Monthly Archives: August 2017

गुरू परमेश्वर के प्रतिनिधि 

September 1, 2017

आज का सुविचार 
सच्चे गुरू परमेश्वर के प्रतिनिधि होते हैं । परमेश्वर के गुणों का परमेश्वर की शक्तियों का , परमेश्वर की कृपाओ का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह प्रतिनिधि तभी सम्भव है जब वे स्वयं उन जैसे हो जाएँ । 
सच्चे गुरू की “मैं” परमेश्वर मे पूर्ण रूप से विलीन हो गई होती है जिससे उनका अपना कुछ नहीं रहता । केवल परमेश्वर के आसरे ही वे होते है। उनका अपना मन भी नहीं रहता , समिष्टी मन ( परमेश्वर का मन ) ही उनके लिए केवल रह जाता है । 
उनकी ” मैं” के विलीन होने से उनके भीतर परमेश्वर का तत्व ही कार्य करता है । वही ऊर्जा जो नए फूल लेकर आती हैं वही ऊर्जा उन में जागृत हो गई होती है । और इसी लिए उनमें असीमित आकर्षण होता है ! 
तत्व के रूप में तो वे ब्रह्माण्ड के हर प्राणी पर कृपा बरसाते हैं पर देह में सीमित होने के कारण उन्हें अपने अपने क्षेत्र दिए होते हैं जहाँ वे असंख्य आत्माओं का उत्थान व उद्धार करते हैं । 

क्योंकि गुरू परमेश्वर के प्रतिनिधि होते हैं इसलिए उनका कार्य बहुत ही कठिन होता है । असंख्य जीवात्माओं का उत्तरदाइत्व उन पर होता है । 

यदि वे अपने कार्य का दुर्पयोग करते हैं तो उन्हें भारी क्षति का भी सामना करना पड़ता है । 
हर जीवात्मा के गुरू होते हैं। कइयों जीवात्माओ को उनके भौतिक रूप के संग लीला का सौभाग्य मिलता है । जो जीवात्माएं भौतिक गुरू को नही भी मानतीं उनके भी आलौकिक जगत में गुरू होते हैं जो सूक्ष्म रूप से उनका मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। 
हमारा अति अति सौभाग्य कि हमे ऐसे उच्च कोटि के संत गुरू के रूप में मिले। उन परम पूजनीय गुरूतत्वों को हर ओर से प्रणाम , अंदर व बाहर दोनों जगह प्रणाम व साष्टांग नमन । 
आज इस अकारण कृपा के लिए परमेश्वर का बारम्बार धन्यवाद । 
मंगलमय दिवस 

सकाम प्रार्थना 

Aug 31, 2017
सकाम प्रार्थना 


अपने व अपने बंधुओं के सुख स्वास्थ्य के लिए की गई प्रार्थना सकाम प्रार्थना है । जैसे कि किसी प्रयोजन से सवा करोड संकल्प लेना । तो इस दौरान पूज्यश्पी महाराज कहते हैं कि विश्वास से जप करना , संकल्प के दौरान संयम रखना व सत्य का पालन करना आवश्यक है । 
जप बहुत ही भाव चाव से करना चाहिए । पूज्य महाराज जी कहते हैं कि यदि किसी रोगी को औषधि दी जा रही है और साथ ही प्रार्थना रूपी जप उसके लिए किया जाए तो वह भी बहुत लाभ दायक होता है । 
दूसरे के लिए कार्य दत्त चित होकर करना चाहिए । वहाँ राग द्वेष व हानि की भावना नहीं आने देना उचित है । यह विश्वास बहुत दृढ़ निश्चय के साथ रखने को कहा है कि प्रार्थना से दूसरे कोअवश्य लाभ होगा ।

नाना उक्तियाँ ( ३७-३९)

