March 29

 

Match 29, 2016

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March 29, 2016

Thought of the day

परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराजश्री
कथा प्रकाश
आत्मसत्ता

सूर्योदय का शुभ समय था। समाधि से उतर कर जब परमहंस ने अपने नयन पसार कर देखा तो उसको अपने समीप बैठा हुआ एक बौध भिक्षु दीख पड़ा । कुशल क्षेम पूछने के पश्चात् बौद्ध संत बोला – परमहंस जी ! आत्मा की अमरता का वर्णन कीजिए।

परमहंस ने कहा – साधु जी ! आत्मा वस्तु है , वस्तु का नाश कभी नहीं होता । जो पदार्थ बनता है वह कई कारणों से बनता है और अन्त में बिगड़ कर अपने कारणों में लय हो जाता है । आत्मा कार्य भाव रहित , नित्य वस्तु है । इस कारण इसमें विकार नहीं होता । आत्मा विकार रहित नित्य वस्तु है , इस कारण वह अमर है।

जन्म मरण , यह अवस्थाएँ हैं । ये अवस्थाएँ ऐसे ही बदलती रहती हैं जैसे एक ही जन्म में बाल्यावस्था , युवावस्था और वृद्धावस्था , यह तीन अवस्थाएँ बदला करती हैं ।
अवस्था के मिट जाने पर आत्मा नहीं मिटता । वह अमर ही बना रहता है । जैसे यह अवस्थाएँ तीन हैं , एक अवस्था में दूसरी नहीं रहती परन्तु इन तीनों का साक्षी एक ही बना रहता है , ऐसे ही जन्म मरणादि अवस्थाएँ बदलती रहती हैं और इनका द्रष्टा आत्मा नहीं बदलता ।

आत्मा का अपना स्वरूप अमृत और अविनाशी है। इसके स्वरूप में मृत्यु नहीं है । आत्मा जहाँ होता है वहाँ इसका अमृत जीवन बना रहता है । किसी बालक की पाठशाला में अनुपस्थिति उसकी मृत्यु नहीं मानी जाती । इसी प्रकार एक देह में आत्मा का न होना उसकी मृत्यु नहीं है ।

 

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