मनोमुखी हैं हम या गुरूमुखी… यह व्यवहार व सोच से पता चलता है .. !! 

Sept 3, 2016


मेरे राम ! मेरे सर्वस्व ! मेरे गुरूजन , आपश्री के कमल चरणों में कोटिश्य प्रणाम ! 

परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि साधना बर्तने में आनी चाहिए । कि साधना का असर व्यवहार में दिखना चाहिए । इसका रंग चढ़ना आवश्यक है !! 

पूज्य महाराजश्री ने कहा कि परमात्मा की कृपा हो गई, सो संत से मिलन हो गया। संत की कृपा भी हो गई। ग्रंथ पढते हैं तो शास्त्र की कृपा हो गई । एक कृपा जब तक नहीं होगी तब तक साधक नहीं बन सकते । सब कृपाएँ धरी की धरी रह जाएँगी !! वह है स्वयं पर मन की कृपा । 

मन को सिधाना । मन के प्रलोभनों के प्रति सजग रहना व इन से बचना ! पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि करोड़ों नाम जाप भी किया, इतने वर्ष सेवा की पर जीवन वैसे का वैसा ! कोई बदलाव ही नहीं आया !! 

एक साधक बोले जब महाराजश्री देह में थे हर भौतिक समस्या के लिए मैं उन्हें पत्र लिखता। मुझे पता था वे दिव्य हैं मेरा काम बन जाएगा। पूज्य महाराजश्री ने मना भी किया कि मत लिखा करो भौतिक माँगों के लिए ! पर न माने । आज भी वे समस्याओं से घिरे हैं। आज भी वे वही कर रहे हैं । संसार सँवारने में लगे हैं, कर्मों को कटवाने में लगे हैं क्षमा मांग रहे हैं कि संसार सँवर जाए !! 

महाराजश्री कहते हैं कि जब संत का मूल्य ही नहीं जाना तो कौड़ी की चीज माँगते रहते हैं। कल भी, आज भी और कल भी !! 

छोटी छोटी बातों में झूठ, चालाकियाँ करना, हेर फेर, दूसरों को नीचा दिखाना, या रास्ते से हटाना कह कर अभिमानी है , मान की चाह , इत्यादि इत्यादि कर्म , साधना का रंग नहीं चढ़ने देते ! जब तक जीवन में सुधार के लिए  करुण क्रंदन प्रार्थना हृदय से न निकले, जब तक अपनी असीम कुटिलता का अहसास न हो और उसके लिए शुचिता चाहने के लिए प्रार्थना याचना न निकले, तब तक माया नचाती रहती है !!! मायावी अंधकारमय जीवन बना रहता है। we are perfect ! We don’t need any change ! Our thoughts are perfect ! माया नचा रही होती है । 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कोई गुरू की शिक्षाओं पर चलने वाला हो, कोई गुरू की आज्ञा मानने वाला हो, कोई गुरूमुखी हो, कोई उसकी कृपा का पात्र हो , तो वह माया की रची गई परीक्षा में पास हो सकता है अन्यथा नहीं !! 

पर हम सब मानते हैं कि हम वैसे ही चल रहे हैं जैसे गुरूजन चाह रहे होते हैं!!!

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि साधना व्यवहार में आई कि नहीं !!! साधना का रंग चढा के नहीं ! दैनिक कार्यों में हम साधक रहे कि कोई दूसरा मुखौटा डाला। हमने दूसरे के साथ ऐसे शुचिता से लेन देन किया जैसे गुरू महाराज से ! पर यदि गुरूदेव से छल करते आए हैं उसका क्या कहें ….. 

मेरी आज की सीख 

शिष्य सदा बने रहना है मुझे , अंत समय तक। सीखते जाना है,हर ओर से, श्री चरणों में पूर्ण समर्पण की अनुमति वे कृपालु दें, तो तन मन धन के समर्पण के साथ सर्व श्री श्री चरणों में । वे ही करन करावनहार हैं। उनका ही है सब। हर शब्द, हर भाव, हर स्वास! जो चाहें वे इस देह से कार्य ले लें !! मेरे रामममममममममममम ! आपका है सब ! हम तो केवल कुछ पलों के मेहमान ! पर आप आदि से अन्त तक यहाँ ! हर चीज आपकी ! सबकुछ आपका ! मेरे राममममममममममममममममममममम

जय जय राम 

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