FAQ – इच्छाएं व समर्पण 

July 16, 2017


प्रशन : ईश्वर हर किसी स्वरुप मे सिर्फ वही अपनी प्रतिनिधी आत्मा देते है । पर हर किसी का मन, बुद्धि, और कर्म अलग अलग।ये हमारे पिछले जन्मो के कर्मो या प्रारब्धो के अनुसार। यही हमारी आत्मा पर जन्म लेते के साथ ही चढे होते है । इसलिये हर किसी के मन मे उठने वाली कामनाएँ भी इसी मन बुद्दि और कर्मो अनुसार अलग अलग, जबकि सबके शरीर मे आत्मा तो वही सत्य शुद्ध ईश्वर का स्वरुप।यदि किसी की इच्छा चोरी की होती है, यदि किसी की इच्छा किसी स्त्री के साथ गलत व्यवहार की होती है, यदि किसी की इच्छा दूसरो को कष्ट देने की होती है, तो इन सब इच्छाओ को हम प्रभु के द्वारा ही प्रकट की गयी इच्छाए कैसे मान सकते है। या ये कैसे कह सकते है कि ये सब प्रभु से ही उत्पन्न हुई चीजे । ये तो हमारे मन, बुद्धि और कर्मो के अनुसार उपजने वाली इच्छाए है? 
गीता जी में स्पष्ट लिखा है कि तीनों तरह के गुणों से जीवात्मा बंधा हुआ है । परमेश्वर के इलावा इन गुणों को कौन उत्पन्न कर सकता है ? संत गण कहते हैं कि परमेश्वर ने यह देह व इसकी इंद्रियाँ उसे जानने व स्वयं को जानने के लिए दी । पर यदि जीव ने अपनी इच्छा से इनका रुख संसार की ओर कर दिया तो यह उसका निजी चयन रहा है । 
यह बिल्कुल सही है कि हर जीवात्मा अपने कर्म संस्कारों से बद्ध है और उसके भीतर जो तीन गुण हैं वे समय समय पर उभर कर नाच नचाते हैं । 
जो सो भीतर से जो इच्छाएं उपजती हैं वे इन्हीं बीजों के कारण उपजती हैं । 
सो साधना निर्विकार व निर्विचार करने की ओर की यात्रा है । 

गुरूदेव कहते हैं कि जब साधक ऐसा हो जाता है तो भीतर की यात्रा आरम्भ होती है । उससे पहले तो मात्र चमकारे ही मिल रहे होते हैं। 
महाराजश्री कहते हैं कि सम्पूर्ण समर्पण क्यों कठिन है क्योंकि साधक यहाँ निर्विचार व निर्विकार हो चुका होता है । सम्पूर्ण सम्पर्ण मानो परमेश्वर साक्षात्कार ! उदाहरण हमारे गुरूजन, मीरा बाई, गुरू नानक देव, रमण महर्षि , श्रीरामकृष्ण परमहंस , इत्यादि ! 
जो सम्पूर्ण सम्पर्ण की अवस्था होती है वहाँ तो निजी विचार ही नहीं उठते वहाँ मन ही नहीं होता वहाँ राम के सिवाय कुछ न दिखता है न होता है ! मन समिष्टी मन हो गया होता है ! वहाँ जो देह है वह राम के कर्म करती है , ऐसा सब गुरूजनों ने कहा है। पूज्यश्री स्वामी जी महाराजश्री ने समर्पण कर्म के पश्चात राम के कर्म का भी उल्लेख किया है कथा प्रकाश में ! मानो कि राम यहाँ स्वयं कार्य कर रहे हैं ! यह समर्पण कर्म के पश्चात कहा है ! 
महाराजश्री तभी कहते हैं यात्रा बहुत लम्बी है । अंतिम स्वास तक नहीं रूकना ! 
महाराजश्री कहते हैं स्वयं को देखना है व स्वय को सुधारना ही आध्यात्म है । बाकि सब धार्मिकता है – सत्संग जाना, मंदिर जाना, हनुमान जी को मत्था टेकना, माता रानी को टेकना, श्रीरामशरणम् जाना, अमृतवाणी जी का पाठ करना , इत्यादि , इत्यादि , धारमिकता है ! हमें आध्यात्मिक बनना है ! स्वयं को देखना व स्वयं को सुधारना !  
श्री श्री चरणों में

3 thoughts on “FAQ – इच्छाएं व समर्पण 

    1. बार बार उसे ऐसे मंत्र से भर दें कि मंत्र आपका मार्गदर्शन करने लग जाए

      हम ” राम ” मंत्र लेते हैं .. सो राम मंत्र का उच्चारण करते समय उसके गुणों के बारे में चिन्तन करने से उसके गुण हम में आने आरम्भ हो जाते हैं .. हे राम आप तेजोमय हैं, आपके नाम से समस्त ब्रह्माण्ड हैं, आप कण कण में हैं, आप प्रेम के स्रोत हैं, आप में हर तरह की शक्ति विद्यमान है, आप सबके माता पिता व बंधु हैं, आप जैसा मित्र कहीं और नहीं मिल सकता न ही प्रेमी, आप परम पवित्र हैं … इत्यादि इत्यादि !
      कुछ समय अपने आप को दीजिए और ऐसा करिए… निरन्तर अभ्यास से आप स्वयं में change महसूस करेंगे .. 21 days करके देखिएगा बिना break के !

      राम राम

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