Monthly Archives: October 2017

Diwali with my bestie

Oct 28, 2016


I went to my best friend, the tree’s abode. Prostrated at its base… wanted every part of my body to get smeared with its dhuli . 
The tree smiled… its deep mystic smile…. didn’t say anything about not giving it a hug… it was too in a very different state… not in this plane for sure ! 
I drew rangoli at its base …. 
My friend , the tree said, stay here only. 
I looked at it – as if the most deepest unsaid wish, unwished wish came true ! 

Now I couldn’t resist to get up and give it a big hug ! Tears rolled as they smeared its bark and some its roots, as if an offering at its Lotus feet . 
There was no need of any words from outside or from within…. as if it was One..
But today, there was no rush to come back… I could stay as long as I wanted … maybe forever… my heart smiled at that thought……which of course got reflected on the outside too……

PM – Ice Cold attitude…

Oct 28, 2017


रूखा या ठण्डा व्यवहार आपके गंतव्यों को स्थगित कर देता है। संवेदनशील बनिए , रूखे नहीं । 
☀️दीपावली के पावन पर्व की शुभ व मंगल कामनाएँ । परमेश्वर, हम सब का जीवन सफल बनाएँ। गुरूजन हमें वैसे बनाएँ जैसे वे हमें बनाना चाहते हैं । जैसे शिष्य देखकर उनकी मेहनत सफल होगी, वैसे शिष्य हम उनके बनें । ☀️
किसी पर कोई भी घटना घटती है वह हम मानते हैं कि राम इच्छा से घटती है । इस में एक साधक के मन में कोई संशय नहीं होना चाहिए , ऐसा गुरूजन सिखाते हैं।किन्तु साथ ही दूसरा जो पीड़ा से गुज़र रहा होता है उसके प्रति रूखा व्यवहार भीतर से नहीं ठीक । दूसरे की पीड़ा में ऐसे पीड़ित होना जैसे कि हम पर ही वह गुज़र रही हो । ऐसे साधक बनना गुरूजन सिखाते हैं । ऐसे भाव संतों के भाव होते हैं। संतों की देन से ही साधक में ऐसे भाव आते हैं । कइयों में ज्यादा कइयों में कम, पर होने हर एक में चाहिए । 
एक साधक के परिवार में निकट परिवार जन बहुत बिमार हो गए। हालत बहुत खराब । उनको बहुत पीड़ा होती अपने प्रियजन को देखकर। पर उनके मन में यह उठता कि क्या केवल अपने प्रियजन के प्रति ही मुझे ऐसे भाव हैं या हर एक के प्रति । इसी दौरान उन्हें सरकारी हस्पताल जाने का मौक़ा मिला। तो वहाँ मरीज़ों व पीड़ितों के हालात देखकर हृदय क़राह उठा । तब वे जाने कि उनका हृदय अब हरेएक के लिए ही करुणा से भर जाता है न केवल अपने प्रियजनों के लिए । यह गुरूजनों की अहेतुकी कृपा ही है कि ऐसे भाव बने । 
आज के पावन दिवस पर हम सब प्रार्थना करें कि परमेश्वर देश के जवानों की रक्षा कीजिएगा, नकारात्मक शक्तियों से। हे भगवन! सभी साधक गुरूजनों के बताए मार्ग पर अक्षारक्षर चलें , एक नहीं, दो नहीं, सभी ! साधकों में से नकारात्मक भावनाओं का नाश हो और राममय चैतन्यभाव जगें । मेरे राममम ! ओ अति कृपालु गुरूजन ! सब का मंगल हो ! प्यारे सबका मंगल हो ! भय मिटे, संशय मिटे, चिन्ताएँ मिटें, अविश्वास मिटे, राग द्वेष मिटे, ईर्ष्या मिटे, अहम् का नाश हो , राम राम राम राम की धुन गूँजे ! सभी आनन्दित होवें। सबमें प्रेम बढ़े ! ओ कृपासिंधु मइया ! कृपा कीजिएगा! कृपा कीजिएगा 🙏🙏🙏🙏

डड्डू जागा 

Oct 28, 2017


डड्डू रोता रहा … पर उसे यकीन न हुआ कि उस जैसे को कोई कैसे अपना सकता है ! 
वह सारी उम्र मेहनत करता रहा था कि वह किसे के काबिल बन सके । माता पिता , भाई बहन, मित्र, पति पत्नी व बच्चे और फिर अपने गुरूजन ! 

