Monthly Archives: August 2017

नाना उक्तियाँ ( २७-२९) 

Aug 27, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि हर कर्म बहुत ही शुभ भाव से करने चाहिए किन्तु उन कर्मों के फल की चिन्ता परमेश्वर के अधीन ! फल से हमारा कोई सरोकार नहीं । पूज्य महाराज कहते हैं कि चाहे जैसा रूखा सूखा खाने को मिले कभी भी उसका तिरस्कार नहीं करना । 
अपनी रूखी सूखी में आनन्द लेना चाहिए , दूसरे की थाली मे नज़र नहीं होनी चाहिए । यह केवल भोजन के लिए ही नहीं बल्कि संसारी हर चीज के लिए व अध्यात्म भी !! 
महापाजश्री कहते हैं कि चाहे चने चबा कर ही नाम क्यों न जपना पड़े , यदि दूध घी इत्यादि न मिलते हों तो ! हमें कभी भी दूसरे की वस्तु पर न ही नज़र और न ही लार टपकानी चाहिए ! यह सही नहीं है । 
स्वय जो मिला है उस पर कृतज्ञता भाव से स्वीकार करके सदा ऋणि रहने का ही भाव परमेश्वर भीतर बनाएँ। 
सब आपका 🙏

परमेश्वर श्रेय लेना पसंद नहीं करते 

August 28, 2017आज का सुविचार 


परमेश्वर श्रेय लेना पसंद नहीं करते । वे अपने कार्य का श्रेय दूसरों को देना पसंद करते हैं । 
माँ । नश्वर माँ प्रेम देती है ध्यान रखती है लालन पोष्ण करती है व लाड प्यार करती है ! परमेश्वर ही तो अपना वात्सल्य उड़ेलते हैं । पिता , शिक्षक , भाई बंधु इत्यादि । 

वैज्ञानिक कितने अविष्कार करते हैं ! कहां गुफ़ाओं में इंसान रहता था और कहां दूसरे ग्रहों पर जा रहा है ! परमेश्वर ही है सब ज्ञान देने वाले, कल्पनाएं व योजनाएँ देने वाले पर सारा श्रेय वैज्ञानिक को दे देते हैं । 

कलाकार ! आदि काल से कलाकार परमेश्वर की क्रियात्मक शक्ति से सुंदर अति रमणीय कला कृतियाँ करते आए हैं , परमेश्वर पता ही नहीं लगने देते कि वह उनकी ही ऊर्जा है ! 
नदियों में से शीतलता, पहाड़ों की असीम शान्ति , सागर की गहराई , सूर्य का तेज़ , वनस्पति व धरती का त्याग सब प्रभु से ही तो है । 
और इसी प्रकार संत ! दिव्य व सच्चे संतों में आकर प्रभु अपना प्रेम,वात्सल्य , ज्ञान की अकारण ही कृपा बरसाते हैं , कर्मों को धोते हैं और कहते हैं कि यह तो संतों के कारण ही हो सकता है ! वहाँ भी छिप जाते हैं ! और सारा श्रेय अपने प्रेमियों को दे देते हैं ! 
कितना विशाल हृदय है और कितना मैं का शून्यपन ! जो जितना प्रभु के निकट होते जाता है , इन जैसे ही बनता जाता है ! 
सो आज हम भी परम प्यारे का यह गुण स्मरण रखते हुए घर पर या काम पर दूसरों को खुले हृदय से श्रेय दें । जितना हम अपने “मैं” को घोल सकें और जितना याद कर सकें कि हर संबंध के रूप में केवल परमेश्वर ही कार्य कर रहे हैं हम तो मात्र पाइप ही हैं ! 
मंगलमय दिवस

