दिव्यता से संयुक्त साधक

Jan 27, 2018

आज का चिन्तन

दिव्यता से संयुक्त साधक न अपनी प्रतिक्रिया करता है न अपने को सही ठहकाने की चेष्ठा करता है ।

हमें कोई कुछ कहता है हम प्रतिक्रिया करते बताते हैं नहीं मैं यह कहना चाह रही थी या नहीं ऐसा नहीं मैंने कहा था पर ऐसा कहा । प्रतिक्रिया मेरे जैसे लम्बी लम्बी देते हैं कि भई मैं तो ऐसी हूं नहीं नहीं मैं तो ऐसी हूँ ! पर जो राम से संयुक्त होता है , राम में लपालप होता है वहाँ साधक अपनी ऊर्जा व्यर्थ नहीं करता ।

इसी तरह मैं सही हूँ ! नहीं मेरे विचार सही है ! मेरे अनुमान सही है ! यह सही होने कि चाह भी उस साधक की समाप्त हो जाती है जहां वह दिव्यता से भर जाता है ! यदि कोई गलत भी समझ रहा है यह गलत भी कह रहा है, साधक सुन कर आगे बढ जाता है ! किन्तु इसके लिये परमेश्वर के अथाह स्मरण में उसे हर पल रहने की आवश्यकता होती है !

मन की पवित्रता ही यह सम्भव बनाती है । राम नाम से ही मन की पवित्रता सम्भव होती है !

जगे चेतना विमलतम हो सत्य सुप्रकाश

शान्ति सर्व आनन्द हो पाप ताप का नाश

शुभ व मंगल कामनाएं

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