सद्व्यवहार, भक्ति व मुक्ति 

July 26, 2017

प्रश्न : क्या जिसने सद्व्यवहार किया हो सारी उम्र पर परमेश्वर का नाम न जपा हो, क्या वह भव सागर से पार हो सकता है ? 

संसार में बहुत विभिन्न तरह के लोग होते हैं और उनके भीतर क्या होता है हम नहीं कह सकते । 
भव सागर से पार होना मतलब परमेश्वर साक्षात्कार, स्वयं को जानना, जन्म मरण से मुक्ति । 

यह तब सम्भव है जब जीव की आत्मा से हर प्रकार का अनावरण उतर जाता है । उसका अस्तित्व मिट जाता है और वह देह में होते हुए भी सत्य स्वरूप में ही विचर रहा होता है । 

प्रभु ने आश्वासन दिया है कि जो अंत समय मुझे सिमरता जाता है वह मुझे ही पाता है ! 
सद्व्यवहार दो तरह से होता है । एक है अच्छा आचरण सबके प्रति , व्यवहारिक रूप से । एक है सब में परमेश्वर देखकर सद्व्यवहार करना । यह दोनो चीज़ें बाहर के व्यवहार से पता नहीं चल सकती कि भीतर क्या है ! 
परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि जब हम बिना भक्ति से अच्छे कर्म करते हैं तो हम ” बासी” खा रहे होते हैं। मानो कि पिछले जन्मों की कमाई खा रहे हैं, कि हमें संस्कार में वह स्वभाव मिला ! 
पर जीवन केवल यहीं तक सीमित नहीं है न ! देह के बाद भी तो यात्रा है ! सो उस यात्रा की तैयारी नहीं हुई ! 
अच्छे कर्म का फल अच्छा । मानो कर्म में ही रहे । कर्म जले नहीं । सो जन्म मरण का चक्कर टूटा नहीं । 
कर्म फल जलने के लिए सतत राम नाम सिमरन व सम्पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है । जो यह अंत समय तक कर गया वहाँ सम्भावनाएँ होती है परमेश्वर के श्रीचरणों में विलीन होने की ! 

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