कोई भी बात सम्पूर्ण नहीं होती 

Aug 27, 2017

कोई भी बात सम्पूर्ण नहीं होती । सदा सजग रहिए ~ डॉ गौतम चैटर्जी 

आदरणीय डॉ चैटर्जी जी ने उदाहरण देकर समझाया कि हर बात या पंक्ति के बीच ज्ञान छिपा होता है । कही गई पंक्ति या लिखी गई पंक्ति कभी सम्पूर्ण नहीं होती । एक साधारण साधक मात्र १३ करोड़ जप कर ले तो यह जरूरी नहीं कि वह संत बन जाए  ।वह क्यों? क्योंकि किस तरह वह १३ करोड़ जप किया गया है वह केवल गुरूतत्व या परमेश्वर ही जानते हैं । मात्र गिनती करके १३ करोड़ जप संख्या पूर्ण की या अनन्त भाव चाव से जप किया गया !! साधना के सत्य को पूर्ण रूप से समझने के लिए अनन्त जन्म साधना के लग जाते हैं। 
परम पूज्यश्री महाराजश्री ने कहा है कि हमारी नज़र बहुत सीमित है । हम केवल उतना देख सकते हैं जितनी हमारी नज़र । यदि दूरबीन लगा लें तो कुछ और आगे देख सकेंगे और यदि परमेश्वर की दृष्टि मिल जाए तो पिछले कितने जन्म व आगे की सब गतिविधियाँ पता चल सकती हैं । सो हमारे समक्ष क्या परिस्थिति है वह क्यों है वह परमेश्वर भलि प्रकार जानते हैं कि क्यों है ! इसलिए उनकी व्यवस्था पर हमें क्यों इत्यादि नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि हम पूरी बात सम्पूर्ण रूप से नहीं जानते । 
साधारण संसारी मामलों में भी किसी भी बात को लेकर हमें धैर्य रखना चाहिए । हम एक दम निष्कर्ष  पर पहुँच जाते हैं । धैर्य रखने से हमें स्वयमेव धीरे धीरे बात का पूर्ण रूप पता चल जाता है । 

और साधना में भी । जब हम स्वाध्याय करते हैं तो पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि स्वामीजी महाराजश्री से प्रार्थना कीजिए कि पंक्तियों के बीच का रहस्य हमें समझाएं । वे क्या कहना चाह रहे हैं ! 
धैर्य ! किसी भी बात को सुनें या पढें तो धैर्य रखना सीखना है हमं ! और यह साधना से हु सम्भव है । ध्यान से ही सम्भव है । गुरूकृपा से ही सम्भव है ।  

पर सुधार प्रार्थना के नियम 

Aug 27, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी पर सुधार हेतु समझा रहे हैं कि कभी भी किसी गलत वजह के लिए अन्य के लिए प्रार्थना नहीं करनी । कभी किसी को हानि पहुँचे या किसी का नुक़सान हो । या दो पक्षों में से एक विजयी हो या किसी झूठे जन को सच्चा बनाने के लिए प्रार्थना इत्यादि करनी वर्जित है । 

कई बार हमारे पास प्रार्थना दो पक्षों से भी आती हैं । हम नहीं जान सकते कि कौन सच्चा है या कौन गलत । हम को नौकर ठहरे किसी को न नहीं कह सकते। इसलिए परमेश्वर से यही विनती गुरूजनों ने सिखाई है कि भगवन यदि आपको ठीक लगे तो कृपया कृपा कर दीजिए ! यदि आपकी इच्छा हो तो शान्ति दे दीजिए ताकि साधना कर सकें , इत्यादि। 

प्रार्थना करने वाले को अपनी प्रार्थना पर ढींग मारनी या उसका वर्णन करना भी वर्जित है । यदि हमें ध्यान इत्यादि में कुछ आदेश किसी के लिए मिलता भी है तो भी हमें प्रार्थना करनी ही चाहिए ! पर हम गलती तर बैठते हैं और चौधरी बन कर चले जाते हैं । नौकर बनना चाहिए । नौकर जैसी वृत्ति परमेश्वर दे तो सदा हैसियत में रहते हैं । रहना तो मालिक रो समक्ष है ! 
प्रार्थना को आजीविका का साधन बनाना भी गुरूजनों ने निषेध किया है । प्रार्थना के कार्य अति शुद्ध सरल व बाल भाव से ही करने का आदेश है। 

