Monthly Archives: March 2018

प्रेम व कृतज्ञता

March 31, 2018

आज की कृतज्ञता

आज के परम आलौकिक परम पुण्यमय दिवस पर रोम रोम से कृतज्ञ ही हो सकते हैं !

गुरूजन कहते हैं कि परमेश्वर की कृपा हुई और संत मिले ! और संत की कृपा हुई तो परमेश्वर का परम प्यारा नाम मिला ! नाम की कृपा से नामी का प्यार व नामी मिलते हैं ! जीवन वसन्त बन जाता है ! बाहरी मौसम कैसे भी हों , इन परम प्यारों के साथ जीवन वसन्त बन जाता है ।

परम पूज्यश्री गुरूदेव कहते हैं कि परमेश्वर अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं करते । उन्हें छिपाना बहुत अच्छा आता है और छिपना भी ।

पर हम समझते नहीं । इज़हार चाहते हैं। जाएज़ भी है ! जब तक प्रेम का इज़हार प्रेमी न करे तब तक कैसे पता चले कि प्रेम कहीं एक तरफ़ा तो नहीं ! यहीं संत आते हैं और वे भेद खोलते हैं कि पगले ! प्रेम की पहल तो प्रभु करते हैं । तुम तो बस बूंद पाकर गोते खाते हो! संत कहते हैं कि वह बहुत तड़पता है आपके लिए ! यह बातें भक्ति में ही हो सकती हैं! ज्ञान तो कहेगा परमेश्वर भावों से पार समता में रहते हैं, उन्हें कुछ लेना देना नहीं । पर प्रेमी भक्त तो मर ही जाए इस बात से!

सो परमेश्वर अपने प्रेम का इज़हार करना आरम्भ करते हैं! कभी अपनी याद देकर, कभी वियोग देकर, कभी संसार से अलगाव देकर, कभी शरीर से अलगाव देकर , कभी प्रियजनों से पीठ देकर ! अब हम कहें कि यह कैसा प्रेम हुआ ? हुआ न ! इन चीज़ों से वह अपनी ओर आकर्षित करता है ! और हमें ले चलता है अपनी खोज पर …. तब देता है अपने हस्ताक्षर चमत्कारों के रूप में या उत्थान के रूप में या अपने अंग की अभिव्यक्ति कर के ! या संत का सदृश्य या अदृश्य प्रेम देकर !

सो उस गुप्त, सूक्ष्म, साक्षात, प्रेम के लिए कृतज्ञता ! उन सुखद पलों के लिए आभार जब उनकी स्मरण रहा! उन पलों के लिए कृतज्ञता जब अपनी ओर और खींचा , उन पलों के लिए आभार जब सब कुछ अपने हाथों में ले लिया !

साधना का सार है ही आभार व प्रेम ! हर पल ऐसे रह सकें यही साधना है !

साष्टांग नमन ओ गुरूतत्व ! साष्टांग नमन !

राममय साधना व गृहस्थ

March 30, 2018

आज का चिन्तन

परम पूज्यश्री परम श्रेध्य श्री श्री स्वामीजी महाराजश्री की साधना गृहस्थ की साधना है । गृहस्थ में रह कर परमेश्वर प्राप्ति ! ऐसी है उनकी साधना पद्धति । आध्यात्म योग के मूल से भक्ति के रस से परिपूर्ण ! जीवन के हर मौसम में राम से संयुक्त होकर जीवन यापन करना सिखाते हैं !

क्या यह सम्भव है कि जब परिवार वाले सहयोग न दें, जब अपने प्रेम या भाव न समझें, या जब परिस्थितियाँ हम प्रेममय होकर राममय होकर प्रेम विस्तृत कर सकते हैं ? सम्भव है! राम नाम के संग व गुरूचरणी से !

हमारी संस्कृति में गृहस्थ जीवन जहां त्याग व सेवा का प्रतीक है वहाँ प्रेम की नदि बहनी भी अनिवार्य है । हमारे सभी परमेश्वर रूप गृहस्थ हैं । प्रेम से परिपूर्ण ! पर क्या हमारे परिवार वैसे हैं ? क्या वैसा प्रेम हम दे पा रहे हैं ? और क्या सम्भव भी है ऐसा प्रेम ?

हैं ! क्योंकि राम तो प्रेम व शान्ति हैं ! सो कैसे लाएँ वैसा प्रेम?

प्रिय गुरूजन कहते हैं सबसे पहले अपने से प्रेम करके! यह अपने से प्रेम मतलब, जो हमारा सत्यस्वरूप है उससे प्रेम करके! जो हमें अनुपम बताता है उससे प्रेम करके! वह स्वरूप हमारे मन में नहीं बल्कि हमारे हृदय में वास करता है! जब हम उससे प्रेम करने लगते हैं, तो हम देना आरम्भ कर देते हैं बिना कुडकुड के बिना क्रोध के बिना रोष के! पर तभी जब हम हृदय पर केंद्रित हो!

