालाइत रहूँ ।
आप सब साधकों से निवेदन है कि सब कुछ भूल जाओ , लेकिन ध्यान का नियम निभाना नहीं भूलना । आप नहीं जानते कि ध्यान एक साधक के जीवन में कितना महत्वपूर्ण अंग है। परमेश्वर के दया का द्वार इसी समय खुलता है । जब भी परमात्मा ने किसी को कुछ देना होता है , तो वह ध्यान अवस्था में देता है, क्यों ? क्योंकि उस समय आपकी तार परमेश्वर के साथ जुड़ी होती है ।
शुभ व मंगल कामनाएँ । ध्यान का नियम कभी नहीं निभाना भूलना , फिर नहीं तो पश्चात्ताप करते रहोगे।
धन्यवाद