गुरूतत्व अपने कार्यों के स्वयं कर्ता होते हैं 

Sept 12, 2017

आज का सुविचार

गुरूजन ही हर आध्यात्मिक कार्य के कर्ता होते हैं। 
हर सत्संग , हर साधना, हर प्रचार, हर दीक्षा समारोह, हर जप व ध्यान , सब के अधिष्ठाता गुरूतत्व ही होते हैं। चाहे बड़े सत्संगों में कार्यक्रम हों चाहे सत्संग online ग्रुप के कार्य ! सब के कर्ता वे ही होते हैं। 
एक बार किसी क्षेत्र में खुला सत्संग लग रहा था ! बहुत ही आनन्द सब को आ रहा था ! कई कार्यकर्ताओं की भी बहुत वाह वाह होनी आरम्भ हो गई । आखिरी दिन शाम की बैठक , कार्यक्रम शुरू होने में कुछ ही मिनट बाकि, कि सारा सिस्टम ठप्प । सभी connection चैक किए , दो दो बार चैक किए कुछ न चला । समय बीत रहा था । पर नहीं चला । सब ने फिर अरदास की गुरूजनों को और अपने आप पूज्य गुरूदेव की विडियो चल पड़ी ! गुरूजन साक्षात दिखाने आए कि गलती से भी नहीं समझना कि इसमें किसी साधक का योगदान है ! सभी कार्य गुरूजन ही सुचारू रूप से कर रहे व करवा रहे होते हैं!! 
कल एक साधिका जी ने मुझे एक फ़ोटो भेजी – मीरा के कृष्ण की ! मैंने मुस्कुरा कर कहा कि – अरे ! आपने भी पुस्तक मँगवा ली ! उसके कुछ घण्टों के पश्चात मीरा चरित लिखने की जो साधक सेवा करती हैं वे ग्रुप छोड़ गई । पर गुरूजन तो प्रबंध कर चुके थे । जो साधिका जी ने चित्र भेजा था उनसे प्रार्थना की कि वे आगे से ” मीरा चरित ” लिखना आरम्भ करें ! भारत की सुबह हुई और मेरी इंतज़ार की घड़ियाँ 

बीत ही नहीं रही थी । तभी सब जगह संदेश चला गया कि ” मीरा चरित” अब दीवाली के पश्चात ही आएगा ! लिखा गया – नहीं ! गुरूजन के कार्यों में विघ्न नहीं पडता ! 

तभी किसी और ही साधक जी ने मीरा चरित पोस्ट कर दिया !!!! उनका संदेश आया कि internet से उन्हें मिल गया ! और जिनसे मुझसे कहलवाया था उनका भी आ गया ! 

गुरूजनों ने एक द्वार बंद होने से दो दे द्वार खोल दिए !!!!!

जिससे इतने साधक आनन्द विभोर होते हैं व आनन्द लेते हैं सब गुरूतत्व के कारण ही तो हैं ! सो उनके कार्य ठप्प हों ऐसा सम्भव नहीं ! 
पर कितनी सुंदर अभिव्यक्ति उनके प्रेम की दी व सिखाया कि उनके कार्य वे स्वयं ही करने वाले होते हैं ! साधकों को तो प्रेमवश ही वे श्रेय देते हैं ! 
यहीं पूज्य गुरूदेव के दिव्य शब्द स्मरण हो आए कि प्रभु राम के लिए सेतु बनाना कोई मुश्किल कार्य नहीं था ! वे तो बाणों से ही सेतु निर्माण कर सकते थे ! पर उन्होंने अपने भक्तों का गुण गान करवाना था तो उनको सेतु निर्माण का श्रेय दिया ! 
इसलिए चाहे बडी सी बडी दीक्षाएँ हो, साधना सत्संग हों या online सत्संग के कार्य , प्रचार की योजनाएँ हो, सब गुरूतत्व के अधीन हैं व वे ही करनकरावनहार होते हैं । 
यहाँ तक गुरूतत्व तो संसार के कार्य भी बहुत सुचारू ढंग से करते हैं यदि उनका कोई हो चुका हो ! 
गुरू महिमा गुरू महिमा अपार महिमा गुरू महिमा !

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