राम भक्त न चाहे ऋद्धि सिद्धि 

Oct 24, 2016


परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने कहा कि एक भक्त, भक्तिमार्ग के अनुयायी को किसी भी प्रकार कि सिद्धि की कामना नहीं होती !

इसका तात्पर्य यह कि भक्तों में भी कहीं न कहीं ऋद्धी सिद्धी की कामना रह जाती होगी ! पर सच्चे भक्त को नहीं ! राममय भक्त को नहीं । हमारे स्वामी जी महाराज तो इतने पक्के कि विज्ञापन भी देना नहीं पसंद करते । कहते कि राम ने जिसको बुलाना है बुला लेंगे ! भीड़ की, जनता इकट्ठी करने का कोई लेश मात्र भी इच्छा नहीं ! पर हम तो जनता को खुश करने के लिए क्या क्या नहीं करते ! गुरूजन के आगे अर्पण क्या करें इसकी चिन्ता की बजाए लोग खुश रहें यही हमारा उद्देश्य होता है।

ख़ैर! पूज्य महाराजश्री एक साधक के लिए कहते हैं कि उसे तो दर्शन मात्र की भी इच्छा नही होनी चाहिए ! सच बात है ! हो आता है वह जाएगा भी ! सो पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि राम नाम ! अविरल, अनवरत राम नाम , यह होना चाहिए एक साधक का उद्देश्य ! और यदि कोई सिद्धि प्रभु दे भी दें तो उसका प्रदर्शन !!! मेरे राममम! पतन की सीधी सीढ़ी ! वह तो अपनी सिद्धियाँ छिपा कर रखता है ! राम स्वयं सुगन्ध फैलाएँ तब भी वह सदा सदा सजग रहता है !

हमारे गुरूजन ने ऋद्धि सिद्धियों को कभी ऊपर नहीं रखा । क्या कुछ नहीं कर सकते थे ! आत्माओं से बातचीत , रोगों का निवारण, सूक्ष्म शरीर में कहाँ कहाँ चले जाना और क्या क्या कर आना , प्राकृतिक विपदाओं को टालना, मन की बात जाननी तो आम बात थी, असंख्य साधकों के जन्मदिन स्मरण रखना, कितने जन्मों के बारे में जानना, साधकों को परमेश्वर के साक्षात विराट रूप के दर्शन करवा देने !! क्या क्या नहीं करते पर गुप्त रहे ! उनके लिए संगत इकट्ठी करना तो दाएँ हाथ का खेल था। पर जानबूझ के छिपे हुए रहे ! अपने साधकों को ही आगे रखा और आज तक यही करते आ रहे हैं व परमेश्वर के सदा सदा दास व नन्हें बालक ही बने रहे !

कहाँ चाही मीरा ने सिद्धि कहाँ चाही सूरदासजी व क़बीर दास जी ने सिद्धि ! कहाँ चाही बुल्लेशाह ने सिद्धि ! वे तो प्रेम के दिवाने रहे। प्रेम चाहा व प्रेम में ही समा गए !

असली सिद्धि तो अहम् व कामनाओं का निवारण ही कहा है !

उनकी शिक्षाओं का सही माएने में अनुसरण करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए ।  परमेश्वर कृपा करें कृपा करें कि सही माएने में साधक / शिष्य बन पाएँ ।

मेरे रामममममममममममम

श्री श्री चरणों में 🙏

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