सेवा व प्रशंसा 

May 26, 2017


आज एक बच्चे ने पहली बार सत्संग में भजन गाया । भजन के बाद उसने अपने पिता से पूछा – पापा ! मैंने कैसा गाया ? 
पिताजी बोले – बेटा ! किसके लिए भजन गाया ? किसको सुना रहे थे भजन ? 
बेटा चुप । 
पिताजी ने कहा – बच्चे हम गुरूजनों को भजन सुनाते हैं प्रभु राम को भजन सुनाते हैं !!! पापा मम्मी आंटी अंकल या लोगों को नहीं !! 
 अगली बार बेटे की ड्यूटी किताबों में लग गई !! तो सभी ने बहुत तारीफ़ की । बच्चा बड़ा खुश ! 

पिताजी सब देख रहे थे । 

बच्चा घर गया और घर जाते ही टी वी पर लग गया । पिताजी अकेले ही सारे सामान उठा कर लाए !! 
पिताजी जब बैठे और टी वी बंद किया तो बोले – सेवा एक जगह नहीं होती ! सेवा तो हर जगह करनी होती है ! यदि एक जगह करके वाह वाह मिली तो सब जगह करके भी मिल सकती है । 
पर सेवा किसके लिए की बेटा ? वाह वाह के लिए या गुरूजन के लिए जो हर समय देख रहे होते हैं ?? 
बेटे ने आँखें न मिलाईं !! 
गुरूजन कृपा करें कि हम संसार में रह कर , खासकर online सत्संग में , एक सच्चे साधक रहें .. केवल साधना ही हमारा लक्ष्य हो संसार नहीं ! संसार क्या कर रहा है, किसने क्या किया इस पर नज़र न जाए ! केवल एक ! कैसे राममय

बन सकें कैसे गहन साधना हो सके कैसे प्रभु से और प्रीति हो सके ! बस ! 
कृपा कीजिए भगवन ! आपकी कृपा से ही माया का अनावरण होता है ।

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