परम पूज्यपाद श्री स्वामीजी महाराजश्री और अध्यात्मवाद 

Jan 21, 2017


परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री ने हमें अध्यात्मवादि / अध्यात्मिक कहा है ।
यह अध्यात्मवाद क्या है ?
आत्मा को लक्ष्य रखकर जो बात की जाए वह अध्यात्मवाद।
क्या हर कोई अध्यात्मवादी होता है ?
नहीं ! पूज्य स्वामीजी महाराज जी कहते हैं कि अध्यात्म विद्या को प्राप्त करने के सभी अधिकारी नहीं होते। सभी में यह योग्यता नहीं होती क्योंकि बुद्धि भिन्न भिन्न प्रकार की होती है। कोई विरला ही इसके योग्य होता है।
क्यों यह हर किसी के लिए नहीं है ? क्या है इसमें जो सब नहीं कर सकते?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि इसमें अपनी प्रकृति को बदलना होता है, जो सरल काम नहीं । शरीर की प्रकृति को ही बदलना बहुत कठिन है और आत्मा को- जिसे न जाने किस काल प्रकृतिमय समझता आया है-जाग्रत करना, उसको स्व – स्वरूप में लाना और भी कठिन है। इसलिए इस मार्ग पर पूरी विधि और तत्परता से चलना चाहिए।
अध्यात्मवाद किस धर्म से आया है ?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि अध्यात्मवाद वास्तविक धर्म हैं। और अखिल संसार में एक ही है । इससे सभी धर्मों की उत्पत्ति हुई है ! सो यह मौलिक चीज है।
तो क्या यह वास्तविक धर्म केवल भारत में ही पाया गया है ?

पूज्यश्री स्वामिनी महाराजश्री ने कहा है कि अध्यात्मवाद पुरानी चीज है । दूसरे देशों में भी है । यदि किसी पश्चिमी देश में अध्यात्मवाद की बात की गई हो या भारत वर्ष में बात की गई हो, उसमें केवल शब्दों का भेद हो सकता है पर तत्व में भेद नहीं हो सकता ।
तो क्या जो पुराने महर्षि या संत हुए और जो विदेश में संत हुए और जो पूज्य स्वामीजी के ग्रंथों में अध्यात्मवाद है क्या वह भिन्न है ?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के अनुसार , सब देशों में जो अनुभवी लोग हुए हैं , वे सब एक ही बात कहते आए हैं, क्योंकि उन्होंने जो देखा, वह एक ही बात थी ।
प्रवचन पीयूष
पृष्ठ १६, १३

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