Monthly Archives: January 2018

प्रेम से कहिए झुकना सिखा दे

Feb 1, 2018

आज का चिन्तन

जब जीवन में कोई प्यार दे तो झुक जाइएगा । गद् गद् हो जाइएगा ! अतिश्य कृतज्ञ हो जाइएगा । कई बार जन्मोँ जन्म किसी ने प्यार नहीं किया होता ! सो यदि गुरूजन मिले और उनका प्यार मिले तो झुक जाइएगा । चरणी से ऊपर न देखिएगा ।

शायद तभी कुन्ती ने प्रभु से विनती की कि भगवन सदा दुख में ही रखिएगा ताकि आपका स्मरण सदा सदा बना रहे !

प्रेम व सुख ने कही प्रभु के आगे अभिमानी कर दिया तो न जाने कितने जन्म पछताते रहेंगे ! गुरू के प्रेम से यदि अहम् टूटने की बजाए उससे और जागृत हो गया तो जितने पाप जीवन भर में नहीं किये वे कुछ ही वर्षों में हो जाएंगे ! यह पूर्ण रूप से सत्य है ।

प्रेम से कहिए कि प्रेम तू यदि जीवन में आए तो हमें और झुका देना । नहीं तो रहने देना । आना ही मत ! अभिमान व अहंकार में जीने से बड़ा कोई अभिशाप नहीं !

सो जब कभी भी जीवन में कहीं से भी प्रेम मिले तो झुक जाइएगा !

आप सब का अतिश्य धन्यवाद ! आप गुरूज की कृपा से आते हैं व उन्ही की कृपा से इन लेखों को छूते हैं ! नहीं तो इन पर तो कोई दृष्टि तक न डालता !

अतिश्य धन्यवाद !

शुभ व मंगल कामनाएं

युवा व आध्यात्म

Jan 30, 2018

प्रश्न : युवक व युवतियों को अध्यात्मवाद से कैसे जोड़े

आध्यात्म हर धर्म का मूल है ।

दूसरों को इस ओर लाने से पहले स्वयं पूर्ण रूप से आध्यात्मिक बनना आवश्यक है ! जितने भी साधकों या इंसानों ने जब कभी भी दूसरे पर प्रभाव डाला है वह तभी डाल पाए क्योंकि वे स्वयं उसमें परिपूर्ण थे ! हमारे गुरूजन ! या हमारे क्रान्तिकारी देश भक्त ! कैसे उनमें देश के प्रति ज़नून उनके रोम रोम में जागृत था ! तभी वे दूसरे में कुछ प्रभाव ला सके हैं। इतना ही नहीं बल्कि आज भी उनके बारे में पढ कर सुन कर रौंगटे खडे हो जाएँ ! हमारे गुरूजन आज भी अपने कार्य कर रहे हैं ! क्योंकि उन्होंने वह स्वयं जीया है !

और प्रार्थनाओं से !

पर जब युवा लोगों से कार्यकर्ता बात करने जाते होंगे तो कुछ विष्यों पर केंद्रित हो सकते हैं –

शाश्वत प्रेम – ऐसा प्रेम जो बाहर नहीं बल्कि भीतर मिलता है और सदा रहता है मंद नहीं होता । बिन कारण प्रेम बहता है । वह प्रेम जो बाहरी देह पर बाहरी सफलताओ पर बाहरी प्रेम पर या बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होता !

आत्म सम्मान व स्वसशक्तिकरण – जो बाहर परिवार से नहीं बल्कि अध्यात्मवाद भीतर से उपजता है । यह सिखाता है कि हम में कुछ भी करने की भीतर अनन्त ऊर्जा है !

तनाव रहित जीवन – चाहे काम बन रहे हैं न नहीं पर तनाव नहीं है !चाहे परिस्थितियाँ विपरीत हैं पर मन नहीं हिल रहा । अध्यात्मवाद धैर्य देता है और विभिन्न मार्ग प्रशस्त करने की राह दिखाता है ।

सफलता – कैसे हर परिस्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैं और वहाँ से सफल हो सकते हैं !

पक्षपात से पार – केवल आध्यात्म वाद ही है जो बाहरी भिन्नता को भीतरी एक्यपन से जोड़ सकता है !

आनन्दमय व विनीत जीवन – आध्यात्म भीतर से आनन्द उपजता है , स्वयं को परिपूर्ण करता है और इसी से जीवन में विनय आता है !

