धरोहर 

Aug 22, 2017

आज चिन्तन की आवश्यकता …
हम अपने बच्चों को श्रीरामशरणम की क्या धरोहर दे कर जाना चाहते हैं … 
ऐसा मंदिर जहाँ भेद भाव नहीं है 

या 

ऐसा मंदिर जहाँ भेद भाव भरपूर है 
जब भेद भाव नहीं होता तो हमारे लिए सब एक होते हैं – नए साधक वरिष्ठ साधक । सबके लिए एक सा सम्मान निकलता है । सबको एक जैसी सेवाएँ मिलती हैं । धन राशी कौन कितनी दे रहा है इसके कारण नज़रें नहीं बदलती । कौन किस औधे पर है इसके कारण जय जय राम और मीठी नहीं होती है । आप मंत्री है या ग़रीब मज़दूर एक सी फ़ोटो व वीडियो बनाई जाती है । भेद भाव नहीं । 

यह बाताएं कि आत्मा एक है , यह आध्यात्मिक केन्द्र है जहाँ केवल आत्मा देखी जाती है । 
या फिर ..
ऐसा मंदिर देकर जाना चाहते हैं जहाँ वरिष्ठ साधकों को अलग मान है और नए तो हैं ही नहीं । ऊँचे साधकों व सामान्य साधकों को अलग सम्मान । प्रिय जनों को विशेष सेवा व सामान्य तो सोच ही नहीं सकता सेवा ! धन राशि मोटी होने पर विशेष स्थान दिया जाता है और विशेष आदर । औधे पर जय जय राम झुक कर होती है । मंत्रियों की प्रणाम करने की वीडियो बनती है पर ग़रीब तो आए या नहीं पता ही नहीं । कि आत्मा तो हम जाप व ध्यान में देखते हैं व्यवहार में हम कुछ अलग हैं । 
कृपया हम सब सोचें कि अपने बच्चों को ,पोते पोतियों को क्या सिखा कर, अपने व्यवहार से क्या धरोहर छोड़ कर जा रहे हैं ! 
बहुत महत्वपूर्ण है इस पर चिन्तन करना , अतिश्य महत्वपूर्ण । 
बच्चे ऐसी चीज़ों पर प्रश्न पूछते हैं …. यही कहते हैं कि बेटा गुरूजन ऐसे नहीं हैं न ही प्रभु । सो जो जैसा करता है करने दो । पर बच्चे अनुकरण करते हैं । यदि वरिष्ठ साधक ऐसा करें बच्चे स्वयमेव वैसा करते हैं । उनके लिए विशेष लोगों के लिए झुकना स्थान देना मन में घर कर जाता है ।  
और फिर यही कहना होता है कि आध्यात्म बहुत व्यक्तिगत है ! बाहर तो सब संसार ही है । 

व्यवहार हमने अपना बदलना है … दूसरे का नहीं …
सो कृपया गम्भीरता से सोचना है हमें … 

🙏🙏

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