राम इच्छा 

Aug 21, 2016


परम पूज्य परम श्रेध्य डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री , मेरे गुरूदेव कहते हैं कि जो राम इच्छा में रहना सीख गया उसके जीवन का भार स्वयं प्रभु उठाते हैं । 

क्या मतलब है “राम इच्छा” का? कब इसका प्रयोग होता है? हम सब साधकों ने “राम इच्छा ” कहना, गुरूजनों की वाणी कहनी हमने सीख ली है। बहुत सुंदर ! पर हमें यह जीवन में कैसे उपयोग में लाना है ! कुछ उदाहरणों से साथ गुरूजन सिखाएँगे । 

देश के किसी प्रान्त में भूकम्प आ गया है । तबाही हो गई है । एक साधक बोले – सब राम इच्छा । दूसरे साधक बोले – हे परमेश्वर यह क्या किया तूने ! तू ही तो है ! पर यह क्यों कर दिया तूने ? तीसरे साधक बोले – सब तेरी इच्छा मेरे राम! दया कर ! तू तो कभी दुख दे ही नहीं सकता। तुझे दुख देना ही नहीं आता! हे कृपा निधान सब पर कृपा कर। दया कर। यह हमारे कर्म हैं ! हमें क्षमा कर। 

रास्ते में जा रहे हैं । किसी का accident हो गया । व्यक्ति लहू लुहान पड़ा हुआ है । एक साधक गुज़र रहे थे  बोले- सब राम इच्छा ! दूसरे आए कहा – पुलीस केस है , कौन मुसीबत ले। तीसरे साधक बस देख कर चले गए। चौथे साधक आए- अपने स्कूटर पर जैसे तैसे बिठाया और हस्पताल ले गए। पाँचवे साधक – गाडी से गुज़र रहे थे। भीड़ से भाँपा कुछ गड़बड़ है। मन ही मन परमेश्वर से अरदास कर दी । 

 आप किसी कम्पनी में काम करते  है । वहाँ आप किसी महिला के साथ अन्याय होते देखते हैं । आप देखते हैं कि यह ठीक नहीं । आप राम इच्छा कह कर चले जाते हैं। कोई अन्य साधक कहते हैं – अहंकारी कहीं की। यही ठीक है इसके साथ। तीसरे साधक आते हैं – बोलते हैं। आवाज़ उठाते हैं यह ठीक नहीं । अपमान होता है। गलत कलंक भी लग जाए । पर कहते हैं यह ठीक नहीं। चौथे जानते हैं कि मैं क्या ? परमेश्वर के दरबार में अरदास करते हैं कि परमेश्वर अन्याय के प्रति कृपा कर, क्षमा कर । 

कहाँ हैं हम ? इन श्रेणियों में कहाँ हैं हम । जिन साधकों ने , यदि साधक न भी हों, जिन मनुष्यों ने आगे बढ कर कर्म किया या गुप्त रूप से प्रार्थना की उनका निस्वार्थ कर्म आत्मा के उत्थान का कारण बना । परमेश्वर जब पूछेंगे कि तेरे आगे वह लहू लुहान आदमी तड़प रहा था , मैंने तुझे वहाँ भेजा जा तूने राम इच्छा कह दी !!! जब मैंने तुझे वह भूकम्प की ख़बर सुनाई तो तूने राम इच्छा कह दी !!! या जब अन्याय का सुना तो राम इच्छा कह कर बैठ गया! मैंने ही तो तुझे वह ख़बर सुनाई थी !!! मेरे कारण ही तो तुझे वह सब सुनने को मिला था ! क्या किया तूने। तू मेरे कार्य करने गया है ! क्या किया तूने? 

हमारे गुरूजन जन्मों का लेखा जोखा हमें देखते ही पढ लेते । पर फिर भी हस्पतालों में जाकर चक्कर लगाते ताकि पीड़ितों कि कर्म कम कर सकें । अपने शरीर की परवाह नहीं की ! राम इच्छा स्वीकार कर, उसपर कर्म किया। यह जानते हुए कि अन्याय भी कर्मों के कारण है राम की दी हुई परिस्थिति है पर अपना सब कुछ दाव पर लगाना , केवल राम नाम की शक्ति से आ सकता है । यह कहना निडरता से कि यह अन्याय है यह भी राम की शक्ति से आता है । 

हम दूसरों की परिस्थिति को राम इच्छा जान कर स्वीकार करना तो सीख गए । पर उसके आगे के क़दम लेना न जाने । आगे के निर्णय ही हमारे सद्कर्म बनते हैं । या परमेश्वर के समर्पित कर्म बनते हैं। 

यह तो हुई दूसरे पर घटित होने वाली बात। जब स्वयं पर घटित होती है तब क्या ? राम इच्छा से स्वीकार की परिस्थिति । अपना सब गुरूजनों के श्रीचरणों में सौंप कर, बिना किसी राग द्वेष के राम काज करते रहे। हृदय में मनमुटाव न आना गुरू कृपा । यदि आया तो क्षमा की प्रार्थना करना। यदि नहीं भूल पा रहे तो दूसरे के लिए कृपा की याचना करना !दूसरे के बारे में भला बुरा न कहना ! परमेश्वर को उलाहना न देना!  यह सब सद्कर्म में आता है और गुरू कृपा से आता है। 

मेरी आज की सीख 

राम नाम साधक हर परिस्थिति को राम इच्छा से स्वीकार करता है और यदि बन पड़े तो बिना किसी चीज की परवाह किए उसमें कूद पडता है। यदि बस में नहीं है तो कृपा के लिए प्रार्थना करता है। 

परिस्थिति का समाना करने की शक्ति राम नाम से आती है। परिस्थिति में कूद पड़ने की शक्ति राम नाम से आती है। परिस्थिती में डावाँडोल न होने की शक्ति राम नाम से आती है। परिस्थिति के पश्चात दूसरों को अपनाने की शक्ति राम नाम से आती है। राम नाम के स्रोत हमारे गुरूजन। उनके श्रीचरणों में लगे रहने से आती है। 

सर्व श्री श्री चरणों में 

जय जय राम 

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