सतत सिमरन व स्वयं की खोज 

Aug 27, 2017


सतत सिमरन हमें अपने आपनी खोज में सहायक होता है ~ डॉ गौतम चैटर्जी , positive mantra 
पूजयश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री कहते हैं कि जब राम के बिना कुछ बोलना नहीं तो बोलना क्यो? जब राम के बिना कुछ चाहना नहीं तो सोचना क्यों ? 
पर ऐसा नहीं होता ! हमसे व्यर्थ बोला जाता है , गृहस्थ हैं! और सोचने का तो क्या कहें ! 
पर स्वयं को जाने बिना , अपने आप से मिले बिना , परमेश्वर साक्षात्कार हुए बिना, मानव देह छोडना माएने नहीं रखता ! भक्ति प्रकाशजी में इतना सुंदर अपने बारे में पढ़कर, गीता जी में इतना आकर्षक परवेश्वर प्रेम अध्ययन करके, इतने उच्च कोटि के गुरूजन पाकर , स्वयं को न जाना, मानो मानव जन्म यूँ ही चला गया ! 
सो यह व्यर्थ न जाए , इसके लिए गुरूजनों ने कृपा स्वरूप झोली में डाला सिमरन ! परमेश्वर की याद! परमेश्वर का स्मरण ! किसी तरह भी प्रभु को याद करें ! हर पल उनमें रह कर , गुरूजन आश्वासन देते हैं कि प्रभु को , स्वयं को जान पाएँगे हम ! उनसे एकाकार कर पाएँगे हम ! 

दिन में दो बार याद नहीं करना , मानो केवल ध्यान में याद नहीं करना ! हर सांस , हर पल उनको याद करना है ! 
कितना प्रेम करते हैं हमसे प्रभु कि हमें ऐसे गुरूजन दे दिए ! नहीं तो हम राह के कंकड़ों को कौन देखता ! न केवल गुरूजन दिए बल्कि स्वयं भीतर विराजमान हो गए ! इतना किया हमारे लिए , सो हमारा भी बनता है कि उन्हें हर पल पलकों में बिछा कर रखें ! हर धडकन में स्मरण करें ! तो ही उनसे मिलन हो पाएगा! तो ही जीवन में शान्ति आ पाएगी ! नहीं तो बस ऐसे ही तरसते चले जाएंगे । 
हर पल हर घडी सुमिरन हो तेरा 

ऐसा बनादो प्रभु जीवन मेरा 

शरणागत

Aug 27, 2017

रविवार सत्संग का सारांश 

परम पूज्य़श्री डॉ विश्वामित्र जी के मुखारविंद से 
प्रभु ने अर्जुन को कितने सारे घर दिखाए, विषादयोग, ध्यानयोग, विभूतियोग, इत्यादि इत्यादि और अठारहवें अध्याय में जाकर कहते हैं कि तू सब सम्प्रदायों को छोड़ कर एक मेरी शरण में आ जा । मैं तुझे हर संकट, भय, असुरक्षा, अशान्ति, पापों से मुक्त कर दूँगा । 
अर्जुन भी विभिन्न घरों में गया पर कोई घर उसे अपना न लगा 
जब तक अपने घर नहीं जाते तब तक शान्ति नहीं । शान्ति तो केवल अपने घर जाकर ही मिलती है । जब तक अंश अंशी से ले मिल जाए तब तक चैन नहीं । जो आप महसूस करते हैं वह तो छुट पुट सा आनन्द है । वह नही ! जिसे हम परमानन्द कहते हैं परमेश्वर साक्षात्कार कहते हैं ! जीवन सम्पूर्ण नहीं होता बिना अपने असली घर गए ! 
तू सब कुछ छोड़ कर एक मेरी शरण में आ जा !
शरणागत 
यह शब्द न जाने हमने कितनी बार सुना है । भक्ति की पराकाष्ठा है शरणागति । भक्ति से भी पार ! तेज़ी से पहुँचता है यहा साधक । शरणागति । 

क्या मतलब है इसका ? कि अब मेरी कोई इच्छा नहीं !

