राम में स्थित शिष्य में सेवकाई स्वयमेव ही आती है 

Jan 20, 2017


प्रश्न : स्व सुधार में क्या स्वार्थ नहीं ? शिष्य बनना और सेवक नहीं क्या स्वार्थ नहीं ? 

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री स्व सुधार पर बल देते है और फिर पर सुधार पर । पहले हमें अच्छे शिष्य बनना है । परम पूज्य महाराजश्री के अनुसार देह अभिमान लाँघ कर जो सेवा की जाती है वह ही असली माएने में सेवा है । 

स्वम् सेवा का एक और अर्थ भी है । स्वयं की खोज । जब हम स्वयं की खोज में निकलते हैं ,वह सबसे उच्च सेवा मानी जाती है । क्यों ? क्योंकि परमेश्वर में विलीन होकर जो सेवा होती है वह समस्त ब्रह्माण्ड का कल्याण करती है । इस स्वयं की खोज में शिष्य सम्पूर्ण रूप से समर्पित होता है । परमेश्वर उसकी देह से कोई कार्य करवाएं या न करवाएं , इसमें उसकी इच्छा नहीं रहती । अहम् शून्यता यह लेकर आता है । सृष्टि में जो कुछ भी घट रहा है परमेश्वर लीला ही जानता है। हर परिस्थिति में  वह भीतर विराजमान राम पर ही स्थित रहता है । 

यह एक गहन तपस्या है ~ भीतर अपने राम पर हर परिस्थिति में स्थित रहना । स्वयं की भौतिक इच्छाओं का यहाँ तेल समाप्त हो चुका होता है । केवल राम ही रहते हैं । 

सो जो राम में स्थित रहे वहाँ स्वार्थ कैसा ? जब राम में स्थित रहकर जगत राममय बने तो वहाँ स्वार्थ कैसा? पहला स्व कल्याण आवश्यक है । अहम् का सम्पूर्ण रूप से नाश आवश्यक है । इसमें साधक परमेश्वर के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता। अपने कार्य से मतलब रखता है । और उसका कार्य है राम पर हर पल हर क्षण स्थित रहना । 

एक अच्छा शिष्य निश्चय से स्वयमेव ही अच्छा सेवक होगा । उसे कुछ अलग से नहीं करना होगा । जो राम में स्थित रहेगा , उसमें राम की ही तो गुण बसेंगे । और राम तो केवल देना ही जानते हैं । सो अच्छे शिष्य में सेवाकाई के गुण स्वयमेव ही होंगे । पर ढिंढोरे पीटने वाले नहीं । राम की तरह गुप्त । राम गुप्त रूप से सेवा करते हैं, ढोल पीट कर नहीं। राम में एक्य साधक / शिष्य भी राम की तरह गुप्त कार्य करता है । 

यही चित्र खींचा है गुरूजनों ने स्वयं की खोज की यात्रा का। गुरूजन स्वयं ही लेकर जाते हैं इस राह पर ….. अहम् शून्यता केवल वे ही दिलवा सकते हैं …. और कोई नहीं !!!! एक शिष्य राम से कभी भिन्न न होगा, उसमें राम के गुण दिन प्रति दिन बढ़ते जाएंगे और सेवकाई भी एक गुण है। पर राम में अहम् नहीं सो राम में स्थित साधक का अहम् न्यूनतम होता जाएगा । 

रााााााााााओऽऽऽऽऽऽऽऽऽम 

श्री श्री चरणों में

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