गुरूजनों के ग्रंथ व अन्य अध्यात्मिक ग्रंथ 

Jan 22, 2017

img_5474
प्रश्न : क्या हमें सिर्फ पूज्यश्री गुरूजन के ही ग्रंथों का पाठ करना चाहिए ?
हमारे गुरूजनों के ग्रंथ ज्ञान के असीम सागर है। किसी वरिष्ठ साधक ने कहा था कि उनके ग्रंथों को पूर्ण रूप से समझ पाने के लिए एक जीवन काल पर्याप्त नहीं ।

हमारे गुरूजन अध्यात्मवाद के अनुयायी हैं। किसी पंथ या मत के नहीं । अध्यात्मवाद मूल है, इसी से सभी धर्मों का जन्म हुआ है । और समस्त विश्व में अध्यात्मवाद एक ही है। इसका मतलब कि जो गुरूजनों ने कहा व लिखा है, वह पहले भी आध्यात्मिक महर्षियों द्वारा कहा जा चुका है और विदेशों में भी जिन अध्यात्मवादियों ने कुछ कहा वह एक ही है । यह इसलिए क्योंकि जो सबने भीतर देखा वह एक ही था व है ।

इसलिए जो भी अन्य अध्यात्मिक ग्रंथ व शास्त्र हम पढ़ेंगे वे भी वही कह रहे होंगे जो पूज्यश्री गुरूजनों ने कहा है ।
परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने भक्ति प्रकाश जी में विभिन्न संतों के बारे में लिखा है । जो यही दर्शाता है कि उन्होंने भी अन्य संतों के जीवन व लेखों का रसपान किया है । पूज्य स्वामीजी महाराजश्री ने तो अन्य संतों के भजन तक लिखे हैं ध्वनि व भजन संग्रह में , जो कि उनकी खुली सोच, विशाल हृदय दर्शाता है ।
परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने तो अन्य आधुनिक संतों के ग्रंथ तक अनुवाद किए और स्वामी रामदास जी की दिव्य दर्शन नामक पुस्तकों को भी पढने के लिए कहा ।
हमारे गुरूजन ऐसे धर्म को मानते हैं व अनुयायी हैं जो सार्वभौमिक है । जो देश काल से परे है। जो सदा था व सदा रहेगा । क्योंकि वह आत्मा के बारे में है जिस तक हम नाम योग द्वारा पहुँचते है ।
इस लिए बिना किसी संकोच के जो ग्रंथ भक्ति रस से भरपूर हैं , जो आत्मदर्शन तक लेकर जाते हैं , हम पढ सकते क्योंकि वे सब वही कहेंगे जो परम पूज्यश्री गुरूजनों ने कहा है ।
गुरूजनों के अनुसार  जो भी पढें ..( चाहे गुरूजनों के, जो कि ज्ञान के असीमातीत भण्डार हैं या कुछ और ), जीवन में अवश्य हमें उसे उतारना है ।

ऐसा मुझे सिखाया
सर्व श्री श्री चरणों में

Leave a comment