Jan 30, 2018
प्रश्न : युवक व युवतियों को अध्यात्मवाद से कैसे जोड़े
आध्यात्म हर धर्म का मूल है ।
दूसरों को इस ओर लाने से पहले स्वयं पूर्ण रूप से आध्यात्मिक बनना आवश्यक है ! जितने भी साधकों या इंसानों ने जब कभी भी दूसरे पर प्रभाव डाला है वह तभी डाल पाए क्योंकि वे स्वयं उसमें परिपूर्ण थे ! हमारे गुरूजन ! या हमारे क्रान्तिकारी देश भक्त ! कैसे उनमें देश के प्रति ज़नून उनके रोम रोम में जागृत था ! तभी वे दूसरे में कुछ प्रभाव ला सके हैं। इतना ही नहीं बल्कि आज भी उनके बारे में पढ कर सुन कर रौंगटे खडे हो जाएँ ! हमारे गुरूजन आज भी अपने कार्य कर रहे हैं ! क्योंकि उन्होंने वह स्वयं जीया है !
और प्रार्थनाओं से !
पर जब युवा लोगों से कार्यकर्ता बात करने जाते होंगे तो कुछ विष्यों पर केंद्रित हो सकते हैं –
शाश्वत प्रेम – ऐसा प्रेम जो बाहर नहीं बल्कि भीतर मिलता है और सदा रहता है मंद नहीं होता । बिन कारण प्रेम बहता है । वह प्रेम जो बाहरी देह पर बाहरी सफलताओ पर बाहरी प्रेम पर या बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होता !
आत्म सम्मान व स्वसशक्तिकरण – जो बाहर परिवार से नहीं बल्कि अध्यात्मवाद भीतर से उपजता है । यह सिखाता है कि हम में कुछ भी करने की भीतर अनन्त ऊर्जा है !
तनाव रहित जीवन – चाहे काम बन रहे हैं न नहीं पर तनाव नहीं है !चाहे परिस्थितियाँ विपरीत हैं पर मन नहीं हिल रहा । अध्यात्मवाद धैर्य देता है और विभिन्न मार्ग प्रशस्त करने की राह दिखाता है ।
सफलता – कैसे हर परिस्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैं और वहाँ से सफल हो सकते हैं !
पक्षपात से पार – केवल आध्यात्म वाद ही है जो बाहरी भिन्नता को भीतरी एक्यपन से जोड़ सकता है !
आनन्दमय व विनीत जीवन – आध्यात्म भीतर से आनन्द उपजता है , स्वयं को परिपूर्ण करता है और इसी से जीवन में विनय आता है !
इन कुछ बातों से युवा पीढ़ी को शायद आध्यात्मवाद मे लाया जा सकता है ।
पर इसमें हमें स्वयं विश्वास हो !