जादुई राम – दिव्य आदेश 

जादुई राम डॉ गौतम चैटर्जी

एक दिव्य आदेश
महर्षि डॉ विश्वामित्र जी महाराज ने ११.३.२०१२ जिस दिन मैं ५४ वर्ष का हुआ मुझे अति अनुपम भेंट दी । मुझे एक सुंदर पंक्ति जिसमें मेरे गुरूजनों की आकृति गढ़ी हुई हो और साथ में चौंका देने वाली आवाज आई ” सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: । ” मैं जाग गया और महर्षि ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा ” मैं तुझे झाबुआ में जादुई राम के दर्शन करवाऊँगा ।” यह स्पष्ट किया कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने ही प्रथम ” जादुई राम ” शब्द का उच्चारण व प्रकाश किया था ।
” Reformation through RAM Naam ” ( राम नाम द्वारा सुधार) पुस्तक लिखने के १३ वर्ष के बाद, मुझे दोबारा झाबुआ जाने के लिए कहा गया ।
सन् 1998 में मुझे महर्षि ने झाबुआ जाने के लिए रेलगाड़ी का किराया दिया था । उस समय मेरे पास एक रिसर्च प्रोजैक्ट जो कि तीन दशकों से मेरा लक्ष्य था , को शुरू करने के भी पैसे नहीं थे । परन्तु वह एक राम जी की लीला का दूसरा पहलु है ।
जब मैं घर को जाते हुए उनकी जादुई राम दिखाने की भविष्यवाणी के विषय में विचार कर रहा था तब मैंने संकोच से इसका समीकर्ण श्री रामकृष्ण परमहंस का नरेन को माँ काली के दर्शन कराने से किया । मैंने अपने आपको झँझोड़ा और कहा- निर्विचार होकर और हाथ पसारे दिव्य आनन्द के लिए झाबुआ जाने की तैयारी करो ।
मुझे रीढ़ की हड्डी में बहुत तकलीफ़ है और स्वीप डिस्क भी है । मैंने थोड़ा समय लगाया और फिर अंतत: तीसरे श्रेणी की ए.सीता तत्काल की टिकट करवा कर झाबुआ के लिए चल पड़ा । बहुत अधिक पीठ में तकलीफ़ होने के कारण मैंने कुछ अफ़सरों को प्रार्थना की कि मुझे उच्च श्रेणी में नीचे की बर्थ दिलवा दें । मैं एक भद्र साधु स्वभाव के सरदार जी, जो टी.सी. थे , से मिला और एक अफ़सर का नाम भी लिया की मेर सीट बदलवाने में सहायता करें । उन्होंने आगे से कहा , ” मैं प्रभु को छोड़ कर किसी और को नहीं जानता “। वह कुछ रुके और मुझे बड़ी ग़ौर से देखा , फिर हँसते हुए कहा” मेरे पास आपके दर्द की दवा है और प्रभु के पास आपके लिए पहली श्रेणी के ए. सी में नीचे की बर्थ है ।” उन्होंने इस उपकार के लिए मुझ से कोई अतिरिक्त धन नहीं माँगा । साधु आत्मा सरदारजी मुझे देखकर मुस्कुराते और कुछ स्टेशनो के बाद रेल से उतर गए और मैंने विचारा – क्या मेरे लिए यह जादुई राम के अनुभव की शुरूआत है ?
क्रमश ….

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