स्वयं को बदलना व दूसरे को अपनाना 

May 20, 2017


स्वयं को बदलना व दूसरे को अपनाना 
वह ऐसा क्यों नहीं करता ! उसका ऐसा व्यवहार क्यों है ? 

आए दिन हम दूसरों को बदलने की सोचते हैं ! पत्नि / पति , बच्चे ! सब मेरे अनुसार चले ! जैसा हम चाहते हैं वैसा करे ! 
पर यदि हम बदल जाएँ ! हम परमेश्वर व गुरूजनों कि भाँति बिना अपेक्षा प्रेम करने लग जाएँ । बिन कारण प्रेम करने लग जाएँ । किसी ने कुछ दिया या न दिया किया या न किया फिर भी प्रेम करने लग जाएँ तो कैसा होगा जीवन !!! बहुत भिन्न !!! 
यह शायद तभी सम्भव है जब हम एक तरफ़ से सुरक्षित हो! कोई है जो मुझे बिन कारण संसार में बहुत ज्यादा प्रेम करता है । किसी को मेरी हर समय चिन्ता रहती है ! 
तब हम संसार में बिन अपेक्षा प्रेम दे सकते हैं । जो जैसा है उसे वैसा अपना सकते हैं । बिन चिढ़े कि यह ऐसा क्यों कर रहा है, यह मेरी क्यों नहीं सुन रहा ! प्रेम बिन कारण प्रवाहित होता जाएगा ! 
एक शिक्षक की कक्षा में बच्चों ने कहा – टीचर जी ! आपके विद्यार्थी देखिए पानी में किताब डुबो गए ! शिक्षक ने किताब उठाई और बोले – जब अपने बच्चों का पता हो वे कैसे हैं तो हम उन्हें वैसे ही अपनाते हैं !! न हैरानी होती है न क्रुद्ध होते हैं ! 
अपने कर्तव्य निभाते हुए दूसरे को स्वीकारना ! जैसा वह है उसे अपनाना और वहाँ से अपने लिए राह प्रशस्त करना ! इस तरह न हम परिस्थिति को दोष देंगे न लोगों को केवल प्रेम करते हुए स्वीकारते जाएंगे !! 
सब आपका व आपसे प्रभु !

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