उसे लगता पहाड़ी के डड्डू उसके गुरूदेव को पसद हैं तो वह उन जैसा बनने की कोशिश करता ! फिर पता लगा किसी और इलाक़े के डड्डू उसके गुरूदेव को पसंद करते हैं तो वह उनके जैसा बनना चाहता …. अंत में उसने सब छोड़ दिया कि वह कभी उन जैसा न बन पाएगा ! 
फिर उसके गुरूदेव कार्यक्षेत्र में उसे लाए पर फिर भी उसे न लगता कि वह अपनाया जा सकता है ! कार्य क्षेत्र में दूसरों को देखता … और मन ही मन सोचता कि मैं कहां और सब कहां …. 
आज जब रोता रोता वह जा रहा था .. तो रास्ते में देवी का मंदिर था ! रोते रोते वह वहीं सो गया ! स्वप्न में माँ आई और माँ ने उसे छू आ ! उसे इस तरह छू आ कि उसने देखा कि वह माँ है !! और दो माँ थी ! उसने अपने को फिर देखा ! और फिर दो ही माँ थी !!! नींद से एकदम जागा वह !!! 
उसने ख़ुद को देखा … वह डड्डू ही था !! पर उसे सपना स्मरण था !!! वह कुछ कह न सका पर समझा गया ! कि वह माँ का ही अंश है ! वह माँ जैसा ही है ! वह माँ से भिन्न नहीं हैं !!! 

उसे न केवल अपने में बल्कि हर में माँ महसूस हुई ! उसे लगा यदि वह मुस्कुराएगा तो सब मुस्कुराएँगे ! क्योंकि सब माँ ही है! उसे लगा जब एक दुखी होगा तो वह भी दुखी होगा क्योंकि वे सब एक हैं !! 
अब डड्डू सीटी बजाता हुआ अपने तालाब के पानी में अलग सी मस्ती से तैरता हुआ गया …..

एक आदर्श साधक दूसरों के लिए अपना सब कुछ दे देता है 

Oct 28, 2017

आज का सुविचार 

एक आदर्श साधक दूसरों के लिए अपना सब कुछ दे देता है ! यही उसका निस्वार्थ प्रेम है और यही निस्वार्थ सेवा । 
साधक का अपना कुछ नहीं होता । उसके रोम रोम से लेकर उसके कर्मों तक सब उसके गुरूजनों का दिया होता है । एक आदर्श साधक की अपनी कोई इच्छा वहीं होती । वह केवल अपने गुरू के इशारे पर चलता है । बिना सोचे, बिना बुद्धि लगाए वह अपने गुरू के कार्य करता है ! 
उसका न किसी से राग होता है न द्वेष । वह केवल देता है जो उसके गुरू उसको देते हैं । वह गुप्त प्रार्थनाएँ करके औरों ते कष्टों के निवारण की प्रार्थना करता है । उसका जीवन प्रार्थनामय बन जाता है । वह जानता है कि उसकी देह उसे अपन गुरू की सेवा हेतु मिली है । चाहे घर हो चाहे बाहर वह अपना तन व मन अपने गुरू के कार्य में लगा देता है । ऐसा कार्य करने में उसे महसूस भी नहीं होता कि वह कुछ कर रहा है! वह अपने भीतर स्थित रहकर अपने गुरू को उसकी देह से कार्य करने देता है । वह इतना गुप्त होता है कि किसी को भनक नहीं पडती की उसके गुरू उससे क्या क्या करवा रहे होते हैं ! 
जीवन गुरू को सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो जाए । रोम रेम क़तरा क़तरा बस देते जाएँ । 
शुभ व मंगल कामनाएं

