कामना से उपासना तक 

July 15, 2017


जिस स्थान पर आकर आपकी सारी मनोकामनाएँ समाप्त हो जाएँ , जहाँ आकर कोई इच्छा ही शेष न रहे ; वही स्थान सही माएने में सबसे शक्तिशाली स्थान है ! 
एक युवक आज स्वामीजी के पास गया । बोला स्वामीजी मेरी नौकरी नहीं लग रही । 

स्वामीजी सिद्ध स्वामी थे पर प्रभु भक्त भी । बोले बेटा सब लीला है । 

निराश युवक वापिस चला गया । पर कुछ ही दिनों में नौकरी लग गई । बहुत खुश । मिठाई का डिब्बा लेकर आया । बोला स्वामीजी नौकरी लग गई । स्वामीजी बोले – बेटा सब लीला है ! 
कुछ वर्ष बाद युवक फिर स्वामीजी के दर्शन करने आया बोला स्वामीजी बहुत राजनीति है । मेरी प्रमोशन नहीं हो रही । 

स्वामीजी बोले – बेटे सब लीला है ! 
युवक के घर पहुँचते ही ख़बर आई कि प्रमोशन हो गई ! बडा खुश ! स्वामीजी को फ़ोन करके धन्यवाद कहा और स्वामीजी बोले – बेटा ! सब लीला है ! 
कुछ महीने पश्चात उसी कम्पनी में आग लग गई और कम्पनी बंद हो गई ! युवक फिर गया और चुप करके बैठ गया उनकी श्री चरणों में । स्वामीजी बोले – क्या हुआ ? आज कुछ नहीं माँगना ! 
बोला – अब शादी कैसे होगी ? नौकरी भी चले गई ! 
स्वामीजी बोले – सब लीला है बेटा ! 
युवक बोला – आप हर बात पर सब लीला है क्यों कहते हैं स्वामीजी ? 

स्वामीजी बोले – क्योंकि बेटा यह एक चक्र है और चक्र का तो अंत ही नहीं होता । 

कुछ वर्ष पहले एक दम्पति आए । दस साल से बच्चा नहीं था । बच्चा हो गया । पर बीमार रहता । कभी औपरेशन कभी यह डॉक्टर कभी वह डॉक्टर । फिर एक एक । बडा हुआ बिगड़ गया । फिर आए मा बाप ! बिगड़ गया तो बुरी संगति में पड़ गया । फिर आए माँ बाप । फिर एक दिन शराब के नशे में पिता को चपत दे मारी । विवाह नही हो रहा था । मन पसन्द का विवाह किया ! माता पिता को बाहर निकल फेंका । कल ही आश्रम में जगह दी है सिर ढकने के लिए ! 
सो बेटा ! यह जीवन तो चक्र में ही उलझाए रखता है । 
युवक बोला – क्या इस चक्र से निकला नहीं जा सकता ? 
स्वामीजी की आँखें चमकी युवक के प्रश्न पर ! बोले – जैसे हो वैसे मौज मनाओ ! तो जीवन में मुस्कुराहट भी है व ख़ुशिया भी ! 
युवक बोला – पर कैसे इच्छाओं को समाप्त करें ? 
स्वामीजी बोले – कामना को उपासना में बदल कर ! परमेश्वर से जोड़ कर व दूसरों को देकर ! 
आज युवक अपने आपको इतना हल्का महसूस कर रहा था ! जैसी परिस्थिति थी वैसे ही जीने का निश्चय किया । जब तक खाली था आश्रम के कार्य करने लग गया ! 
जीवन में ख़ुशियाँ लौकिक कामनाओं की पूर्ति में नहीं उनकी निवृति में है !

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