प्रेम मिलना और प्रेममय हो जाना 

Oct 20, 2016


परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने कहा कि आग दोनों तरफ़ एक जैसी लगी होती है। परमात्मा का हृदय आपके लिए कितना जलता है यह वह आपसे छिपा कर रखता है। अपने भेद नहीं खोलता। 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि एक भक्त , एक साधक, सदा यही मानता है कि प्रभु ही उसे याद कर रहे होते हैं। वे कहते हैं कि जो आती है वह जाएगी भी ! सो याद यदि आती है वह जाएगी । ऐसे भी फिर होता है कि  वह जो सदा रहती है। साधक प्रभु की याद में, सिमरन में ही रहता है। कभी आती है कभी जाती है, ऐसे नहीं उसी में रहता है । 
प्रेम मिले प्रभु का । मानो कि अभी अस्तित्व बाकि है! याद आए प्रभु की , मानो कि अभी “किसी को ” याद आ रही है । जब अस्तित्व मिट जाए, जब मैं मिट जाए, तो प्रेम मिलता है, प्रेम करते हैं , याद आती है, सब समाप्त हो जाता है ! तब केवल प्रेम रह जाता है । तेरा प्रेम , मुझे प्रेम, मेरा प्रेम नहीं रहता केवल प्रेम रह जाता है ! और यही प्रेम की भाषा पौधे, वनस्पति, पशु , दिव्यांग लोग, एक दम समझ जाते हैं। यही प्रेम हमें संतों का छूता है । और यह ऐसी रस होता है जो कि संसारी प्रेम में नहीं मिलता !!! महाराजश्री कहते हैं कि इसका एक बार रसपान करने से कुछ नहीं होता । बार बार रस पीने को मन करता है ! तभी तो गुरूजनों की एक झलक बस सब काम कर देती है ! एक झलक ! 

आज की सीख 😇
जब तक प्रेम की चाह है तब तक अस्तित्व बाकी है । जब प्रेममय हो गए तो अस्तित्व मिट गया और मैं गिर गई ! 
श्री श्री चरणों में 🙏

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