इन कुछ बातों से युवा पीढ़ी को शायद आध्यात्मवाद मे लाया जा सकता है ।

पर इसमें हमें स्वयं विश्वास हो !

छिप कर साधना

Jan 30, 2018

आज का चिन्तन

छिप कर साधना करनी है , क्या क्या तात्पर्य हैं इसके …

जब हम कहते हैं कि छिप कर साधना करनी है , साधारणतया अभिप्राय यही होता है कि हम दूसरों के आगे प्रदर्शन न करें । दूसरों को हमारा न पता चले । इत्यादि इत्यादि ।

साधना तो बहुत ही व्यक्तिगत चीज है । इसमें तो परिवार वाले जो देह के संग रह रहे होते हैं वे भी संग नहीं होते । यह तो केवल हमारा व परमात्मा का आपस में संबंध होता है ।

यदि हम कोई प्रदर्शन नहीं कर रहे । यदि संसार को नहीं पता चल रहा कि हम कैसे कैसे व कब कब साधना करते हैं, तो उसके पश्चात हमें किससे छिपने की आवश्यकता है ?

पूज्य महाराजश्री ने एक बार विभिन्न तरह के मन बताए । एक मन ऐसा जिस पर यदि लकीर डालो जैसे पत्थर, तो वर्षों पडी रहती है। एक मन मिट्टी जैसे जिसपर लकीर डालो तो कुछ समय के लिए रहती है ! और एक मन पानी जैसा । जिस पर लकीर डालो तो पल भर मे मिट जाती है ।

तो हमें अपने मन से बचना है ! यदि वह पत्थर जैसा है वह सदा स्मरण रखेगा मैं कितनी साधना करता हूँ गुप्त ! यदि वह मिट्टी जैसा है तो कुछ देर रहता है अरे ! कितनी साधना की गुप्त ! और यदि पानी जैसा हो जाए – तो स्मरण ही नहीं रहता कि साधना की भी या नहीं !

यदि हम संसार से छिप भी जाते हैं, जो बहुत साधक करते भी हैं पर मेरे जैसे अपने मन से छिप नहीं पाते ! और वहाँ मन ही तो अहम् जागृत रखता है ! मेरी साधना , मेरा जाप ! मेरा ध्यान ! मेरी सेवा ! मेरे पोस्ट ! चाहे बाहर हम दिखें भी न पर वह मन का मैं सब जागृत रखता है !

किन्तु यदि वह मन घुलने लग जाए तो सारी दुनिया के आगे भी रह कर लगता है कुछ किया ही नहीं जैसे हमारेगुरूदेव परम पूज्यश्री महाराजश्री ! न वे कभी महसूस करते कि वे कुछ कर रहे हैं न ही वे कभी जताते कि क्या क्या किया तुम्हारी आत्मा की मैल धोने के लिए । जबकि वे रात रात भर रुदन करते हमारे पापों को धोने हेतु !

सो मन से ही बचना है ! मन में यदि संसार है तो संसार है ! ऐसा संत गण कहते हैं । मन को नहीं पता चलना चाहिए कि हम कुछ कर रहे हैं । मन में कर्ता पन का भाव जब मिट जाए तो फ़र्क़ नहीं पड़ेगा यदि आपने सड़क के किनारे ध्यान लगा लिया अपने ध्यान के समय !

शुभ व मंगल कामनाएं

FAQ – सिमरन से बडी कोई सम्पदा नहीं

Jan 30, 2018

कहते हैं- सिमरन चल रहा है तो इसी से खुश हो जाएँ या गुरूजन और भी आगे लेकर जाते हैं ?

इसका मतलब सिमरन नहीं चल रहा !!!!!!! सिमरन का स्वाद ही नहीं चखा !

पाँच – दस वर्ष पीछे जाइए और आएने के सामने हम सब खडे हो जाएँ और वहाँ देखें … कि हमारी दस वर्ष पहले क्या हालत थी और आज क्या है ?

फिर भी कृपाएं नहीं दिखती तो लिख कर देखें कि क्या थे और क्या है ?

हम किसी एक चीज के भी लायक हैं? क्या हम राम नाम लेने के भी लायक हैं? जैसे कर्म हमने किए हैं वह हमारे जीवन से हम पता चलता है ! हमें दूसरों से क्या क्या सुनना पडता है वह हमें पता है कि यह सब मैंने ही सुना रखा है तभी मुझे मिल रहा है ! ऐसे कर्मों के बावजूद क्या हम राम नाम के ” हक़दार ” हैं !!!

