Feb 27

Feb 27, 2016

Thought of the day

परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से

कर्मयोग

हर कर्म क्रिया है पर हर क्रिया कर्म नहीं है। व्यक्ति नन्हा शिशु है बड़ा होता है, इसमें क्रिया तो है पर कर्म कोई नहीं । बचपन से जवानी फिर बुढ़ापा , क्रिया तो हो रही है पर कर्म नहीं । हृदय धड़कता है, क्रिया तो है पर कर्म नहीं ।
क्रिया कर्म तब बनती है जब उसमें कर्तापन ( doer ship) आ जाता है। यही कर्म बंधन का कारण बन जाता है। इसे निर्बंध करना ही कर्मयोग है। जहाँ कर्म के साथ यह होगा, मैंने यह कर दिया, मैंने वह कर दिया, मैं यह करवा रहा हूँ , इत्यादि इत्यादि … जहाँ आपने अपने कर्तापन की stamp लगादी, आपके मुख से निकल गया ” मैं” बस , वही कर्म बंधन का कारण बन जाएगा।

हम सब कर्मयोगी हैं , हम सब को कर्मयोगी ही बनना है। भक्ति हमें बल देती , समझ देती है, समर्थ देती है । स्वामीजी महाराज कहते हैं भक्ति युक्त कर्मयोगी बनिएगा। संत महात्मा समझाते हैं कि हर व्यक्ति के पास समय है समझ है, सामग्री है, समर्थ है। यदि व्यक्ति इनको संसार की ओर मोड़ देता है तो कर्मयोग कहा जाता। परमात्मा की ओर मोड़ दिया जाता है तो भक्तियोग कहा जाता है। प्रकृति की ओर मोड़ दिया जाता है तो ज्ञानयोग कहा जाता है।अपनों की ओर मोड़ दिया जाता है तो इसे जन्म मरण का योग कहा जाता है।

कर्म बंधन का कारण तब है जब इसे समझ से न किया जाए। यदि इसे समझ कर किया जाए तो यह मोक्ष का साधन है। कर्म बीज है जो अंतकर्ण में बीज दिया जाता है जो कालान्तर में विशाल वृक्ष बन जाता है जिसपर तरह तरह के फल लगते हैं। फल इस पर निर्धारित होता है कर्म के पीछे क्या भावना है ।

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