कर्मों को सहन करने का बल 

Nov 5, 2016


एक बार एक साधिका अपने गुरूजी के पास गई कि प्रभु मेरा पति मुझे बहुत पीटता है। गुरूजी ने जाप पाठ करने को कहा और बोले- रोटी तो देता है न ! अगले वर्ष वह फिर अपने गुरू जी के पास गई और बोली – महाराज ! कुछ ठीक नहीं हुआ ! वह बहुत पीटता है। बाबा फिर बोले – रोटी तो देता है न !

तीसरे वर्ष जब वह दर्शन करने हेतु गई तो तिलमिला कर बोली – बाबा ! तीन वर्ष हो गए! अभी भी वह पीटता है ! 

बाबा बोले – बेटा ! तू पिछले जन्म में उसकी सौतेला माँ थी ।बहुत पीटती थी उसे ! यहाँ तक कि खाने को भी नहीं देती थी ! देख तुझे वह रोटी तो दे रहा है न !!! 

पूज्य महाराजश्री व संतगण यूँ ही नहीं कहते कि परमेश्वर से बल माँगिए , सहन करने के लिए । यदि अभी नहीं किया तो किसी और जन्म में मोल चुकाने के लिए आना पड़ेगा !! मोल चुकाए बिना नहीं रहा जा सकता ! उसका प्रभाव कम हो सकता है राम नाम से, पर गुज़रना तो हर एक को पडता है । अनिवार्य है ! 
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि तुलसीदास जी की टाँग में एक बार फोड़ा हो गया ! घाव ठीक होने में ही न आया। अति पीड़ा ! तुलसी जी ने प्रभु से पूछा – भगवन ! इतनी देर हो गई! अभी तक घाव नहीं ठीक हुआ ! भगवन बोले तुलसी ! तेरे बिन अब रहा नहीं जा रहा ! तुम्हारे कर्मों के अनुसार अभी दो जन्म तुम्हें और लेने आना पड़ना था ! मैंने सोचा सब एक में ही कर डालूँ ताकि तुम्हें और जन्म न लेने पड़ें !!! 
जो साधनारत साधक होते हैं और बार बार प्रभु में एक हो जाने के लिए, उसमें विलीन हो जाने के लिए प्रार्थना करते हैं, बुहार लगाते रहते हैं, परमेश्वर बहुत बार कितने जन्मों की सफाई एक में ही कर देते हैं ! इसलिए घबराना नहीं चाहिए ! प्रभु ही रोग, विपदा का रूप बनकर आते हैं ताकि कर्मों की सफाई व धुलाई हो सके ! 
राम ! केवल राम ! परमेश्वर हम सबको को गुरूजन का साथ निभाने का बल दें , शक्ति दें कि जैसी भी परिस्थिति हमारे आगे आए , हम उनके होकर, सहन कर सकें !! गुरूजन ही कर्मों को काटते हैं, वे ही परिस्थितियाँ बनाते हैं कि कर्मकाण्ड साफ़ हो , सो राम नाम लेकर सहन करना ही श्रेयस्कर है ! सब को बल मिले! सब पर कृपा बरसे! 
हे राम ! आप से कभी यह नज़र न हटे ! चाहे जैसी मर्जी लीला आप रचें ! आप श्री के चरणों के सिवाय कोई चाहत न कभी उमड़े ! 
श्री श्री चरणों में

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