Jan 30, 2018
कहते हैं- सिमरन चल रहा है तो इसी से खुश हो जाएँ या गुरूजन और भी आगे लेकर जाते हैं ?
इसका मतलब सिमरन नहीं चल रहा !!!!!!! सिमरन का स्वाद ही नहीं चखा !
पाँच – दस वर्ष पीछे जाइए और आएने के सामने हम सब खडे हो जाएँ और वहाँ देखें … कि हमारी दस वर्ष पहले क्या हालत थी और आज क्या है ?
फिर भी कृपाएं नहीं दिखती तो लिख कर देखें कि क्या थे और क्या है ?
हम किसी एक चीज के भी लायक हैं? क्या हम राम नाम लेने के भी लायक हैं? जैसे कर्म हमने किए हैं वह हमारे जीवन से हम पता चलता है ! हमें दूसरों से क्या क्या सुनना पडता है वह हमें पता है कि यह सब मैंने ही सुना रखा है तभी मुझे मिल रहा है ! ऐसे कर्मों के बावजूद क्या हम राम नाम के ” हक़दार ” हैं !!!
जो चीज सहज से मिलती जाती है उसकी हम क़दर नहीं करते !
सिमरन ! हर पल परमेश्वर से संयुक्त हैं ! उससे खुशी नहीं .. तो इसका मतलब हम कुछ और चाह रहे हैं ! हमारी संसार से कोई अपेक्षा है अधूरी जो हम चाह रहे हैं …. तभी जाप में भाव नहीं आ रहा !
कृपया हमें स्मरण रखना है कि हर एक चीज मन से है ! मन संसार से भीतर से एक तो परमात्मा दूर ! और मन परमात्मा से एक … तो आप कभी नहीं चाहेंगे कि संसार मिले या संसार का अति लुभावना सुख भी मिले !
सो सिमरन नहीं चल रहा ! सिमरन के रस की मस्ती के आगे और कोई चाह नहीं होती …. सिमरन से तो परमेश्वर के संग एक होते हैं, सहज समाधि लगती है इससे, पाप नहीं आते मन सात्विक सहज से रहता है !
परमेश्वर से विनती करनी है
सर्वशक्तिमय रामजी अखिल विश्व के नाथ
शुचिता सत्य सुविश्वास दे सिर पर धर कर हाथ
Prem se kahiya jhukna sikha de
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