March 31

March 31,2016

Thought of the day

परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराजश्री

कथा प्रकाश

बंध व मोक्ष

मुक्ति तो आत्मा के स्वरूप का शुद्ध हो जाना है। आत्मा के स्वरूप में पाप नहीं है ; दोष नहीं है , दुष्कर्म नहीं है और दुर्वासना भी नही है । यह रोग तो इसको प्रकृति के संयोग से
लगा हुआ है। प्रकृति के संयोग से उसके स्वभावों को, परिवर्तनों को और उत्पत्ति नाश आदि को आत्मा ने अपने ऊपर आरोपित कर – लगा – लिया है ।

इसी कारण , मिथ्या ज्ञान वश यह समझता है कि मैं देह हूँ, मैं इनंद्रियां हूँ , मैं गोरा हूँ , मैं काला हूँ , मैं जन्मता हूँ और मरता हूँ । वास्तव में सारे परिणाम और परिवर्तन प्रकृति में होते रहते हैं परन्तु संयोग वश उनको आत्मा अपने में मान लेता है ।

बन्ध की गाढतम ग्रंथी यही है । यह ग्रन्थी जड़ चेतन के विवेक – पृथक जानने – से नष्ट होती है । इस अज्ञान ग्रन्थि के नाश हो जाने से आत्मा धुले हुए वस्त्र की भाँति अपने स्वरूप में शुद्ध हो जाता है । प्रकृति के गुणों से मुक्त हो जाना , कर्म संस्कारों को नष्ट कर देना और अपने शुद्ध स्वरूप को प्रकट कर लेना मोक्ष है । मोक्ष में दुख मात्र का अभाव होता है और आत्मा की अपने स्वरूप में तथा ब्रह्म में स्थिति हो जाती है ।

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