Oct 10, 2016
परम पूज्य श्री महाराजश्री ने कहा ~ कि प्रभु से बड़ कर कोई प्रेमी नहीं ….
गुरूजन शायद और सिखाना चाहते हैं ….
प्रभु ही सदा सदा प्रेम की पहल करते हैं। हमें तो प्रेम का कुछ पता ही नहीं होता । पहले संसारी लोगों में से अपने प्रेम की छवि चखाते हैं, चाहे माँ के रूप में , पति, पत्नि या बच्चों के रूप में । यह छाया दिखा कर वे गुरू रूप में उस असली दिव्य प्रेम की बूँद का रसपान करवाते हैं और वहाँ से उसके दिव्य प्रेम की ओर यात्रा आरम्भ होती है ।
पूज्य महाराजश्री परमेश्वर को सुहृद कहते हैं। जो बिन कारण भला चाहता है। प्रभु बिन कारण जगत पर कृपा करते हैं। बिन कारण क्षमा करते हैं, यदि माँगे, बिन कारण हमारे लिए व हमारे संग बहुत रोते हैं जब हम अपने ही कर्मों की वेदनाओं से ग्रसित होते हैं। क्यों ? क्योंकि वे असली प्रेमी हैं। वहाँ कोई माँग नहीं है, कोई अपेक्षा नहीं है । पर जब वे किसी के प्रेमी बनना स्वीकार करते हैं, तो महाराजश्री कहते हैं कि वे तब अपेक्षा रखते हैं कि उनका प्रेमी केवल उनका हो जाए।
माँ सीता अशोक वाटिका में हर पल प्रभु राम के सिमरन में ही रहती । उनकी पुकार केवल यही थी कि प्रभु आएँ व उन्हें छुड़ाएँ । जब श्री श्री हनुमान जी संदेश लाए तो वे बोले कि प्रभु आपकी याद में हर पल रहते हैं। वे कम खाते हैं। बस आपका ही नाम लेते रहते हैं। यह संदेश दिया !! प्रभु ने अपने प्रेम का इज़हार किया ! अपने प्रेम के बारे में कहा कि उनका चित हर पल माँ सीता के ही संग होते हैं ।
जिस तरह एक प्रेमिका ने डट कर राक्षसों से कहा जिस तरह सूर्य की किरणें सूर्य से पृथक नहीं हो सकतीं , उसी प्रकार मैं भी अपने प्रभु राम से पृथक नहीं हो सकती ! सो आया प्रेम का संदेश उनके प्रेमी से , उनके प्रभु से, कि मैं हर पल तुम्हारा ही स्मरण करता हूँ !!
गुरूदेव कहते हैं कि पर हमारे मन में यह अवश्य आता है कि प्रभु वे तो जगतजननी है, अन्य तो संत हैं, या उन्होंने तो कितनी तपस्या की हुई है! बात तो तब बने कि हम जैसे मामूली लोगों को आप अपने प्रेम में रंग दो ! हम तो अपेक्षा ही नहीं कर सकते कि आप हमारे प्रेमी बनें, यह तो आपजी की अहेतुकी उदारता होगी, पर आप में रम जाएँ, आप में बह जाएँ, बस आप ही आपका रस पान हर क्षण करते रहें, यह प्रार्थना तो कर ही सकते हैं! कृपया हमपर कृपा कर दीजिएगा ।
प्रभु सबके अंग संग होते है पर शास्त्र व गुरूजन प्रमाण देते हैं कि प्रभु प्रेमी बनते हैं ।
मेरे राममम मेरे स्वामी मेरे प्रभु !!!!
आज दशहरे के पावन दिवस पर ओ प्रभु में लीन मेरे गुरूजन आपजी से विनती है कि हम राम संग जिएँ । यदि यह न हुआ प्रभु तो जी न पाएंगें । प्यारे राम के प्रेम में जिएँ और अंतत: उनके श्री श्री चरणों में विलीन हो जाएँ ।
श्री श्री चरणों में