Feb 25

Feb 25, 2016

Thought of the day

परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से

कर्म

परमेश्वर से डरने की ज़रूरत नहीं । शैतान से भी डरने की ज़रूरत नहीं । अपनी करनी से डरने की ज़रूरत है। कितना बलवान है कर्म । बच्चा बच्चा जानता है कि परमेश्वर सर्वसमर्थ है। हम ऐसा मानते हैं कि शास्त्र उससे बडा नहीं।
परमेश्वर सर्वसमर्थ होते हुए भी ऐसा नहीं कर सकता कि किसी ने शुभ कर्म किए हैं, उसे अशुभ फल दे .. वह नहीं कर सकता । वह सर्वशक्तिमान है, कुछ भी कर सकता है, पर किसी ने भला काम किया है उसके बदले उसे दुख दे.. ऐसा वह नहीं कर सकता । और किसी ने पाप कर्म किया है तो उसके बदले में उसे सुख दे दे .. ऐसा भी वह नहीं करता। तो स्पष्ट है न कि कर्म फल कितना बलवान है ।

यह परमात्मा का विधान है कि दुख देकर सुख की इच्छा रखनी यह ईश्वर का विधान नहीं है। आप अपने परिवार को दुखी रखते हो , परिवार आपके कारण दुखी है और बदले में आप सुख की अपेक्षा करो, यह परमात्मा का विधान नहीं है। वह आपकी भक्ति आपकी सेवा स्वीकार नहीं करेगा ।
इस विधान का वह पूरा आदर करता है । किसी का दिल जला कर, जहाँ आपकी इच्छा है कि इसका दिल जले , इस प्रकार से आपने किसी को दुख दिया है, दिल जलाया है, उसके बदले में आपको सुख मिल जाए, यह परमात्मा का विधान नहीं है। फल बदल नहीं सकता परमात्मा , इससे तो यही लगता है कि कर्म फल सबसे बड़ा है । लेकिन फल भी तो कर्म के अधीन है , इसलिए यही स्वीकार करना होगा कि कर्म बहुत बलवान है । अत: कर्म करो ऐसे जैसे हो फल की माँग ।

फल तरह तरह का है । जैसे आज रात आपने कोई गंदी चीज खा ली , हो सकता है मध्य रात्री ही आपको उठना पड़े , उल्टी के लिए , दस्त लग जाएँ। यह उस कर्म का तत्काल फल है ।
आज आपने परीक्षा दी, उसका result तीन महीने बाद मिलने वाला है, तो तीन महीने बाद कर्म फल । फल की अवधि परमेश्वर के अधीन ही है। कब कहाँ कितना क्या फल देना है, सब उसके अधीन है ।
एक पौधा है । वह कुछ तीन महीने के बाद फल देता है । दूसरा पौधा छ महीने के बाद , तीसरा साल के बाद चौथा पाँच साल के बाद । यह तो यहाँ की चीज़ें हो गई ।

कुछ ऐसी चीज़ें भी हैं जिनका फल इस जन्म में सम्भव नहीं , उसके लिए अगला जन्म लेना पड़ेगा । और यह सत्य है, यह स्पष्ट दिखाई देता है हमें ।

परमेश्वर सज़ा नहीं देता देवियों और सज्जनों । उसके यहाँ अत्याचार, अन्याय नहीं है । वह मात्र हमारे लिए व्यवस्था करता है कि जो किया है, उसके फल का भुगतान इसका हो जाए ताकि इसका कर्म कटे । यह कर्म बोझ उठाके रखेगा तो इसके जन्म मरण का चक्कर छूटेगा नहीं । यह सत्य है कि हम सब यहां अपने कर्मों का ऋण उतारने के लिए आए हुए हैं। उतर गया तो यहीं हिसाब किताब खत्म, और ले लिया तो अगले जन्म की तैयारी । संत महात्मा समझाते हैं कि जो लिया हुआ है उसी को उतारो । और न लो, ताकि यह जन्म मरण का चक्कर , जो इतनी पीड़ा देने वाला है , यहीं खत्म हो जाए ।

धन्यवाद

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