रविवार सत्संग सारांश – जटायु

Oct 28, 2017


रविवार सत्संग सारांश परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से 
जटायु व प्रभु श्री राम 
निस्साधन के पास स्वयं चलकर आते हैं प्रभु राम । जटायु ने अपना सब कुछ लुटा दिया माँ सीता की रक्षा के लिए । अब घायल स्थिति में पड़ा है । निस्साधन ! 
माँ सीता ने जो कहा लक्ष्मण जी को मानो प्रभु कह रहे हो, कहो अभी और कहो ! सोचा भी नहीं जा सकता कि वे ऐसी कह सकती है ! सब प्रभु की लीला चल रही है, प्रभु करवा रहे हैं। 
हम सब यहाँ actors हैं । अपना अपना role play कर रहे हैं । जिसने रोल बहुत अच्छा play किया वह प्रभु कृपा का पात्र बन पाएगा । role निभाने हैं ।
जटायु का सर प्रभु ने अपनी गोद में ले लिया है । प्रभु ने प्यार से उसके सिर पर अपना हाथ रखा है । जैसे गुरू शिष्य के रखते हैं, पिता पुत्र के रखते हैं। प्रभु बोले – जो चाहिए जटायु मांग लो । 

जटायु बोला – क्या दे सकते हैं आप प्रभु ? 

यह सुन कर लक्ष्मण जी आग बबूला हो गए! रहा न पक्षी की पक्षी ! जगत के स्वामी है! क्या नहीं दे सकते ! क्या कहा तुमने!!! 

प्रभु ने लक्ष्मण जी को शान्त करवाया और बोले-लक्ष्मण उसका भाव तो समझ जाओ ! लक्ष्मण जी एक दम शान्त । यह है आध्यात्मिकता के चिह्न । एक दम वापिस आ जाना । आप सब यहाँ सत्संग सुन रहे हैं यह धार्मिक होना है। धार्मिक होना भी आवश्यक है । किन्तु धार्मिक के साथ आध्यात्मिक होना भी आवश्यक है। कितनी जल्दी हम वापिस केंद्रित हो जाते है। 

लक्ष्मण बोले – जटायु ! यह तुम्हें कुछ भी दे सकते हैं ! मांग कर तो देखो । 
जटायु बोले – लक्ष्मण लाल जी , जब घर में पुत्र होता है उसके जन्म पर पिता सबको उपहार देते हैं।किन्तु उसको कुछ नहीं मिलता । वह गोद में होता है । किन्तु पिता का सब कुछ बाद में पुत्र को मिलना होता है । सो मैं देखो किसकी गोद मे हूँ । सो जो इनका वह सब मेरा ! 

जो अपना सब कुछ दे दे वह राम ! जो अपने आपको देदे वह राम !

प्रभु राम ने उन्हें वही धाम दिया जो अपने पिता को दिया । पर इन्हें अपने पिता से भी ज्यादा दिया । अपने हाथों से जटायु की अंतेष्ठी की । 
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। वहाँ जिसके श्रवण मात्र से कृपा बरसती है । भरत जी । प्रभु राम कहते है भरत ! जो तेरा नाम लेगा उसको इस लोक मे यश व दूसरे लोक में सुख मिलेगा । वह इस लोक में यशस्वी होगा । यशस्वी वह होता है जो आत्मा में स्थित हो जाता है !  

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