Jan 31

Jan 31,2016

Thought of the day

परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से

ध्यान की महत्ता

बैठ जाओ जी सब सीधे होकर ध्यान के लिए । पीठ करें सीधी , गर्दन रखें परमात्मा के आमने सामने, आँख बंद करें, देखें त्रिकुटी स्थान को, शाबाश ! देखते रहो। ध्यान इधर उधर जाए, पुन: दृष्टि को बिंदी वाली जगह पर लाओ ।

ध्यान का शुभारम्भ होता है, हिलो मत, सोचो मत, देखो मत, सुनो मत , बोलो मत ।

मन में प्रश्न उठता है, हमारी साधना तो जप साधना है, हमें असंख्य बार नित्य निरन्तर राम राम जपने को कहा जाता है। ध्यान को इतनी प्रमुखता क्यों दी जा रही है ?

भक्तजनों कोई शक नहीं कि हमारी साधना जप प्रधान ही है। जप हम इतना कर नहीं पाते कि हमारा जप ध्यान बन जाए, सिमरन बन जाए। जप आपको पराकाष्ठा कब देगा, जब आपका जप ध्यान में परिवर्तित हो जाएगा । निर्विचार, निर्विकार हो रहा है तो आप ध्यानस्थ हैं । आपको पता नहीं, अपनी ओर से तो आप जप ही कर रहे हैं लेकिन आपको ध्यानवस्था लाभ हो गई ।यदि आपका जप निरन्तर चलता रहता है , अजपा हो गया है, चौबीसों घण्टों चलता रहता है, आप निर्विचार हैं आप निर्विकार हैं , तो आप समझ लीजिए कि आप सहज समाधि में हैं । यह सब बातें आपको इसलिए स्पष्ट की हैं कि हम तो जाप के साधक हैं , ध्यान को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है ।

जप निस्सन्देह उत्तम है, पर लक्ष्य अंतिम फल तब देगा जब ध्यानावस्था लाभ हो जाएगी जप करते करते, जब समाधि अवस्था लाभ हो जाएगी जप करते करते ।

हर साधक के सामने विघ्न बाधाओं का कोई अंत नहीं है। कौन इन विध्न बाधाओं को दूर करेगा, गुरू के अतिरिक्त । संत महात्मा जिन्होंने प्रभु की प्राप्ति भी कर ली हो, वे भी ध्यान को छोड़ते नहीं । वे क्यों नहीं छोड़ते ? जो साधक उस समय ध्यान में बैठे हुए हैं , उनकी विघ्न बाधाएँ अपने ध्यान से वे दूर कर सकें । उनको ऊपर उठा सकें । उनको भीतर मोड़ सकें।उनको और गहरा ले जा सकें ।

कोशिश करें कि कोई संसारी विचार न आए इस वक्त। जब आप जल्दी जल्दी राम राम बोलते हैं या लम्बा राम बोलते हैं , आश्रय यही है कि परमेश्वर का स्मरण इस तरह बना रहे कि मन को संसार में जाने का अवसर ही न मिले ! यूँ कहिए ध्यान का समय हमारे लिए संसार एवं संसारिकता का विस्मरण का समय, भूलने का समय एवं परमेश्वर का स्मरण । क्या मात्र १०-१५ मिनट के संसार के विस्मरण से काम हो जाएगा ? नहीं ! इस समय सीखना है ताकि दिन भर दिन या रात ऐसी अवस्था लाभ रहे । तब बात बनेगी। तब पूर्ण लाभ होगा ।

ध्यान का समय, मन को सिधाने का समय। हम मन को समझा रहे हैं, डाँट रहे हैं, प्यार कर रहे हैं, ताकि वह हमारे अनुसार चलना शुरू हो जाए । आज तक तो वह हमें नाच नचाता है। अनेक जन्मों से ऐसा कर रहा है। ऐसा मत सोचो दोष मन का है। नहीं ! दोष हमारा है जिन्होंने अपने मन को बिगाड़ा । यह वही मन है जो सतयुग में आपका था, वह अब भी साथ चल रहा है। शरीर बदल रहे हैं , सतयुग के बाद अन्य युग बीच में आए , कलियुग चल रहा है, मन वही है । हम इसे बिगाड़ते जा रहे हैं और इसे सिधाने में बड़ी कठिनाई आ रही है।

कोशिश करें कि जप ऐसे चले कि कोई संसारिक विचार न आए । आए तो उसे रोकिए , जप की ओर मोड़िए ।

मैं भी आपजी के साथ अब ध्यान में बैठूँगा ।
रामममममममममममममममममममममम

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