डड्डू पर प्रेम वर्षा 

Oct 28, 2017


आज के डड्डू की आँखें अधमींची थी । कभी कभी मुस्कुराता और कभी आँखें बंद कर अश्रुओं को बहने देता । 
एक सुंदर सा फूल उसे देखकर मुस्कुरा रहा था ! वह बोला – भाई डड्डू ! क्या हुआ ? 
वह बोला – क्या बताऊँ भाई ! क्या क्या बताऊँ ! बात भीतर देर से थोड़ा पहुँचती है ! एक दम पता नहीं चलता अब । जब भीतर उतरती है तो समझ आता है ! 
यह कह कर उसके अश्रु फिर बहने लग गए । 
फूल डड्डू को देखकर अजीब सी भावनाओं में बह रहे थे ! 
डड्डू बोला – जीवन में मुझे कोई ऐसा मिल गया जिसे मुझ में परमेश्वर के गुण दिखते हैं ! देखो मेरी सूरत !! पर उन्हें यह पसंद है ! देखो मैं कैसे बोलता हूँ ! पर उन्हें यह पसंद है ! मुझे तो कुछ करना आता नहीं पर उन्हें कुछ फ़र्क़ ही नहीं पड़ता ! बल्कि वे तो मुझे हाथ में लेकर पुचकारते भी हैं ! 
यह कह कर वह सुबक सुबक कर रोने लग गया ! 
फूल की आँखें भी नम हो चली थी ! 
डड्डू बोला – देखो ! कुछ न होते हुए भी कैसे कोई ऐसे मुझ जैसे से प्यार कर सकता है ? और देखो मुझे तो प्यार करना भी नहीं आता ! फिर भी वे करते रहते हैं ! न मुझे ठीक ढंग से कोई काम करना आता है , उन्हें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता ! 
फूल बोला – जरूर तुम्हें तुम्हारे मुर्शिद मिल गए होंगे ! ऐसा तो केवल तभी होता है ! 
डड्डू को कहां होश किसी चीज का ! वह तो रोता जा रहा था ! प्रेम में बहता जा रहा था ! 

बोला – नहीं बता सकता ! नहीं कुछ कहा जाता ! बस यही कह सकता हूँ कि न जाने किसने छू लिया । अपना बना लिया ! कह दिया रे डड्डू तू तो मेरा है , मुझे भी अपना मान ! मैं तेरा हूं ! 

यह कह कर वह फूट फूट कर रो पड़ा ! ऐसा लग रहा था कि वह प्रेममय अश्रुओं में अश्रु ही बन जाएगा ! उन्ही अश्रुओं में पिघल कर बह जाएगा ! पर ऐसा न हुआ ! उसने तालाब में डुबकी मारी और पानी में तैरता गया ! 
फूल ने देखा कि डड्डू दिख तो नहीं रहा था पर जहां जहां से वह रहा था वहाँ प्रेम के फूल की पंखुड़ियाँ आ रही थी !

PM – जीवन को ऊर्जा चाहिए ..  

