Jan 26, 2018
आज का चिन्तन
अनव्रत साधनारत रहना है
कल एक आदरणीय साधक जी बोले कि हमें नहीं पता अगले जन्म में गुरूजन मिलेंगे कि नहीं ! हमें नहीं पता अगला जन्म मानव योनि में होगा कि नहीं ! हमें नहीं पता कि कल आएगा भी के नहीं ! हमारे पास जो है बस आज ही है ! हमें इस आज में राम में लीन हो जाना है, भीतर जाना है, छिप कर गुप्त रह कर साधना करनी है और जितने विकार हो सकें उन्हें सजग होकर निकालते जाना है !
यह गुरूजनो का ही तो संदेश है ! कि जुट जाना है ! भीतर के वेगों से नहीं निपट पा रहे , लगे रहो, हार नहीं माननी ! गुरूजन मार्ग बताते हैं, गुरूजन अपने सानिध्य से विचारों में सिमरन भर सकते हैं, किन्तु हम में स्वयं तो अविरल राम नाम नहीं भरा ! अपनी बात कह सकती हूँ ! दूसरों का पता नहीं ! भीतर के विचार राम में हर पल के लिए तो विलीन न हुए ! सो राम नाम पर चिन्तन मनन करते रहना है । भीतर की दिव्यता को निहारते रहना है और उसका आकार दिन प्रतिदिन बढ़ाते रहना है ! अनव्रत ! ढील नहीं देनी !
देखिए ! माया हमें ढील देती है क्या ? हमारे पापमय कुकर्म हमें ढील देते हैं क्या ? नहीं देते ! आकर ही रहते हैं ! सो हम क्यों फिर सजग नहीं होते ? हम बार बार माया के चंगुल में क्यों फँसते हैं? मान, सम्मान, प्रशंसा, मद, अहम्, लालसाएँ , सब समय पर आती हैं , सो हम क्यों ढीले पड़ जाते हैं? हम क्यों इन में आनन्द लेने लग जाते हैं !
हमें हर पल सजग रहना है! राम नाम की ओर सदा मुख करना है! और इसका आराधन करते जाना है ! यह नहीं। यह नहीं ! करते जाना है जब तब हर पल परमेश्वर में विलीन न रहें जब तक राम नाम स्वयं न गूँजे जब तक अहम् लेश मात्र न रहे !
आइए ! हम भीतर और गहरे में जाने का अभियान आरम्भ करें ! जीवन व्यर्थ न जाए इसके लिए समर्पित होकर गुरूचरणी में रह कर केवल नाम की लालसा लिए साधनारत हो जाएँ !
आज के पावन दिवस पर हम स्वयं के लिए सह अभियान छेड़ें ! गुरूजन कृपा करें ! प्रभु दया करें !