FAQ- कामना व प्रार्थना 

July 16, 2017


प्रश्न : आज प्रार्थना कोष में किसी साधक ने प्रार्थना डाली । उस प्रार्थना के प्रतिओत्तर में जो जो लोगों ने सुझाव दिए उससे मन बहुत खराब हो गया । क्या किया जाए ? 
यह गुरूजनों की हम सब के लिए बहुत सुंदर लीला थी । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । हर प्रार्थना पर कृपा कृपा परमेश्वर कृपा जैसे आशीष ही जाते थे । पर इस बार यहाँ नहीं ! 
हम इस लीला को दो नजरिओं से देखेंगे । एक पीड़ित व दूसरी प्रार्थना करने वालों की । 
यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि सभी राम नाम को मानने वाला समाज नहीं है बल्कि प्रार्थना को मानने वाला समाज है । 

पर विनती साधक द्वारा थी । 
देखते हैं गुरूजन ने क्या सिखाया है हमें । 
पूज्य़श्री महाराजश्री कहते हैं कि हर परिस्थिति जीवन में जो हमें मिली है वे हमारे कर्म हैं व प्रसाद है । उन्हें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए । और परमेश्वर से बल माँगना चाहिए कि हम सहन कर सकें । कामना पूर्ति के लिए साधना कही है, सवा करोड संकल्प , श्री अमृतवाणी पाठ, सुन्दर काण्ड पाठ, मंगलाचार, इत्यादि । 
यदि फिर भी प्रार्थना स्वीकार नहीं होती तो प्रार्थना सभी में देता है कि मुझे बल मिले शक्ति मिले। 
यदि फिर नहीं स्वीकार होती तो परमेश्वर मेरा हित कर रहे हैं , ऐसा मान कर परमेश्वर की इच्छा में संतुष्ट रहता है ! ( रहना चाहिए ! ) 
पर यदि साधक यह सब नहीं करता और प्रार्थना सभाओं में जाता है अपनी परेशानी लेकर तो गुरूजन कहते हैं चलो दिखाऊँ कि बाहर कितना बडा संसार व दल दल है ! 
जब राम नाम पर विश्वास न हो तो जीवन दल दल बन जाता है । और वही हुआ ! अनन्त सुझाव !! प्रभु ने अनन्त माया बिछी दी ! ढूँढते रहो कि क्या करना है । 
अब जो साधक प्रार्थना की सेवा करते हैं – उन्हें तो जो प्रार्थना आती है वह अपने प्रभु के समक्ष रख देनी होती है कि दीनाबन्धु ! यह तुम्हारे हैं तुम जानो ! यदि इसमें इनकी भलाई है, यदि इससे इनकी साधना बढ़ेगी तो कृपया कृपा कर दें ! 
पर प्रार्थनाएं सामाजिक दिखावा नहीं बल्कि गुप्त व चुप चाप व भावात्मक होनी आवश्यक हैं । 
प्रार्थना का फल इंसान के हाथ नहीं परमात्मा के हाथ होता है ! 
सो प्रभु हर लीला से सिखाते हैं ! हमें सीखते रहना है ! 
श्री श्री चरणों में

Leave a comment