Oct 28, 2017


जीवन को ऊर्जा चाहिए । अपनी कल्पनाओं के ऊर्जा दीजिए ताकि जीवन को सम्पूर्ण रूप से केन्द्रित कर सकें । 
संसार में उपर्युक्त पंक्ति को उपयोग में ला सकते हैं । पर परमेश्वर से विनती है कि वे सिखाएँ कि अध्यात्म में इसका कैसे उपयोग करें । 
मेरे गुरूदेव ध्यान की बैठक में कहते कि कल्पना कीजिए कि आप परमेश्वर के साथ हैं। कैसी भी कल्पना कीजिए। बाल रूप में, शिशु रूप मे , माँ रूप में, प्रीयतम के रूप में। किसी भी रूप में परमेश्वर की कल्पना कीजिए और कीजिए बात चीत। जाने लगें परमात्मा तो रोक लीजिए। कहिए न जाइए। चरणी लग जाइए। यह कल्पनाएँ केवल ध्यान में ही नहीं अपनी दिनचर्या के हर अंग में ला सकते हैं। कितनी ऊँची कल्पनाएँ हैं । कि हम उस देवाधिदेव के साथ अपना हर पल व्यतीत कर रहे हैं। पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि पहले कल्पना होती है, फिर अनुभव होता है और फिर यथार्थ में सम्भव होने लग जाता है । 
एक साधिका गुरूदेव को शिशु रूप मे कल्पना किया करतीं। तो स्वप्न में गुरूदेव शिशु रूप में गोद में आ गए । उठने के पश्चात कितने घण्टों बाद भीतर अनुभव का एहसास रहा ! 
एक साधक ने बताया कि वे प्रभु को प्रीयतम के रूप में कल्पना करते। भोजन, सैर इत्यादि में उन्हीं के संग जाते। तो अब प्रभु उनके संग जाते हैं। काम पर, किसी और क्रिया में,जहाँ जहाँ जो जो वे करते परमेश्वर अंग संग रह कर साथ देते ! 
गुरूजन कहते हैं कि यह कल्पनाएँ भक्ति मार्ग में एक दिन परमेश्वर के साथ एक्य प्रदान कर देती हैं। साधक परमेश्वर में हर पल विलीन रहता है ! 
आज की सीख 🙏
महत्वाकांक्षी होना और संसार के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के लिए भी कल्पनाएँ होती हैं पर यदि उस देवाधिदेव के संग अपनी कल्पनाएँ जोड़ दें तो उसमें एक्य प्राप्त कर सकते हैं । 
अतिशय धन्यवाद भगवन 

हे मां आपश्री के श्री श्री चरणों में 🙏🙏

FAQ: पति पत्नि के संबंध में साधना 

Oct 28, 2017


प्रश्न : अगर एक महिला साधना में लीन रहना चाहे पर पति का मन उसे काम अवस्था पर खिंचता हो क्योंकि वो पति है तो उसका भी मन वहाँ खिंचता है । मन है अपना।और इनकार नही किया जा सकता साधना मे विघ्न हो गया क्योंकि मन परिवर्तित।।तो क्या किया जाए।।

मन अपना है । यदि अपना मन खिंचता है तो मानो उस चाह के बीज भीतर हैं। जब बीज भीतर नहीं होते तो कर्तव्य रूप से निभाया जाता है जैसे बाकि कर्तव्य कर्म । जब लालसा का बीज नहीं तो लालसा क्यों जागे? जब वासनाओं की सुख प्राप्ति का बीज नहीं तो वासनाएँ क्यों जागे ? पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि एक महिला को बहुत रूप धारण करने पड़ते हैं सेवा हेतु और उसमें से कई बार संबंध के देह की प्रेम सेवा भी !
कर्तव्य की दृष्टि से किया गया कर्म , राममय होकर भी किया जाता है । जिस तरह भोजन बना रहे हैं कपड़े धो रहे हैं यह कार्य जिस तरह राममय होकर किए जा सकते हैं इसी तरह संबंध में बंधे देह की सेवा भी राममय होकर भी की जा सकती है।
परमेश्वर व गुरू साक्षी होते हैं कि कौन सा कार्य सेवा हेतु किया जा रहा है या अपनी भावनाओं के कारण । और जहां राम आ जाएँ वह कामना से उपासना बन ही जाता है ।
यह केवल महिलाओं के लिए नहीं है । कई पति साधक भी होते हैं और पत्नि धर्म निभाने हेतु उन्हें भी अनासक्त होकर पत्नि धर्म निभाना आवश्यक होता है
समर्पण से गुरू अनन्त कृपा करते हैं । वहाँ मन से योजनाएँ नहीं बनानी पडती! एक साधक जिसमें काम के प्रति वैराग्य आ रहा था किन्तु पति अत्यधिक कामुक थे, वहाँ गुरू कृपा से बहुत कुछ थमा ! गुरूजन हर पल कर्मों को धो रहे होते हैं ! उनकी अनन्त कृपा से जितना वे आवश्यक समझते हैं उतना संसारिक तत्व चलाए रखते हैं ! और जहां पति पत्नि दोनों साधक अंकुश नहीं लगाते वहाँ गुरूजन स्वयं भी कह देते हैं कि बस भई ! और उन्होंने कहा भी है ! हर कार्य नियंत्रण में गुरू कृपा से सम्भव होता है।