जो चीज सहज से मिलती जाती है उसकी हम क़दर नहीं करते !

सिमरन ! हर पल परमेश्वर से संयुक्त हैं ! उससे खुशी नहीं .. तो इसका मतलब हम कुछ और चाह रहे हैं ! हमारी संसार से कोई अपेक्षा है अधूरी जो हम चाह रहे हैं …. तभी जाप में भाव नहीं आ रहा !

कृपया हमें स्मरण रखना है कि हर एक चीज मन से है ! मन संसार से भीतर से एक तो परमात्मा दूर ! और मन परमात्मा से एक … तो आप कभी नहीं चाहेंगे कि संसार मिले या संसार का अति लुभावना सुख भी मिले !

सो सिमरन नहीं चल रहा ! सिमरन के रस की मस्ती के आगे और कोई चाह नहीं होती …. सिमरन से तो परमेश्वर के संग एक होते हैं, सहज समाधि लगती है इससे, पाप नहीं आते मन सात्विक सहज से रहता है !

परमेश्वर से विनती करनी है

सर्वशक्तिमय रामजी अखिल विश्व के नाथ

शुचिता सत्य सुविश्वास दे सिर पर धर कर हाथ

गुरू का अपनाना व पाप

Jan 30, 2018

आज का चिन्तन

जब गुरू अपने लेते हैं तो पाप होने की सम्भावना होती है क्या?

आज यह प्रश्न चिन्तन के लिए उठा । कई साधकों ने प्रतिओत्तर भी दिए ! हृदय से धन्यवाद !

समर्पण व सम्पूर्ण विश्वास ही इस प्रश्न के उत्तर में व साधकों के उत्तर से समझ आया ! जितना अधिक यह दोनों उतना अधिक दिव्यता रक्षा करती है व सात्विकता होती है।

किन्तु साधारण साधक के लिए यह सत्य ही बैठता है । हम साधक होकर अहम् के वशीभूत कार्य करते हैं,ईर्ष्या वश भेद भाव करें, बिन कारण किसी पर दोषारोपण करें, बिन कारण माता पिता व बहुओं पत्नियों को कटाक्ष बोलें ! काम से निवारण न हुआ हो और कहें कि गुरूजन हैं पाप नहीं लगेगा ! ऐसे कैसे ? गुरूजन तो माथा ठण्का देते हैं , हृदय की धड़कन बढा देते हैं कि यह सब क्या सोच रहे हो? पर फिर भी न समझें तो पाप की धूलि जमती रहती है ! तभी गीताजी में शब्द आता है ” योगभ्रष्ट ” । जिन्होंने किसी कारण अपनी साधना की पूँजी को नीचा गिरा दिया होता है । गुरूजनों का सानिध्य होते हुए भी ! मन मानी करते हुए स्वार्थ रखते हुए ।

पूज्य महाराजश्री ने कहा है कि साधक वह जो सजग रहे ! जो माया के प्रति सजग रहे । अपने मानसिक वाचिक व देहिक कर्मों से डरे !

सम्पूर्ण रूप से समर्पित साधक के लिए यह सब नहीं होता क्योंकि उसका तन मन व आत्मा अपने प्रभु व परमात्मा की हो गई होती है और वे केवल उन्हीं द्वारा चलाय जा रहे होते हैं। उनकी न निजी स्वार्थ न लालसा न कोई मैं होती है !

सो हम जैसों के लिए

तारा है सारा ज़माना राम हमें भी तारो

तारा है सारा ज़माना राम हमें भी तारो

हमें भी तारो राम हमें भी तारो

हमें भी तारो राम हमें भी तारो

शुभ व मंगल कामनाएं

काम व प्रभु प्राप्ति

Jan 29, 2018

आज का चिन्तन

काम व प्रभु प्राप्ति ( प्रश्न के उत्तर हेतु )

हम सब के नज़रिए भिन्न हैं। साधक होकर हमारी लग्न श्रद्धा व पिपासा भी भिन्न है । किन्तु हम सब प्रेम चाहते हैं ।

परम पूज्यश्री स्वामीजीमहाराजश्री की साधना पद्दति गृहस्थों के लिए है। किसी भी गुरूजन ने नहीं कहा कि ब्रह्मचर्य से परमेश्वर मिलेंगे ! यदि ऐसा कहा होता तो आज करोडों साधक राम नाम क्यों ले रहे होते गृहस्थ में रहकर ।

यदि हम युवा हैं तो यक़ीनन यह निर्णय हमारे हाथ में है कि हम गृहस्थ में घुसे या न घुसें ।

पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने हमें किसी चीज पर रोक नहीं लगाई किन्तु भोग व लालसाओं की अग्नि में और तेल अवश्य डालने से मना किया है।

हमारा मन भोग से ग्रस्त है पर हृदय ब्रह्मचर्य चाहता है क्योंकि हम यह मानते हैं कि हमारे गुरू ने ऐसा कहा है।

हर चीज मन से है ! मन में भोग नहीं तो देह में भोग नहीं !

