आध्यात्म में कुसंग 

Nov 2, 2016


परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने कहा कि जो आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं है उसका संग कुसंग ! 

क्या तात्पर्य है गुरूदेव का यहाँ ? हम अपनी पिपासा ” आध्यात्मिक ” शब्द से आरम्भ करते है । मोटे शब्दों में जो राम से प्रेरित होकर कार्य करे वह आध्यात्मिक। जो अहंकार व स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करे वह कुसंग ! 

तो क्या राम नाम लेने वाला अपने आप आध्यात्मिक बन जाता है ? नहीं ! 

पूज्य गुरूदेव कहते हैं – आप बहुत अच्छे डॉक्टर हैं। बड़ा अच्छा व्यवहार है आपका बाहर पर घर आते ही, पत्नी व बच्चे को देखकर मुँह बना लेते हैं, ठीक व्यवहार नहीं करते!मानो राम नाम भीतर बसा ही नहीं ! आप पत्नी हैं। मंदिर में पाठ करके आई हैं, बहू पर , बच्चों पर चिल्लाना आरम्भ कर दिया ! मानो , राम नाम से जीवन अभी प्रेरित ही नहीं हुआ ! 

राम नाम लेने वाला जब तक राम के गुण अपने भीतर नहीं उतारता, तब तक वह आध्यात्मिक नहीं । आप राम नाम नहीं लेते, पर दूसरों को सम्मान देना, संवेदनशील रहना , सेवा करना, आपको आध्यात्मिक बना देता है । पर साधक का label लगा कर, अभिमान से प्रेरित होकर, स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करना हमें कुसंगी बना देता है ! 

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि चाहे जितनी मर्जी अच्छा प्रवक्ता हो, ग्रंथ पाठ करने वाला हो, पर यदि उसका संग अभिमानी, स्वार्थी , अहंकारी व्यक्ति से हो जाए, तो उसका कुसंग भीतर आकर रहेगा! जो साधक, दूसरों के घर तोड़े, पति पत्नी में दूरियाँ करे, ईर्ष्या से प्रेरित होकर कर्म करे, अभिमान व प्रशंसा की चाह में कार्य करे, वह सब कुसंग है !! जो शान्त रहे, दूरियाँ मिटाए , प्रेम बढ़ाए, करुणा उपजे, दूसरों की पीड़ा जाने व समझे, विनीत रहे, राम को आगे रखे, वह राम से प्रेरित साधक है ! 

संग बहुत बहुत सोच विचार के चयन करना होता है! गलत संगति, बहुत बहुत गड़बड़ कर देती है। और सही संगति जीवन बदल देता है!! 

गुरूदेव कहते हैं राम नाम में रंगे हुए का संग, प्रभु प्रेम में रंगे हुए का संग, जागृत चैतन्य आत्मा का संग हमें उन जैसा ही बना सकता है ! 

पर उन परिस्थितियों का क्या जहाँ से बचा नहीं जा सकता ? जहाँ ऐसे संबंध जुड़ जाते हैं कि निकलना असम्भव है ? वहाँ भीतर डुबकी मारनी व गुरूजनों की शिक्षाएँ सबसे बड़ी संगति है! उनके अनुसार चलने की शक्ति राम नाम व गुरूजन स्वयं देते हैं । कमल बना देते हैं! बाहर के कुसंग का असर भीतर पड़ने नहीं देते! पर इसके लिए उनकी शिक्षाओं का अक्षारक्षर पालन करना आवश्यक! 

श्री श्री चरणों में 

2 thoughts on “आध्यात्म में कुसंग 

Leave a comment