एक आदर्श साधक अपने गुरू को दिए हुए हर वचन को निभाता है 

Oct 28, 2017

आज का सुविचार

एक आदर्श साधक अपने गुरू को दिए हुए हर वचन को निभाता है ।
हमारे गुरूजन एक ही बार हमसे वचन लेते हैं कि अंत समय तक राम नाम लेते रहेंगे न !! बस ! वह वचन हम निभा पाएं उसके लिए वे कितनी मेहनत करते है ! अपने शुभ कर्म देते हैं , अपना प्यार देते हैं, विकट परिस्थितियों में कठिन मानस समय में अपनी शक्ति देते हैं, आलौकिक स्तर पर प्रार्थनाएँ अर्पित करते हैं ताकि साधक अपना वचन निभा सके ।
एक साधक में यदि कभी भय भी उत्पन्न होता है उन वचनों को निभाने हेतु किन्तु गुरू हर पल संग होने का आश्वासन देते हैं व रहते भी हैं । साधक अपने प्यारे के श्री चरणों में सब अर्पित करके, अपनी बुद्धि को गुरू चरणों में रखकर अपने गुरू के कार्य में आँख बंद करके हृदय व रोम रोम में उन्हें स्थापित करके अग्नि में कूद जाता है ! जीवन की परीक्षाएँ अग्नि परीक्षा से कम नहीं होती किन्तु गुरू का प्रेम एक साधक को खींचे ले जाता है । क्योंकि उसके मन में विश्वास होता है कि मेरे गुरू मेरे परम सुहृद हैं ! वे हर कार्य मेरी भलाई के लिए ही करते हैं !

एक परिवार में उनके पिताजी की मृत्यु पर  पूज्यश्री महाराजश्री ने कहा कि कोई रोएगा नहीं !! बहुत बार गुरूजन ऐसे आदेश देते हैं , साधक को हर हाल में सब आदेश निभाने चाहिए ! नियत जाप करना ध्यान में बैठना करना ही करना है ! या हर पल सिमरन में रहना है ! प्रार्थना हर सांस से निकले ।

जीवन सफल ही गुरू के वचनों को निभाने में है । चाहे कुछ भी हो जाए गुरू के वचन हर साधक को सदा सदा निभाने चाहिए । चाहे मन अवरोधक बने , चाहे देह पीछे हटे, चाहे संसार पीठ करे , गुरू वचन सदा सदा निभने चाहिए ! चाहे अहम् , चाहे देह , चाहे कुछ भी क्यों न चले जाए ! परमेश्वर कृपा करें ! कृपा करें ! कृपा करें !
शुभ व मंगल कामनाएं

एक आदर्श साधक जैसा व्यवहार अपने गुरू से करता है वैसे ही सबसे करता है 

Oct 27, 2017

आज का सुविचार 
एक आदर्श साधक जैसा व्यवहार अपने गुरू से करता है वैसे ही सबसे करता है । 
परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि जब हम सत्संग में होते हैं या श्रीरामशरणम् के अंदर होते हैं तो हमारा स्वभाव व हाव भाव बहुत ही उच्च कोटि के होते हैं किन्तु जब बाहर जाते हैं तो बदल जाते हैं । 
एक साधक जी ने बताया कि घर पर तो वे इतना ऊँचा बोलते, चाहे साधारण या झगड़े में किन्तु एक बार पूज्य महाराजश्री के पास गए और महाराजश्री ने कुछ पूछा तो मुँह से आवाज ही न निकली ! महाराजश्री तो जानी जान ! बोले इतनी धीमा मुझे सुनता नहीं है !!! 
सो हम साधारण साधकों का व्यवहार घर पर अलग, बाहर अलग व गुरूजनों के समक्ष तो बिल्कुल अलग होता है !! Online भी पता ही नहीं लग सकता कि हम घर पर कैसा व्यवहार करते होंगे !!! क्योंकि हमने कितने मुखौटे पहन रखे होते हैं! और मन का चेहरा तो कोई भी देख ही नहीं सकता !! 
पर एक आदर्श साधक ने सब मुखौटे गेर रखे होते हैं । मुखौटों के गिरने से उसे सब ओर अपने गुरूतत्व की या अपने प्रभु की ही अभिव्यक्ति होती है ! और वह इस तरह सबसे एक सा व्यवहार करता है ! 
कई साधक जन तो जान लेते हैं कि यह साधक मन ही मन मुझे पसंद नहीं करता या भेद भाव करता है किन्तु फिर भी वे उससे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे सब से ! मुखौटों के पार देखते हैं ऐसे साधक ! 
राम नाम मुखौटे गेरता है ! राम नाम ही मुखौटों के पार की नज़र देता है ! राम नाम से सब में एक को देखा जा सकता है ! 
शुभ व मंगल कामनाएं 

