Aug 4, 2017
केवल राम नाम
जब चाह नहीं तो आह भी नहीं जब लेना नहीं तो संशय किसका ?
जब अपना कुछ नहीं .. तो बटोरना क्या ?
जब केवल नाम से मतलब तो स्वार्थ कहां ?
कल स्वामी विवेकानन्द जी का एक पोस्ट पड़ा .. जिसका मूल भाव था कि आसक्ति के कारण हम में स्वार्थ आ जाता है जिससे हम में गलत विचार भी आ जाते हैं ! यह बात घर कर गई ।
कई बार आध्यात्मिक उनन्ति व गुरूजन की कृपा रहे या उनके प्रेम के पात्र बनें यहाँ भी माया जाल बिछा देती है … जिसके कारण बहुत गलत भावनाएँ उपजती हैं ।
पूज्य महाराजश्री तभी कहते हैं कि नाम के सिवाय कुछ करना नहीं कुछ चाहना नहीं जब .. तो बाकि सब तो माया है ! और कुछ नहीं !
आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा की बजाए राम नाम पर गहन गहनतम होते जाएँ तो स्वयमेव ही सब हो जाता है ! पात्र भी स्वयमेव ही बन जाते हैं व कृपा स्वयमेव ही बरसती है ।
धन्यवाद प्रभु !