नाना उक्तियाँ ( २४-२६)

Aug 26, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री स्पष्ट करते हैं कि यदि पाप कर्म का बीज बोया है तो फल जब उसका दुख मिलता है तो क्रोधित व परेशान नहीं होना । हमें यह समझना है कि यह हमारी ही खेती है जो हमने ही बीजी थी और अब वह सब सामने आ रही है । 
पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि जो कर्ता होगा उसके संग ही कर्म जुड़ेगा । जिस तरह देह के संग उसकी छाया जुड़ी होती है उसी तरह कर्ता के संग पुण्य व पाप जुड़ा होता है । 
सृष्टि के नियमानुसार कारक ही पाप व पुण्य में लिप्त रहता है पर जिन्होंने अपने सर्व कर्म हरि को अर्पण कर दिए हों, दो परमेश्वर देवाधिदेव के हो गए हों वे सदा ही निर्लेप रहते हैं , उन्हें कोई कर्म बाँधता नहीं ! 

परमेश्वर को गुप्त रहना पसंद है 

August 27, 2017

आज का सुविचार 
परमेश्वर को छिपे रहना बहुत पसंद है ; वे अपने आप का प्रदर्शन करना भी नहीं पसंद करते । 
आदि काल से, जब से प्रभु ने सृष्टि रचना की, वे तब से छिप हए । अपने सूक्ष्म रूप में आकर नश्वर नयनों से ओझल सदा ही रहे ! हर कार्य उनसे ही हो रहा है पर किसी को पता नहीं चलने दिया के वे ही कर्ता हैं । जीवन की प्रत्येक ऊर्जा के स्रोत वे ही हैं पर स्वयं को छिपाए हुए ही रखा । ब्रह्माण्ड के सृष्टि के समस्त कार्य सुचारू रूप से चल रहे हैं पर पता नहीं लगने दिया कि वे ही सर्वशक्तिमान सब कर रहे हैं ! गुप्त रहना उनका बहुत ही अनूठा स्वभाव है । 
पर यह सब वहाँ बदल जाता है जब कोई जिज्ञासु या कोई भक्त उनकी कृपा से उनकी खोज या उनकी प्रीति के लिए निकल पड़ता है ! जब भक्त सब बंधनों को ( इच्छाओं व संबंधों के बंधनों को) एक तरफ़ करके केवल उनका हो जाता है तब वे कहीं छिप नहीं सकते ! गुरूदेव कहते हैं कि अब वे छिपे भी तो कहां छिपें । हर ओर उनके प्यारे को वे ही नज़र आते हैं ! अब यहाँ जब प्रभु को पक्का यकीन हो जाता है कि इसे केवल मुझसे ही लेना देना है , न मेरी शक्तियों से, न सम्पदाओं से, न वैभव से, तो वे अपने भेद उसके समक्ष खोलना आरम्भ कर देते हैं । तब वे भी अपने भक्त के पूर्ण रूप से हो जाते हैं । 
सो आज प्रभु के इस अनूठे स्वभाव का मन ही मन हम मनन करके आनन्द ले सकते हैं और कोशिश कर सकते हैं कि हम भी इनके जैसे हो जाएँ !   

