Oct 26,2016
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जीवन और जीना चिन्तन के लिए प्रमुख शब्द हैं ।
दिन दिन , हर पल क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे होगा कि नहीं होगा, इत्यादि इत्यादि ही जीवन के अधिकतम समय में चला जाता है । पर यह चिन्ताएँ तो कभी नहीं समाप्त होतीं।
चिन्तन करने योग्य, संत गण कहते हैं कि यह जीवन किस लिए मिला है। क्या लक्ष्य है मानव होने का । पैदा होना, स्कूल जाना, कॉलेज , नौकरी के लिए चक्कर काटना, विवाह, बच्चे, घर, बड़ा घर, गाड़ी , बड़ी गाड़ी, बड़ी नौकरी, नाम , इत्यादि , और मर जाना ।
घर में यदि बिल्ली पाल राखी है, तो बिल्ली के बच्चे होना, बिल्ली की उनको देखभाल करना , बच्चे बड़े हो गए तो और बच्चे करना, पालना और मर जाना। बिल्ली की धूप में सोने की महत्वकांक्षा होगी ! यदि पालतू बिल्ली नहीं है तो पेट के लिए अंत समय तक भोजन का प्रबंध करती है।
कोई अंतर नहीं !
फिर हमारे जीवन और पशुओं के जीवन में क्या अंतर हो ?
गुरूजन कहते हैं सेवा और सत्संग !
पशु अपने व बच्चों के लिए जीते हैं। मानव अपने व अपनों से हटकर, औरों के लिए जी सकता है !
सत्संग नहीं है वहाँ !
सत्संग, प्रभु के गुण गान, प्रभु का चिन्तन, स्वयं को जानना, यह केवल मानव ही कर सकने में सक्ष्म है । यह मानव योनि में ही जाना जा सकता है कि हमारे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ! हम क्या हैं और हमारे जीवन का क्या उद्देश्य होना चाहिए !
पर यहाँ भी , हर मानव को यह सब जान पाना , सम्भव नहीं। यह तो किसी संत के जीवन में आगमन से ही जाना जा सकता है । ऐसे नहीं । परमेश्वर का तो गुण है गुप्त रहना ! यह तो संत ही परमेश्वर के भेद बता सकते हैं , और कोई नहीं !
सही माएने में जीवन क्या है और कैसे जीना चाहिए , यह तो केवल सच्चे संत ही सिखा सकते हैं ! वे स्वयं वैसा जीवन जीते हैं और फिर सिखाते हैं।
आज की सीख 😇
जीवन में यदि संत मिले हैं, तो मानो यह जानने का रास्ता साफ़ है कि हमारा उद्देश्य क्या है । उनके आगमन से पशुवत जीवन से किनारा होता है और मनुष्य असली में अपने मार्ग पर चलना सीखता है। जीवन में उनके आने का भरपूर लाभ लेना चाहिए। उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर, जीवन को सफल बनाना ही मानव जीवन का लक्ष्य है ।
श्री श्री चरणों में