आदर्श साधक क्षमावान होता है 

Oct 31, 2017

आज का सुविचार 
एक आदर्श साधक क्षमावान होता है । वह मन में मन मुटाव नहीं रखता । 
साधक का परम लक्ष्य उसके प्यारे परमेश्वर ही होते हैं । उनके लिए वह जीवन मे आए उन आत्मों को भी क्षमा कर देता है जिन्होंने उसके साथ सही व्यवहार या बुरा किया होता है । या करते जाते हैं । 
वह अपने मानस में केवल अपने परमेश्वर को ही बसाना चाहता है । उसके मानस में उसके गुरू के इलावा किसी को स्थान नहीं वह देना चाहता । अपने रोम रोम को वह अपने गुरु से ही वह भर देना चाहता है । इसलिए हर को क्षमा कर देता है वह । किसी और की स्मृति वह अपने अंतकर्ण में नहीं रखना चाहता! वह अपने प्रभु के आगमन के लिए सब जगह खाली कर देना चाहता है । 
दूसरों को क्षमा कर ,दूसरों के प्रति राग द्वेष निकाल कर वह स्वयं को आरोग्य करता है । उसे पता होता है कि ऐसे लोग जीवन में आते रहेंगे किन्तु जिस तरह राम व गुरूजन सब को अपनाते हैं वैसे ही वह अपनाता है । उसे यह सब कार्य करने की शक्ति उसके गुरूजन देते हैं। उसकी ऐसी सोच बनाने के ज़िम्मेदार उसके गुरूजन ही होते हैं । सब में दिव्यता देखना ऐसी नज़र उसे गुरू कृपा से ही मिलती है । 
अपनी मैं को पीछे रखकर अपने गुरू की आज्ञा मान कर सब को क्षमा करते जाने का बल अपने गुरू के श्री चरणों से वह प्राप्त करता है । एक साधक का सब कुछ , उसका तन, मन व आत्मा अपने गुरू के अर्पण कर वह जीवन व्यतीत करता है। 
गुरू महिमा गुरू महिमा अपार महिमा गुरू महिमा 

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