Aug 30, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि जब तक चक्की में आटा है तब तक पिसता दाता है मानो कि जब तक स्वास्थ्य है नाम आराधना कर लेना चाहिए नहीं तो बाद में तो जब घूमना फिरना बंद हो जाए , तो खाया पिया भी नहीं जाता, साधना कहां से हो! 
पूज्य महाराज जी समझाते हैं कि जिस तरह बनिये की नज़र अच्छे सौदे पर होती है, उसी तरह हमें भी खूब नाम जाप व ध्यान करना चाहिए ! बार बार समय का इतना अच्छा सौदा नहीं मिलता । 
यह समय व शरीर व इंद्रियाँ साधना के लिए अनमोल हैं इन्हें कंकर के भाव से यूँही संसारिकता में गँवाना नहीं चाहिए ! इनका नाम आराधन के लिए सदुपयोग करना चाहिए । 

परमेश्वर के प्रेम की अभिव्यक्ति- सच्चे संतों का जीवन में आना 

August 31, 2017

आज का सुविचार 
परमेश्वर के अथाह प्रेम की अभिव्यक्ति – सच्चे संत की चरण शरण मिलनी 
सच्चे संत के रूप में प्रभु अपना बनाने आते हैं ! तभी सच्चे संत की देह को नहीं बल्कि उनके तत्व को पूज्य मानते हैं ! 

हमारे गुरूजनों ने तो देह की पूजा की वर्जित की सदा ताकि देह पर ध्यान ही न केंद्रित हो पर परमेश्वर का आकर्षण व नूर ही देह में ऐसे छलकता है कि देह पर न जाना सम्भव नहीं ! 
पर गुरूजन कहते हैं कि इस आकर्षण का भी कारण है कि मन संसार से हटकर संत पर लग जाए । 
पर सच्चे संत अपनी देह तक कभी भक्तों को अटकाते नहीं , वे तो उनकी ओर केंद्रित करने में सदा लगे रहते हैं जो अपने भक्तों से अथाह प्रेम करने आया होता है – परमेश्वर ! 
परमेश्वर संतों के माध्यम से ही भीतर का मल स्वयं धोते हैं, संतों के माध्यम से संतों के शुभ कर्म बलहीन भक्तों को देते हैं, संतों के माध्यम से ऐसे प्रेम की बौछार करते हैं जो कभी भक्तों ने देखा न सुना हो । संतो के माध्यम से साधकों की आत्मा का उत्थान होता है व अंतत: उनकेॉचकणों में विलीन होने का अतिदुर्लभ सौभाग्य प्राप्त होता है ! 
जीवन मे सच्चे संत का मिलना फिर उस जीवन में रूपांतरण आना परमेश्वर के अथाह व अकारण प्रेम की ही अभिव्यक्ति है ! 
परमेश्वर की इस अकारण कृपा का बारम्बार धन्यवाद व आजीवन चिरऋणी  

नाना उक्तियाँ ( ३४-३६)

Aug 30, 2017

परम पूज्य़श्री श्री स्वामीजी महाराजश्री युवा बच्चों से कह रहे हैं कि यौवन में ऐसे सुकर्म करो जिससे आपकी जगत में प्रतिष्ठा बन जाए । क्योंकि जिस तरह वसंत के बीत जाने पर अंगूर फूलते नहीं हैं उसी तरह समय हाथ से निकल जाने पर कुछ कर नहीं सकते । 
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि जब तक शरीर हृष्ट पुष्ट है तब तक खूब कर्म सुधर्म करने करने चाहिए , खूब साधना करनी चाहिए और व्यवहार में लानी चाहिए । यौवन के चले जाने पर शरीर में बुढ़ापा आ जाता है और वह बाँस के भाँति ही बन जाता है । 
इसलिए पूज्य सद्गुरू महाराज कहते हैं कि जी जान ले मेहनत करनी चाहिए और जब जीवन में वृद्धि हो रही हो तभी खूब दान देना चाहिए , बाद में करेंगे, इसका इंतज़ार नहीं करना चाहिए ! जिस तरह पतझड़ आने पर न ही छाया मिलती है न ही फल लगता है, इसी तरह समय के बढ़ते जाने से देह में भी जान नहीं रहती । 
तभी पूज्य गुरूदेव को भी युवा बच्चे साधना करें, व साधना रत रहें , उन्हें यह सब सदा बहुत पसंद रहा है ! 