राम नाम से सब सम्भव है ।

भारतीय माताएँ व बहनें भोग की चर्चा नहीं करती खुले आम तो क्या महिलाओं में भोग व काम नहीं ! यह कैसी अवधारना है? मानव है । एक सी भावनाएं हैं। केवल अभिव्यक्ति की भिन्नता है। महिलाएँ भावनाएं पीती हैं और अधिकतम पुरूष सहन नहीं करते ! किन्तु कई विरले आजीवन सहन करते भी हैं जब पत्नि ” न” कह दे ! और कई महिलाएँ आजीवन तड़पती हैं यदि पति ” न” कह दे !

यदि काम की भावना देह व मन में दबाने से इतनी बढ जाए कि डॉक्टर तक कहे रोकना ठीक नहीं पर हम क्योकि प्रभु प्राप्ति चाहते हैं मीरा व राधा जैसी पर ब्रह्मचर्य रहना चाहते हैं तो क्या करें ?

राममय साधना सहज साधना है ! राम नाम से सब कुछ मिलता है । राम नाम से भोग व काम की निवृति भी मिलती है राम नाम से मन में काम जागता भी नहीं है । राम नाम से हर वेग शान्त हो जाता है ! राम नाम की शीतलता भीतर जल रही अग्नियों को शान्त कर देती है । राम नाम की शक्ति उन अग्नियों का रुख वासना से उपासना में बदल देती है ! राम नाम से सबकुछ सम्भव है । पर तभी यदि हम में राम नाम पर भरोसा हो । अनन्त राम नाम ने अनेकों की काया पलट की है फिर हमारी क्यों नहीं ! हमारी भी सम्भव है यदि हम गुरूतत्व पर भरोसा करें। यदि हम प्रार्थनाएँ करें कि मैंने इस पथ का चयन किया है पर बहुत वेदना है यहां मैं सह नहीं पा रहा मुझ पर दया कीजिए कृपा कीजिए । मैं दिव्य प्रेम का इच्छुक हूँ ! देहिक प्रेम का नहीं ! मेरी पुकार कृपया सुनिए !

ऐसी वार्तालाप परमेश्वर व गुरूजनों से करते जानी है ! यदि वेग सहे नहीं जाते !

देह को कष्ट स्वीमीजी महाराजश्री ने कभी नहीं कहा ।

पर क्योंकि हमें प्रभु , देह के ब्रह्मचर्य से ही मिलेंगे ऐसा लगता है और पर हृदय में कान्हा का रास पसंद आता है , रातों नींद नहीं आती उस प्रेम के लिए तो गुरूचरणी में गुहार लगाएँ ! उनकी कृपा से ही कर्मों की काया पलट सकती है !

शुभ व मंगल कामनाएं

धैर्य सफलता लेकर आता है

Jan 28, 2018

आज का चिन्तन

धैर्य , सहनशीलता सफलता लेकर आती है ।

सफलता की जब हम बात करते हैं तो वह बहुत व्यक्तिगत चीज है। किसी को जीवन में शान्ति चाहिए तो वह सफलता है, किसी को साधना में, किसी को व्यापार मे, किसी के पढाई मे, किसी को रोज मर्रा का जीवन बिना डोले निकल जाए तो वह सफलता है। मैंने कही सुना और बहुत अच्छा लगा कि जब बीज बोते है तो वह एक दम अंकुरित नहीं होता । उसे अंकुरित होने में समय लगता है । यह है धैर्य ! हमें अपने को समय देना चाहिए फल देखने के लिए । खासकर जब हम मन को बदलने हेतु निकलते हैं या कि नहीं ! मुझे अपनी सोच बदलनी है तो हमें यह समझना आवश्यक है कि यह कोई एक दिवसीय प्रक्रिया नहीं है । यह बहुत धैर्य माँगेगी और कई बार समय भी ! पर एक दृढ़ मेहनत की आवश्यकता है ।

