देने से तत्काल शान्ति 

May 11, 2017

देने से तत्काल शान्ति 

परम पूज्यश्री महाराज़श्री कहते हैं कि एक साधक वह जो देना जाने । 
यदि हमारा अर्जित करने की बजाए , देने का स्वभाव बन जाए तो शान्ति हमारी मित्र ही बन जाती है । 
एक कर्मचारी के काम पर लोगों का आपस में वातावरण तीखा सा था । चीज़ें न होने पर रोते धोते रहना । किसी ने कुछ लौटाया नहीं तो शिकायत कर देना , इत्यादि इत्यादि । 
तो यह कर्मचारी मौक़ा ढूँढते कि कब किसी को वे कुछ दे सकें । कुछ अपने पास ज्यादा दिखा तो बांट देते । यह कह कर कि कृपया लौटाइएगा नहीं !! 

इससे क्या हुआ कि उन कर्मचारी के आस पास सकारात्मक ऊर्जा शक्ति स्थापित हो गई । इसमें वे अपने गुरूजनों का हाथ ही मानते हैं ! 
इसी तरह से घर परिवारों में बँटवारे नराजगियां होनी बहुत आसान हैं । पर यदि हम वहाँ बिना रोए धोए देना सीख जाएँ तो वातावरण बहुत शान्त बना रह सकता है । 
परिवार में यदि हमें पता चला है कि किसी को दूसरे की भी सम्पति लेने की नज़र बन गई है तो गुरूजन कहते हैं दे दीजिए । पूज्य महाराज़श्री के अनुसार जिसे देना आ गया वह कभी खाली नहीं रहता ! दिव्यता उसे भर कर रख देती है ! उसे कभी हाथ फैलाने नहीं पडते !! 
दूसरों को बदलने की बजाए हम स्वयं बदल जाएँ तो जीवन बहुत सुखद हो जाए ! परमेश्वर का है सब । मेरा घर , मेरी ज्यएदाद ! सब उसका है !! सो यदि कोई उसकी चीज हमसे चाहता है तो परमेश्वर कृपा करें कि हम देने में कभी भी हिचहिचकाएं न !! 
सब आपका व सब आपसे ! 

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