श्रीरामशरणम्

श्रीरामशरणम् 

क्या है पूज्यश्री स्वामीजी सत्यानन्द जी महाराजश्री का श्री रामशरणम् 
आध्यात्मिक शान्ति , प्रेम एवं अनुशासन का केन्द्र है श्री रामशरणम् । 
इसका निर्माण पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने किस प्रयोजन से किया ? 
आज के भौतिक युग में मानसिक असंतोष एवं तनाव ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुके हैं, रहने और खाने की उधेड़बुन इंसान को स्वकेन्द्रित कर परमार्थ से दूर करती जा रही है । सेवा , त्याग , समर्पण ,परमार्थ , अनुशासन और प्रेम आदि मानवीय गुण अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। हिंसा , घृणा ,विद्वेष मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित मानव, भारतीय-संस्कृति , सभ्यता एवं यहाँ की आत्मा में बसे परमात्मा से कोसों दूर होता जा रहा है । 
ऐसी स्थिति में परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के आध्यात्मिक संस्था के सत्संग स्थल उक्त वर्णित तमाम विषमताएँ को दूर कर राम-नाम के माध्यम से मानव मात्र में आध्यात्म एवं प्रेम का संचार कर रहे हैं , वह जन-कल्याणकारी तो है , साथ ही उससे देश का भी उत्थान होगा । 
क्या यह स्थल जन कल्याण के लिए सेवा करता है ? 
यह आध्यात्मिक केन्द्र है सो आध्यात्मिक रूप से ही सेवा की जाती है । सत्संग, सेवा, जाप, ध्यान व प्रार्थनाओं द्वारा जनता के कष्ट निवारण हेतु गुप्त सेवा की जाती है । 

यहाँ जो सेवाएँ की जाती हैं वे गुप्त रूप से होती हैं, उनका जन मानस में प्रचार नहीं किया जाता । 
सेवा व पर कार्य को गुप्त रखना पूज्य स्वामीजी महाराजश्री का सदा उद्देश्य रहा है ! 
कितनी ग़रीबी है, लोग भूखे होते हैं, हस्तपताल नहीं होते , तो श्रीरामशरणम कैसे ऐसे लोगों की कैसे सेवा करता है ? देश के सुधार के लिए क्या योगदान देता है ? 
श्रीरामशरणम आध्यात्मिक केन्द्र है । यहाँ भक्ति व सेवा सिखाई जाती है ! भक्ति से आत्मा का उत्थान होता है जिससे सकारात्मक तरंगों का विस्तार हो । जो व्यक्ति आध्यात्मिक होगा , उसकी शुभ तरंगें दूर दूर तक विस्तृत होती है जिससे बाहरी आभाव के कारण जो मानसिक कष्ट होता है वहाँ सुकून मिलता है और जीवन सुधरने के आसार बनते हैं । 

झाबुआ प्रान्त के विभिन्न गाँव सूखे , ग़रीबी से ओत प्रोत व नकारात्मक गतिविधियों के केन्द्र रहे हैं । मात्र “राम नाम ” से , जीवन व स्थान में बदलाव आ गया। न भौतिक सामग्री का वितरण हुआ, न इलाज के लिए हस्पताल खुले, पर नकारात्मक शक्तियों का पूर्ण रूप से नाश हुआ और जीवन रूपान्तरित हो गया ! 
इसी तरह देश की उन्नति के लिए गुप्त प्रार्थनाएँ की जाती हैं । 
सो आध्यात्मिक केन्द्र को मामूली समझना भूल है । केवल आध्यात्म से ही जीवन की रूप रेखा सदा के लिए बदल सकती है । गुप्त प्रार्थनाओं से अनन्त भौतिक कार्य स्वयमेव ही सुधर सकते हैं । जन मानस में शुभ कर्म करने की प्रेरणा जागती है और गुप्त रूप से सेवाएँ होती जाती हैं । 

यह है पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री की श्रीरामशरणम् 

(कई उतर http://www.shreeramsharnam.org से लिए गए हैं।) 

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