धैर्य व सहनशीलता हमें उपहार में नहीं कहीं से मिलती और ही हम सब के पास इसका गुण होता है पर एक चीज जो सबके पास है धरती के हर जीव के पास वह है अतिश्य सुंदर दिव्यता ! जो कि धैर्य के स्रोत हैं । अपनी संस्कृति को देखें को हममें सहनशीलता है। पर आज प्रश्न उठता है कि हम सहन कर सकते हैं, स्वीकार कर सकते हैं, पर उस पीडा का क्या करें जो साथ आ जाती है । पर यदि हम भीतर संयुक्त हो जाएँ तो हम बहुत सुरक्षित रूप से प्रवाहित हो जाते हैं। जैसे कि हम काली सुरंग से जा रहे हो रेल गाडी में बैठ कर! काली सुरंग कर्मों के कारण आई पर हम तो ग़ाडी में है और जब हम दिव्यता से बहुत गहन रूप से संयुक्त होते हैं तो कालिमा महसूस ही नहीं होती । और जब हम पीछे मुड कर देखते हैं तो हमरे पास बुरे दिनों के लिए कुछ कहने को ही नहीं होता क्योंकि कुछ बुरा दिखता ही नहीं है।

सो हमें यह भी ध्यान रखना है कि गहन सहनशीलता के समय हमें उन पलों का उत्सव मनाना है जो हमें छोटी छोटी ख़ुशियाँ देते हैं । मुश्किल परिस्थियों के समय हमें यह देखना होता है कि मेरा मन भीतर जा रहा है या कठिन परिस्थितियों पर ! यदि हम उन सकारात्मक छोटी बातों की ओर नज़र करते हैं तो हमें मुश्किल परिस्थितियाँ स्मरण ही नहीं रहेगी । पर यदि अभाव को देखेंगे कि कितने वर्ष हो गए तो वही स्मरण रहेगा वही दुख भरा जीवन स्मरण रहेगा ! सो सब हमारे मन की सोच पर बहुत निर्भर करता है !

सो धैर्य हर कार्य की सफलता के लिए बहुत बहुत अनिवार्य है । सहनशीलता की ऊर्जा भीतर से आती है और वह भीतर की शक्ति हमें बाहर सुंदरता देखने का बल भी प्रदान करती है।

शुभ व मंगल कामनाएं

स्वयं को बदलने से बाहर बदलाव सम्भव है

Jan 27, 2018

स्वयं को बदलेंगे तो राष्ट्रीय व संसार भर में भी बदलाव ला सकते हैं

कल एक बहुत ही अच्छा लेख पढने को मिला। अंग्रेज़ी में था, Thoughtscape Ram Naam जो गुरूजनों की प्रिय साधिका आदरणीय डॉ प्रिया सरीन द्वारा संचालित है, उन द्वारा लिखा गया था ।

सार जो स्मरण रहा वह था भ्रष्टाचार पर । कि देश भक्ति केवल पोस्ट आगे भेज कर नहीं बल्कि देश के लिए कुछ करके सम्भव होती है। और उनका मुद्दा था भ्रष्टाचार ।

वह आज फिर स्मरण हो आया तो लगा कि गुरूजन कुछ मुझे सिखाना चाह रहे हैं। परम पूज्यश्री महाराजश्री ने भी भ्रष्टाचार पर बहुत सुंदर प्रवचन कहे हैं।

गुरूजनो के अनुसार हमें स्वयं वह गुण अपने में सम्पूर्ण रूप से विकसित करना है जो हम बाहर देखना चाहते हैं। हम चाहते हैं हर जगह प्रेम हो तो स्वयं प्रेम बन जाना होता है। हम चाहते हैं सब में ज्ञान आ जाए तो हमें अपने में ज्ञान अर्जित करना होता है। हम चाहते हैं कि सब आरोग्य हो जाएँ तो हमें स्वयं सम्पूर्ण रूप से आरोग्य होना है। हम चाहते हैं देश से गंदगी हट जाए तो हमें स्वयं सम्पूर्ण रुप से साफ होना आवश्यक है। मन व चित् की गहराइओं तक !

मैं आज सैर पर निकली बहुत महीनों बाद, मौसम कुछ खुला था। यहां सदा सफाई रहती है। कोई सफाई कर्मचारी नहीं आते सड़कों की सफाई करने क्योकि सब स्वय सफाई का ध्यान रखते हैं। एक ६० वर्ष की होंगी लगभग महिला । वे रास्ते से छोटे छोटे क़ागज के टुकड़े जो आम आदमी को दिखें भी न उठारही थी । मुझे मौक़ा मिला तो मैंने उनके इस कार्य की तारीफ़ की कि आप कितना सुंदर काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अच्छा नहीं लगता कि मैं जहां रह रही हूँ कुछ एक क़ागज भी दिखे ! सो मैं उठाती रहती हूँ !