परमेश्वर की सर्वोच्य कृपा – मानव जन्म 

Aug 30, 2017

आज का सुविचार 

परमेश्वर की सर्वोच्य अकारण कृपा – हमे मानव जन्म दिया । 
इस जन्म की संतों के इतने गुण गाए हैं कि कुछ कहा ही नहीं जा सकता ! 
यही वह जन्म है जहाँ से हम अपने घर वापिस जा सकते हैं। यही वह जन्म है जहाँ से हम परमेश्वर से एक्य प्राप्त कर सकते हैं ! यही वह जन्म है जिससे हम स्वयं अपने आप को जान सकते हैं! यही वह जन्म है जहाँ से परमेश्वर के रहस्यों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है ! यही वह जन्म है जहाँ परमेश्वर के प्रेम को सम्पूर्ण रूप में महसूस कर सकते हैं और स्वयं प्रेम स्वरूप में बन सकते हैं ! यही वह जन्म है जहाँ अपने अहम् को पूर्ण रूप से मिटाकर दिव्यता के प्रवाह को बहने दे सकते हैं। यही वह जन्म है जहाँ हम अपने पिछले ऋण उतार सकते हैं और जन्म मरण का चक्र समाप्त कर सकते हैं । यही वह जन्म है जहाँ पूर्ण रूप से पाप मिट सकते हैं और शुभता व्याप्त हो सकती है ! यही वह जन्म है जब परमेश्वर का यंत्र बन कर प्रकृति से एक हो सकते हैं ! 
गुरूजन कहते हैं कि यदि स्वयं को न जाना तो जीवन व्यर्थ गया । 
पशुवत जीवन ही है यदि पैदा हुए , बड़े हुए , विवाह हुआ, बच्चे हुए , कमाया, वृद्ध हुए और मर गए ! पशु भी यही करते हैं ! 
पशुवत जीवन से हटकर अपनी आत्मा का उत्थान किया , अपनी कमज़ोरियों पर विजय पाई , मानवता जीवन में लाए व स्वयं को जाना, तभी मानव जीवन का सदुपयोग हुआ व परमेश्वर का सही माएने में धन्यवाद भी ! 
आज परमेश्वर की इस अकारण कृपा हम बहुत गम्भीरता से विचार करें वह भीतर आजीवन जाते रहने का निश्चय करें। मानव होने का सही माएने में एहसास करें और गद् गद् होकर धन्यवाद के साथ हर पल उसी में रहें ! 
मंगलमय दिवस

नाम जाप सर्वोच्य प्रार्थना 

Aug 29, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि प्रार्थना का सबसे उच्च रूप नाम जाप है । आप नाम जाप कर रहे हैं , मानो आप निष्काम प्रार्थना स्वयमेव ही कर रहे हैं । 

नाम जाप का मतलब , परमेश्वर का प्रेम पूर्वक आह्वाहन करना । जब प्रेम बीच में हो तो परमात्मदेव का सानिध्य अपने आप प्राप्त हो जाता है । 

गुरूजन कहते हैं कि जब प्रार्थनाशील व्यक्ति अपने आराध्य देव को नाम मे विराजित जान कर पुकार करता है तो उसे लीनता आसानी से व जल्दी प्राप्त हो जाती है ! 
सो जो साधक नियमित रूप से प्रेमपूर्वक नाम जाप करते हैं तो उनका जाप ही उनकी प्रार्थना बन जाता है और जार ही ध्यान व मौन में प्रवेश करवा देता है । इसी तरह ध्यान व मौन अपने आप में प्रार्थना ही हैं । 

भोजन प्रसाद है 

Aug 28, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि राम की दी गुई रूखी सूखी रोटी भी प्रसाद बन जाती है । और श्रम से जो कमाई की गई हो वह अमृत बन जाती है । 

मिल बांट कर , दूसरों से आदर भाव के साथ खाना चाहिए । इकट्ठे खाने से भक्ति बढती है और प्रेम , मेल मिलाप में बढता है । 

अन्न में किसी तरह का संशय नहीं करना चाहिए , अन्न तो दान मिलता है परमेश्वर से । भोजन में भय व पाप के भाव रखना अतिश्य मानस रोग माना जाता है । 
Param PujyaShri Shri Swamiji Maharajshri says that anything given by Ram , be it simple good is a prasaad from Him. And the earning that is earned by hardwork is Nectar in real life . 

