काम व प्रभु प्राप्ति

Jan 29, 2018

आज का चिन्तन

काम व प्रभु प्राप्ति ( प्रश्न के उत्तर हेतु )

हम सब के नज़रिए भिन्न हैं। साधक होकर हमारी लग्न श्रद्धा व पिपासा भी भिन्न है । किन्तु हम सब प्रेम चाहते हैं ।

परम पूज्यश्री स्वामीजीमहाराजश्री की साधना पद्दति गृहस्थों के लिए है। किसी भी गुरूजन ने नहीं कहा कि ब्रह्मचर्य से परमेश्वर मिलेंगे ! यदि ऐसा कहा होता तो आज करोडों साधक राम नाम क्यों ले रहे होते गृहस्थ में रहकर ।

यदि हम युवा हैं तो यक़ीनन यह निर्णय हमारे हाथ में है कि हम गृहस्थ में घुसे या न घुसें ।

पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने हमें किसी चीज पर रोक नहीं लगाई किन्तु भोग व लालसाओं की अग्नि में और तेल अवश्य डालने से मना किया है।

हमारा मन भोग से ग्रस्त है पर हृदय ब्रह्मचर्य चाहता है क्योंकि हम यह मानते हैं कि हमारे गुरू ने ऐसा कहा है।

हर चीज मन से है ! मन में भोग नहीं तो देह में भोग नहीं !

राम नाम से सब सम्भव है ।

भारतीय माताएँ व बहनें भोग की चर्चा नहीं करती खुले आम तो क्या महिलाओं में भोग व काम नहीं ! यह कैसी अवधारना है? मानव है । एक सी भावनाएं हैं। केवल अभिव्यक्ति की भिन्नता है। महिलाएँ भावनाएं पीती हैं और अधिकतम पुरूष सहन नहीं करते ! किन्तु कई विरले आजीवन सहन करते भी हैं जब पत्नि ” न” कह दे ! और कई महिलाएँ आजीवन तड़पती हैं यदि पति ” न” कह दे !

यदि काम की भावना देह व मन में दबाने से इतनी बढ जाए कि डॉक्टर तक कहे रोकना ठीक नहीं पर हम क्योकि प्रभु प्राप्ति चाहते हैं मीरा व राधा जैसी पर ब्रह्मचर्य रहना चाहते हैं तो क्या करें ?

राममय साधना सहज साधना है ! राम नाम से सब कुछ मिलता है । राम नाम से भोग व काम की निवृति भी मिलती है राम नाम से मन में काम जागता भी नहीं है । राम नाम से हर वेग शान्त हो जाता है ! राम नाम की शीतलता भीतर जल रही अग्नियों को शान्त कर देती है । राम नाम की शक्ति उन अग्नियों का रुख वासना से उपासना में बदल देती है ! राम नाम से सबकुछ सम्भव है । पर तभी यदि हम में राम नाम पर भरोसा हो । अनन्त राम नाम ने अनेकों की काया पलट की है फिर हमारी क्यों नहीं ! हमारी भी सम्भव है यदि हम गुरूतत्व पर भरोसा करें। यदि हम प्रार्थनाएँ करें कि मैंने इस पथ का चयन किया है पर बहुत वेदना है यहां मैं सह नहीं पा रहा मुझ पर दया कीजिए कृपा कीजिए । मैं दिव्य प्रेम का इच्छुक हूँ ! देहिक प्रेम का नहीं ! मेरी पुकार कृपया सुनिए !

ऐसी वार्तालाप परमेश्वर व गुरूजनों से करते जानी है ! यदि वेग सहे नहीं जाते !

देह को कष्ट स्वीमीजी महाराजश्री ने कभी नहीं कहा ।

पर क्योंकि हमें प्रभु , देह के ब्रह्मचर्य से ही मिलेंगे ऐसा लगता है और पर हृदय में कान्हा का रास पसंद आता है , रातों नींद नहीं आती उस प्रेम के लिए तो गुरूचरणी में गुहार लगाएँ ! उनकी कृपा से ही कर्मों की काया पलट सकती है !

शुभ व मंगल कामनाएं

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