सो स्वयं हमें वह बन जाना है जो हम देखना चाहते हैं ! फिर दिव्यता अभियान आरम्भ करवा देती है , एक क्रान्ति बन जाति है वह अभिमान !

सो देश में क्रान्ति के लिए समाज में क्रान्ति के लिए संसार मे क्रान्ति के लिए परिवार में क्रान्ति के लिए स्वयं में क्रान्ति लानी आवश्यक है !

मुश्किल का घड़ियों में दिव्य संकेत

Jan 27, 2017

दो परिवार हैं , भिन्न भिन्न , जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। काम न के बराबर है और बच्चों की फ़ीस नहीं दी जा रही । जाप चल रहा है। जाप में कमि नहीं आ रही । एक तो तो ऐसा लगता है कि गुरूजन आस पास ही हैं । कहते हैं प्रभु के संकेत समझ नहीं आ रहे ।

प्रभु व गुरूजनो की उपस्थिति का व अपने सहारे का सबसे सुंदर हस्ताक्षर है उनका नाम । यदि विपदा का घडी में उनका नाम नहीं छूट रहा , और चल रहा है तो मानिए कृपा बरस रही है। सुरक्षा कवच चढा दिया है किसी ने ।

चाहे भौतिक परिस्थिति हिलती हुई नहीं नज़र आ रही । पर कही कही प्रकाश की किरण अवश्य दिख रही होती है।

काल के ऐसे समय में उनका नाम छत्र बना देता है।

उनके पास बहुत धन है ! हर तरह का । वे अवश्य किसी तरह प्रबंध कर देंगे यदि यह विश्वास टिकाए रखें कि आप हैं और आप जानें !

सो घबराना नहीं है । राम नाम प्रेम व विश्वास से लेते जाएँ ! जब तक राम नाम ले सकें तब तक सब ठीक है! वही एक सहारा हैं। वही हर नए सुझाव के स्रोत हैं। अपने भीतर से काम कैसे करें व क्या करें कि उधार न लेना पड़े, गृहस्थी चलती जाए, पूछिए ! वे केई न कोई मार्ग अवश्य निकाल देंगे !

महाराज कृपालु बडे

गुरूदेव दयालु बडे

वे आप ही काम बना देंगे

टूटी फूटी नाव हमरी

वे खे कर पार लगा देंगे

हम आए कहां के ऐसे धनी

जो उन बिन काम चलाएँगे

हाँ, मेरे समरथ बाबा ऐसे

मेरी बिगड़ी बात बना देंगे

महाराज कृपालु बड़े

गुरूदेव दयालु बडे !

दिव्यता से संयुक्त साधक

Jan 27, 2018

आज का चिन्तन

दिव्यता से संयुक्त साधक न अपनी प्रतिक्रिया करता है न अपने को सही ठहकाने की चेष्ठा करता है ।

हमें कोई कुछ कहता है हम प्रतिक्रिया करते बताते हैं नहीं मैं यह कहना चाह रही थी या नहीं ऐसा नहीं मैंने कहा था पर ऐसा कहा । प्रतिक्रिया मेरे जैसे लम्बी लम्बी देते हैं कि भई मैं तो ऐसी हूं नहीं नहीं मैं तो ऐसी हूँ ! पर जो राम से संयुक्त होता है , राम में लपालप होता है वहाँ साधक अपनी ऊर्जा व्यर्थ नहीं करता ।

इसी तरह मैं सही हूँ ! नहीं मेरे विचार सही है ! मेरे अनुमान सही है ! यह सही होने कि चाह भी उस साधक की समाप्त हो जाती है जहां वह दिव्यता से भर जाता है ! यदि कोई गलत भी समझ रहा है यह गलत भी कह रहा है, साधक सुन कर आगे बढ जाता है ! किन्तु इसके लिये परमेश्वर के अथाह स्मरण में उसे हर पल रहने की आवश्यकता होती है !

मन की पवित्रता ही यह सम्भव बनाती है । राम नाम से ही मन की पवित्रता सम्भव होती है !

जगे चेतना विमलतम हो सत्य सुप्रकाश

शान्ति सर्व आनन्द हो पाप ताप का नाश

शुभ व मंगल कामनाएं