Sharing and eating with due respect to others increases devotion and increases love in relationships. 

One should never have any kind of doubt in food. It is actually a kind gift of the Lord. To endorse a feeling of fear or sin in food is considered as an ailment ! 

परमेश्वर अपेक्षा रहित हैं 

Aug 29, 2017

आज का सुविचार 
परम प्यारे परमेश्वर हमसे किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखते , बस देते जाते हैं । 
प्रभु का सेवभाव देने का है । कोई उन्हें माने या न माने , कोई पूजे या न पूजे , कोई प्रेम करे सा न प्रेम करे, वे देते ही जाते हैं । 
ऐसा नहीं कि भारत को देंगे और अमेरिका को नहीं या चीन को देंगे और अफ़्रीका को नहीं !! न ! उनके लिए कोई किसी तरह का कोई भेद भाव नहीं होता ! वे बिना भेद भाव के देते जाते हैं ! 
उनका स्वभाव पर वहाँ अलग सा हो जाता है जहाँ उनका कोई बन जाता है और जिसे वे अपना कह देते हैं ! वहाँ वे न केवल देते हैं पर ध्यान भी रखते हैं, चिन्ता भी करते हैं, हर पल नज़र भी रखते हैं ! कितने रूप धर कर मन की उल्झन सुल्झाते हैं । जहाँ किसी को नहीं भेजते वहाँ स्वयं भी चले जाते हैं ! 
पूज्य गुरूदेव ने एक कहानी सुनाई कि कैसे अपने भक्त के लिए प्रभु स्वयं वैद्य बनकर आए और तीन दिन तक सेवा की जब तक उनका प्यारा स्वस्थ न हो गया ! सो कितने लोगों को विश्व में दस्त लगते हैं पर कुछ एक के लिए वे स्वयं वैद्य बनकर चले जाते हैं ! 
इतना करते हैं सब के लिए किन्तु कभी धन्यवाद तक की अपेक्षा नहीं रखते । कभी जताते तक नहीं कि मैंने तेरे लिए यह यह किया ! ऐसा ऐसा किया । बस चुप करके करते जाते हैं ! कितना अद्भुत स्वभाव है परमेश्वर का ! 
अपेक्षा से तो दुख व अशान्ति ही आती है ! सो सुख व शान्ति के स्रोत के पास अपेक्षा होनी असम्भव ही है फिर ! 
आज परमेश्वर के इतने अनुपम गुण के आगे नत्मस्तक होकर , हम भी उनका यह गुण अपनाने की कोशिश करते हैं । करते जाएँ कार्य देते जाएँ किन्तु अपेक्षा का बीज कभी भी भीतरी आने पाए ! 
मंगलमय दिवस 

अखण्ड जाप 

Aug 28, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराज़श्री समझा रहे हैं कि लोक हित की प्रार्थना में अखण्ड जाप का बहुत उत्तम स्थान है । 

यहाँ अनेकों व्यक्ति एक स्थान में एकत्रित होकर कहते घण्टे, पहर व दिनों तक अनवरत जाप करते हैं । 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि जो व्यक्ति अखण्ड जाप में भाग ले वह पूर्ण रूप से विश्वासी हो, अपने ईष्ठ देव के वहाँ होने की अभिव्यक्ति समझे तथा बड़े भाव चाव से संयम व सत्य का पालन करे । 

यदि ऐसे जाप में कोई निरपेक्ष सत्य निष्ठ तथा परम शुचिता वाला व्यक्ति भाग ले तो वहां का संकल्प प्रवाह बहुत प्रबल हुआ करता है । तथा जाप का संकल्प फ़लित होने की संभावना बहुत बढ़ जाया करती है । 
स्वामीजी महाराज ने निष्काम अखण्ड जाप में निम्नलिखित पद निर्धारित किया है – 
वृद्धि आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार 

अभ्युदय सद्धर्म का, राम नाम विस्तार