मैं तेरी तू मेरा राम- आसक्ति का तोड़ 

Dec 29, 2016


परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री ने जीता जी के दूसरे अध्याय का शुभारम्भ करवाया है । जो भी ज्ञान प्राप्त होता है व अज्ञानता की पर्तों का अनावरण होता है वह गुरूजनों की कृपादृष्टि से ही होता है। सो सब कुछ उनसे व उन्हीं के श्री चरणों में। 

गीता जी के दूसरे अध्याय का शुभारम्भ अर्जुन की मोहजन्य मानस स्थिति से होता है । और अर्जुन के गुरू परम प्रभु परमेश्वर उनके मार्गदर्शन हेतु अर्जुन को प्रोत्साहित कर रहे है, सजग कर रहे हैं, व ज्ञान से अज्ञानता का अनावरण। 

प्रभु ने अर्जुन से कहा है कि आसक्ति पाप है, अधर्म है और यह पतन का कारण है। आसक्ति से मोह छा गया है जिससे निष्ठा पूर्वक कर्तव्य पालन में बाधा आती है। 

परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि आसक्ति व मोह केवल प्रियजनों से नहीं होता। मोह तो प्रशंसा से,बार बार अपनी वाह वाह सुनने से, पद प्रतिष्ठा से, प्रोपर्टी से, देह से, इत्यादि इत्यादि हो जाता है। आसक्ति इतनी गहन होती है कि हम उसमें फँस कर अपना मान सम्मान तक खो देते हैं। 

परम पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि राम नाम,महामंत्र है, महाऔषधी हैं। यदि हमें राम नाम से आसक्ति हो जाए तो बाकि आसक्तियों की गाँठें राम नाम व गुरूतत्व स्वयं कर देते हैं । इसलिए सतत राम नाम पूज्यश्री गुरूजन औषधी के रूप में बताते हैं। 

मोह की माया इतनी घनी होती है कि हम उसमें आनन्द लेने लगते हैं। वह मीठा मीठा सुख देकर ऐसा छलावा करती है कि आजीवन पीड़ित होना पड़ता है। और जब वह वस्तु व व्यक्ति जिससे मोह है वह हाथ से छूट जाता है तो आदमी क्रोधित होता है या विषाद में चला जाता है। जिससे अपने कर्तव्य कर्म निभाने में सक्ष्म नहीं रहता । 

इसीलिए पूज्यश्री महाराजश्री हमसे बार बार आग्रह करते हैं कि यहाँ हमारा कोई नहीं व कुछ नहीं। सब परमात्मा का है। वे प्रार्थना करते हैं कि हम हर माला के पश्चात “मैं तेरी तू मेरा राम” ७ बार बोला करें। और दिन में भी कितनी बार !! पर हमें यह पंक्तियाँ जब संसार से लात पड़ती है तब स्मरण आती हैं। सुखद परिस्थितियों में भी यह भीतर धुल जाएँ तो ही काम बनता है। 

परम कृपालु भगवन हमारी प्रार्थना स्वीकार करें 

मेरे हृदय में अपना प्यार भर दो,मेरे राम मेरी विनती स्वीकार कर लो 

श्री श्री चरणों में 

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