FAQ- आकर्षण व प्रेम 

Oct 31, 2017


प्रश्न : आकर्षण और प्रेम में क्या अंतर है ? 
आकर्षण इंद्रिय संबंधी होता है । एक मानव का दूसरे मानव के साथ , देह का ही आकर्षण प्रमुख होता है । मन मिलने का भी आकर्षण होता है । एक तरह की सोच यदि मिल जाए तब भी आकर्षण हो जाता है । 
किन्तु प्रेम संतगण कहते हैं कि प्रेम जब भी होगा परमेश्वर से ही होगा । पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि प्रेम की जब भी बात होगी वह दिव्य प्रेम की ही बात होगी । बाकि सब काम वासना जिसे lust कहते हैं । चाहे वह पति पत्नी के बीच है , प्रेमी प्रेमिका के बीच । और यहाँ स्वार्थ आ जाता है । 
प्रेम जहां निस्वार्थ हो , बिना किसी कारण के हो, जहां केवल देना ही देना हो , कोई अपेक्षा न हो वह प्रेम दिव्य हो जाता है। और यह संतों के पास ही केवल पाया जाता है । 
एक साधक को यदि अपने सुघड़ गुरू के प्रति आकर्षण हो जाए । हो जाता है.. सुना है ऐसा ….परमेश्वर ने इतना लपा लप दिया होता है तो वहाँ कृपा बरस जाती है । क्यों ? क्योंकि वह संत देह संबंधित मन के बीज को भून डालता है । वहाँ कामना से उपासना तक ले जाया जाता है । गुरू अपने साधक की हर इच्छा पूरी करने के लिए बहुत बहुत अद्भुत लीलाएँ भी खेलते हैं जिससे शिष्य को देह से स्वयं ही वैराग्य आ जाए और वह उसके पार जा सके ! 
सो देह के आकर्षण में स्वार्थ है, भय है, अपेक्षा है व पीडा है व किसी विशेष के प्रति है। किन्तु दिव्य प्रेम ठण्डक लेकर आता है ।सब के प्रति होता है,मानव , प्रकृति , सब के लिए एक जैसा, यहाँ किसी के लिए भी आदमी कुछ भी दे सकता है । यहाँ मैं की प्रधानता नहीं होती । मैं होता ही नहीं । बस देना केवल देना ! यह व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होता ! दिव्य प्रेम में दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता भी नहीं होती । 
शुभ व मंगल कामनाएं 
 

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