अपने सत्य स्वरूप को पाना है, निच्छल अकारण प्रेम भाव में रहना है

Nov 30, 2017

आज का सुविचार

अपने सत्य स्वरूप को पाना है, निच्छल अकारण प्रेम भाव में रहना है ।

जीवन के किस अवस्था से जानें कि हमारा सत्य स्वरूप क्या है ?

बुढ़ापा ? मध्य आयु, युवा अवस्था , बाल अवस्था, शिशु ?

कौन सी अवस्था दिव्यता के गुण छलकती है ? किस अवस्था को देख कर मन में स्वयमेव प्रेम व मुस्कुराहट उमड़ती है ?

शिशु ! जहां भेद भाव आरम्भ नहीं हुआ ! जहां केवल प्रेम है और गले लगाने का मन करता है चाहे किसी भी रंग रूप का हो किसी भी देश का हो ! जहां बिन वजह मुस्कुराहट रहती है ! जहां नाराज़गी नहीं रहती ! केवल निच्छल प्रेम !

यह ऐसी अवस्था है जहां दूसरे में प्रेममय भाव स्वयमेव उमड़ते हैं ! दूसरे में मुस्कुराहट आती है !

यह है हम ! यदि ऐसे हो जाएँ हम हर अवस्था में , तो जीवन कैसा हो जाए ? जहां जाएँ प्रेम छलकें, जिससे मिलें मुस्कुराहट दूसरों में आ जाए ! जीवन जैसा है उसे वैसे स्वीकार करते हुए हृदय सदा प्रेम से प्रफुल्लित रहे !

कैसे बने ऐसे? क्या रोकता है हमें ऐसा बनने में ? हमारी बुद्धि जो अहम् से युक्त है ! अहम् से युक्त बुद्धि भय लाती है, चिन्ता लाती है, द्वेष लाती है, मेरा पन लाती है, तू भिन्न मैं भिन्न का भेद भाव लाती है !!

सो कैसे बनें अपने सत्य स्वरूप जैसे ? राम नाम को प्रत्यक्ष रूप व्यवहारिक रूप में ला कर ! कैसे लाए राम नाम को व्यवहारिक रूप में ? स्वयं को अपना कर! जैसे हैं वैसा स्वयं से प्रेम करके! स्वयं को क्षमा करके! अपनी सोच को स्वीकृति के भाव में ढाल कर ! तभी स्वयं में व सब में राम को पा पाएँगे ! तभी जो स्वयं से अकारण प्रेम करते हैं वही दूसरे से कर पाएँगे ! तभी रंग रूप के भेद भाव मिटा कर प्रेम विस्तृत कर पाएँगे !

सो , रहें हम प्रेम भाव में, प्रसन्नता के भाव में, यदि कालिमा आए तो उसे स्वीकार करके, भीतर जो हम असली में हैं वह बाहर ले आएं !

इसका अभ्यास ध्यान में करें, चलते फिरते करें , तो इन्हीं भावों हर पल अंगीकार कर पाएँगे !

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