PM – life and living 

Oct 26,2016


जीवन और जीना चिन्तन के लिए प्रमुख शब्द हैं ।
दिन दिन , हर पल क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे होगा कि नहीं होगा, इत्यादि इत्यादि ही जीवन के अधिकतम समय में चला जाता है । पर यह चिन्ताएँ तो कभी नहीं समाप्त होतीं। 
चिन्तन करने योग्य, संत गण कहते हैं कि यह जीवन किस लिए मिला है। क्या लक्ष्य है मानव होने का । पैदा होना, स्कूल जाना, कॉलेज , नौकरी के लिए चक्कर काटना, विवाह, बच्चे, घर, बड़ा घर, गाड़ी , बड़ी गाड़ी, बड़ी नौकरी, नाम , इत्यादि , और मर जाना । 
घर में यदि बिल्ली पाल राखी है, तो बिल्ली के बच्चे होना, बिल्ली की उनको देखभाल करना , बच्चे बड़े हो गए तो और बच्चे करना, पालना और मर जाना। बिल्ली की धूप में सोने की महत्वकांक्षा होगी ! यदि पालतू बिल्ली नहीं है तो पेट के लिए अंत समय तक भोजन का प्रबंध करती है।
कोई अंतर नहीं ! 
फिर हमारे जीवन और पशुओं के जीवन में क्या अंतर हो ? 
गुरूजन कहते हैं सेवा और सत्संग ! 
पशु अपने व बच्चों के लिए जीते हैं। मानव अपने व अपनों से हटकर, औरों के लिए जी सकता है ! 
सत्संग नहीं है वहाँ ! 
सत्संग, प्रभु के गुण गान, प्रभु का चिन्तन, स्वयं को जानना, यह केवल मानव ही कर सकने में सक्ष्म है । यह मानव योनि में ही जाना जा सकता है कि हमारे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ! हम क्या हैं और हमारे जीवन का क्या उद्देश्य होना चाहिए ! 
पर यहाँ भी , हर मानव को यह सब जान पाना , सम्भव नहीं। यह तो किसी संत के जीवन में आगमन से ही जाना जा सकता है । ऐसे नहीं । परमेश्वर का तो गुण है गुप्त रहना ! यह तो संत ही परमेश्वर के भेद बता सकते हैं , और कोई नहीं ! 
सही माएने में जीवन क्या है और कैसे जीना चाहिए , यह तो केवल सच्चे संत ही सिखा सकते हैं ! वे स्वयं वैसा जीवन जीते हैं और फिर सिखाते हैं।
आज की सीख 😇
जीवन में यदि संत मिले हैं, तो मानो यह जानने का रास्ता साफ़ है कि हमारा उद्देश्य क्या है । उनके आगमन से पशुवत जीवन से किनारा होता है और मनुष्य असली में अपने मार्ग पर चलना सीखता है। जीवन में उनके आने का भरपूर लाभ लेना चाहिए। उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर, जीवन को सफल बनाना ही मानव जीवन का लक्ष्य है । 
श्री श्री चरणों में