स्व प्रेम व आरोग्यता

Nov 29, 2017

आज का सुविचार

स्वयं से अकारण प्यार करके हम आरोग्यता प्राप्त कर सकते हैं

आज कृपा स्वरूप यह विचार आया कि क्या हम अकारण प्रेम से किसी को नीरोग कर सकते हैं । इस विचार की प्रतिक्रिया सकारात्मक मिली !!! प्रेम में ही प्रार्थना होती हैं। और किसी के साथ बहुत आत्मीय संबंध हो तो प्रार्थना और भी प्रेम व भाव पूर्ण निकलती है ।

पर क्या स्वयं से अकारण प्रेम करके हम आरोग्यता प्राप्त कर सकते हैं ? कर सकते हैं !

विदेश में एक आध्यात्मिक आरोग्य साधक हुई । काफ़ी वर्ष पूर्व वे आध्यात्म का जब प्रचार करती थी तो उन्हें कैंसर हो गया । उन्होंने अपने डॉक्टरों से कहा कि मुझे केवल ६ महायीने दे दो । मैं कुछ प्रयोग करना चाहती हूँ । छ महीने में उन्होंने अपने विचारों पर बहुत झ्यान दिया और भोजन पर। वे स्वयं को कैंसर से मुक्त कर पाई । केवल शारीरिक रोग ही नहीं मानसिक वेदनाओं से भी वे स्वयं को मुक्त कर पाई । वे नब्बे वर्ष की आयु में गईं !

इसी तरह पूज्य स्वामीजी महाराजश्री भी हमें मानसिक रोगों की आध्यात्मिक चिकित्सा के बारे में सिखाते हैं । मानसिक क्यों ? क्योकि मानसिक सोच से ही शारीरिक रोग आते हैं , ऐसा पूज्यश्री महाराजश्री ने भी अपने श्रीमुख से कहा है !

जब यह जानेंगे कि हम भीतर से क्या हैं , जब स्वयं से अकारण प्रेम करना आरम्भ होंगे तो न केवल स्वयं आरोग्य होंगे बल्कि दूसरों को भी आरोग्य करने में सहायक होंगे !

करते हैं हम अपने से प्रेम करना । अपने प्रति कोमल स्वभाव रखना !

यही सोच कि गुरूजन हमसे नाराज हैं कितना खा जाती है । क्यों हम सोचते हैं कि वे नाराज हैं ? वे प्रेम के सिवाय क्या करते हैं ! हर पल कितने दर्द के साथ ध्यान रखते हैं ! पर देखिए हम केवल ऐसा सोचने से स्वयं की नसों पर कितना भार डाल देते हैं कि शरीर पर असर तो होकर ही रहेगा ! साधना में भी हम बहुत तनाव ले लेते हैं !

सो अपने से प्यार करना है हमें । हम उनके अंश हैं व उन जैसे हैं ! ऐसी यात्रा आरम्भ करनी है !

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