Everybody has something to share….

Nov 26, 2016

हर के पास कुछ न कुछ बाँटने के लिए होता है, और उनके अनुभव हमें प्रबुद्धता प्रदान कर सकते हैं, उत्साहित कर सकते हैं और चेतावनी भी दे सकते हैं ! ~ डॉ गौतम चैटर्जी, Positive Mantra

गुरूजन सिखाते हैं कि हम दो तरह से सीख सकते हैं – एक , दूसरों के अनुभव से और दूसरा, अपने अनुभव से ! माँ कहती है कि बेटा आग को हाथ नहीं लगाना हाथ जल जाता है ! कई मान जाते हैं पर कई हाथ जला कर ही मानते हैं कि आग जला देती है !

आध्यात्म जब कि भीतर की यात्रा है और इसमें स्वयं ही अनुभव हमें प्राप्त करने होते हैं ! बिना अनुभव के ज्ञान से भीतर की पिपासा नहीं मिटती ! पर क्योंकि यह अज्ञात मार्ग है, विरले ही इस पर चल कर सफल हुए हैं सो जो मार्गदर्शक है, जो इस राह पर चल कर सफल हुए हैं, उनके अनुभव , उनके कथन अक्षारक्षर ही मानने में भलाई है !

गुरूजन अपने अनुभव से कहते हैं कि मन व चित की शुचिता से व सतत नाम सिमरन से व सम्पूर्ण समर्पण ही परमेश्वर मिलन सम्भव है, तो मानो कि वे अपने अनुभव से कह रहे हैं कि यह सम्भव है !

एक बार लगभग ११-१२ युवा परम पूज्य महाराजश्री के दर्शन हेतु गए। वे दीक्षित नहीं थे । पूज्य महाराजश्री ने अलग से समय दे रखा था उन्हें ! उन में से एक ने प्रश्न किया । प्रश्न का उत्तर देते समय पूज्य गुरूदेव ने कहा कि मैं भी आप जैसा ही था ! एक वैज्ञानिक । मैंने हर चीज परख कर ही अपने गुरूदेव से दीक्षा ली ! हर चीज का अनुभव करके ही आप सब के सामने बोलता हूँ ! सब परीक्षण कर लिए हुए हैं मैंने ! आपको परीक्षण की आवश्यकता नहीं अब !!

सो गुरूजनों व संतों महात्माओं के कथन तो अक्षारक्षर मानने से ही जीवन का उत्थान सम्भव है ! नहीं तो आवागमन के चक्कर में ही घूमते रह जाएँगे !

यदि संत महात्मा व गुरूजन कहते हैं कि आत्मा ही हमारा सच्चा स्वरूप है , देह नहीं मन नहीं व बुद्धि नहीं ! तो यह मानने में ही हमारी भलाई है । अन्यथा , बिमारी में हम दुखी, परिवारिक समस्याओं में हम दुखी, प्रियजन की मृत्यु में हम दुखी ! जब कि हर दुख का लेना देना मन से ही है या देह से ! आत्मा तो सदा प्रेममय व आनन्दित रहता है ! वहाँ न दुख न सुख !

इसलिए रे मन सुनने की आदत डाल व सीखने का स्वभाव बना!

श्री श्री चरणों में 🙏

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