पर सुधार हेतु प्रार्थना 

Aug 26, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री समझा रहे हैं कि यदि प्रार्थना़ील व्यक्ति निष्काम भाव से किसी अन्य के सुधरने के लिए भी प्रार्थना कर सकता है । वह किसी दूर नगर व देश में भी हो सकता है । यदि उस व्यक्ति को पता हो तो भी ठीक है, नहीं पता हो तब भी ठीक है , सुधार तब भी संभव है । 
हमारे गुरूजन साधकों के लिए ऐसे ही रात रात भर जग कर प्रार्थनाएँ करते हैं। जिन साधकों में सुधार आए हैं वे इन्हें प्रार्थनाओं के ही कारण सम्भव होते हैं । 

गुरूजन तो उनके लिए भी प्रार्थना करते जो उनके निन्दक रहते हैं । 

ऐसे प्रार्थना़ील सत्य निष्ठ निरपेक्ष साधक भी अपने निंदकों के लिए क्षमा याचना करते हैं व सुधरने के लिए प्रार्थनारत रहते हैं। चाहे देश में भी कोई अति निन्दनीय व्यक्ति या राजनेता ही क्यों न हो , प्रार्थनाओं के बल पर वह शक्तिहीन व सकारात्मक कार्यों में अवरोधक बनने से दूर हो जाता है ! 
सो प्रार्थना स्वयं अनुभव करने की चीज है ! यदि उन भावों से व उस मन से की जाए जैसा गुरूजनों ने उल्लेख किया है तो वह राम का कार्य बन जाती है । 

ज्ञान को व्यवहार में लाना है 

August 26, 2017


अपने ज्ञान को व्यवहारिक रूप से संजो कर रखें ~ डॉ गौतम चैटर्जी , positive mantra 
परम पूज्यश्री गुरूदेव डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री कहते हैं कि कितना अध्ययन किया कितना पढा कितना सुना कितना जाप पाठ किया , पर जब तक जीवन में नहीं उतारा तो वह सब व्यर्थ । हम कंगाल के कंगाल । 
कैसे संजो सकते हैं इतने सुंदर ज्ञान को ? जीवन में उतार कर। वैसा बनकर जिसे पढ़कर सुनकर इतना आनन्द आता है । जब हम वैसे बन जाते हैं तो ज्ञान हमारे भीतर व्यवहारिक रूप से सदा के लिए बस जाता है! 
कल ही पूज्य गुरूदेव बोले कि जब भी वे झाबुआ जाते हैं, उन्हें हर बार वहाँ से सीखने को कुछ मिलता है । वह ग्रामीण क्षेत्र है। झाबुआ में कई नहर भी हैं। पर नगरों में इतना रूपान्तरण नहीं देखा गया जितना कि ग्रामीण क्षेत्रों में । वहाँ के लोग सरल है । समझते नहीं जल्दी पर जब समझते हैं तो पूरी तरह अपनाते हैं । उनको मानो कोई और बात करने से मतलब ही नहीं । हर समय राम राम राम राम । एक ग्रामीण क्षेत्र में कल उद्धाटन किया । वहाँ हर रोज एक हत्या होने का नियम था । एक हत्या दिन की होनी ही होती थी ! पर जब से कुछ वर्षों से दीक्षा हुई , (वहाँ सबसे पहले श्रीरामशरणम् बना था पर एक कमरे से में । तो कल बड़ा श्रीरामशरणम् के निर्माण के पश्चात उद्धाटन था ) और राम नाम भीतर बसा… तो पिछले वर्ष उन्हें crime free area घोषित कर दिया । यहां बैठे आप विश्वास ही नहीं कर सकते कि वे कैसे बन गए हैं। पहले तो उनकी भाषा में समझाना पडता था पर अब तो राम नाम के सिवाय कुछ नहीं बात करते । 
जीवन में रूपान्तरण आना ही वास्तविक ज्ञान का व्यवहारिक रूप है ! 
गुरूदेव कहते हैं राम जैसे बन जाना है , तभी मिल पाएँगे उनसे ! राम से राम बनकर ही मिला जा सकता है !