Jan 7, 2017
कभी भी रुक कर न सोचिए कि हमें किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्या क्या त्याग करना पड़ा ~ डॉ गौतम चैटर्जी, Positive Mantra.
मेरी व्यक्तिगत रूप से यह सोच है कि जब भी गुरूजन हम से हमारे कर्तव्यों का पालन करवाएं तो यह मन कभी न सोचे कि इस सेवा के लिए हमारी देह को कितने कष्ट उठाने पड़े या घर बार के कार्य कितने त्याग करने पड़े, अपने गुरूजनों के लिए, या अपने कर्तव्यों के लिए।
सब की सोच अलग है। परमेश्वर दया करें कि जब यह सिखाया है कि वे ही करनकरावन हैं तो हर कार्य भी वे ही कर रहे हैं। कभी स्वप्न में भी न ज़िक्र हो कब व कैसे क्या क्या करना पड़ा । यह देह के कार्य , पानी में जिस तरह लिखा नहीं जा सकता, वैसे ही साथ ही साथ मिटते जाएँ।
न सूर्य को स्मरण रहता है कि कितनी सदियों से वह प्रकाश दे रहा है, न वनस्पति को स्मरण है कि कितनों को फल दिया और कितनों को लकड़ी व छांव दी , न नदि को स्मरण है कि कितनों की प्यास बुझाई, कितने जीवों को भोजन करवाया, न गंगा जी स्मरण रखती हैं किकितनों के पाप सदियों से धोती आ रही हैं । न धरती मां स्मरण रखती हैं कि कितने युगों से वे कितने जीवों का पोषण कर रही हैं ।
मेरे प्यारे परमात्मा देव कृपया हम आपकी प्रकृति से एक हो जाएँ । इन जैसा बन जाएँ । कृपा कीजिएगा कृपा कीजिएगा ।
ऐसी सीख सिखाने के लिए कोटिश्य धन्यवाद 🙏
सब आपसे व आपके श्री चरणों में