यह सब गुरूजनों की ही सूक्ष्म कृपा से सम्भव है ! अपने गृहस्थ जीवन में प्रेम उँडेलना पर अपने राम से अतिश्य घनिष्ठ रूप से संयुक्त रहतर ! हमारी संस्कृति का मूल है गृहस्थ जीवन । सो जो हमारी जीवन रूपी थाली में हमें परोसा जाता है उसे सकारात्मक रूप से अपने से प्रेम करके दूसरों को प्रेम देना है, सेवा करनी है व अहम् के त्याग की सर्वोच्य उपलब्धी करनी है ! सब गुरूजन सम्भव बनाएँगे !

अतिश्य शुभ व मंगल कामनाएं

गृहस्थ साधना राममय साधना

March 29, 2018

आज का चिन्तन

हमारे गुरूजनों की साधना गृहस्थों की साधना है । और राममय साधना जीवन के इस अंग में से सफल होना सिखाती है । गुरूजन तीन शब्द उपयोग करते हैं गृहस्थ को सफल बनाने हेतु: त्याग, प्रेम व सेवा । और यह तीनों गुण मिलते हैं गुरूजनों व राम नाम के चरणधुलि से ।

गृहस्थ जीवन सब के लिए सहज व आसान नहीं है । ससुराल वालों की कठिन अपेक्षाएँ, जीवन साथी का परोक्ष संग, बच्चा होना या न होना, ग़रीबी, बहुत सारे कारण बनते हैं कि इसे छोड़ दिया जाए । भाग जाएँ इससे !

पर राममय साधना हमें सकारात्मकता से इन जब जटिलताओं से जूझना सिखाती है । जब वह त्याग सिखाती है तो राम के लिए त्याग सिखाती है और अपने लिए अपेक्षा न हो वहाँ के लिए शक्ति देती है।

राममय साधना प्रेम सिखाती है,निस्वार्थ, कि बिन कारण हम प्रेम करना सीखें,कैसे, स्वयं को प्रेममय मानकर , स्वयं को प्रेम का स्रोत मानकर !

राममय साधना, स्वसुधार पर बल देती है। गृहस्थ में हम दूसरे सुधर जाएँ, दूसरे हमारे अनुकूल बन जाएँ ऐसी इच्छा करके प्रार्थनाएँ भी करते हैं ! किन्तु अपने को परफ़ेक्ट मानते हैं ! पर राममय साधना तो सिखाती है कि कैसे हमने सुधरना है, कैसे हमने चीज़ों को नजरअंदाज करना है ,और अपने राम से संयुक्त रहतर स्व सुधार करना है ।

यदि हम बिना भीतर संयुक्त हुए देते जाते हैं तो भीतर क्रोध जमता रहता है कि मैं ही सब करता या करती जा रही हूँ ! पर जब हम हृदय से संयुक्त होते हैं तो हम मानते हैं कि अरे !बिन कारण प्रेम करना तो मेरा स्वभाव है, बिन माँगे देना को मेरा स्वरूप है ! तो ” मै” ही कर रही हूँ सब मन में नहीं आएगा !

यह जीवन मिला ही स्वसुधार के लिए है! अपने से अथाह प्रेम करेंगे तो बिन कारण दूसरों से प्रेम कर पाएँगे ! हर परिस्थिति का समाधान दूसरे के सुधार में नहीं बल्कि अपने सुधार में है !

शुभ व मंगल कामनाएं

स्व सुधार

March 28, 2018

आज का चिन्तन

जीवन में सुधार अपना ही करना है । संत महात्मा कहते हैं कि जितना हम अपना सुधार करते जाते हैं उतना प्रभाव दूसरों पर स्वयमेव ही पडता रहता है । वहाँ समझाने की आवश्यकता नहीं पडती, हमारी आभा ही सारा कार्य कर देती है, हमारे भीतर का गहन सहज मौन ही स्वयमेव सुधार कर देता है । पर बात है स्वयं के सुधार की !

आज के युवा बच्चे बहुत ज्ञानी हैं ! स्वतंत्र सोच वाले, आध्यात्मिक ज्ञान वाले, स्वावलम्बी , बुद्धिजीवी इत्यादि है !

किन्तु हम जैसे बुद्धिजीवी जीवन को सरल बनाने की बजाए जटिल बना देते हैं ! कैसे ? अपने को दूसरे से उत्कृष्ट समझ कर! स्वयं को अधिक समझदार समझने के चक्कर में दूसरे का सुधार दूसरे को सिखाना आरम्भ कर देते हैं ! पर आध्यात्म तो यह नहीं है ! न ही राममय साधना यह है !

आध्यात्म तो सदा स्व सुधार पर बल देता है ! अपने सत्य स्वरूप से मन का एक्य हो जाए , जो कि बुद्धि के बस का नहीं है, यही उद्देश्य होता है ! और जीवन में हम परिस्थितियाँ भी इस कारण आती हैं कि हम स्व सुधार कर सकें !

राममय साधना भी यही करती है ! स्वयं में राम जानकर दूसरों में भी राम देखना ही इसका गंतव्य है !यहां भी बुद्धि का कोई कार्य नहीं रह जाता !

जैसे कि एक बच्चा नए कॉलेज में गया है ! वहाँ की हर बात यदि वह गलत ठहराने लगे व कहे कि सब प्रक्रिया ही गलत है, तो न तो वह खुश रह पाएगा और न ही कुछ सीख कर अपना उत्थान कर पाएगा ! किन्तु यदि वह झुककर सब स्वीकार करके अपने रचनात्मक ढंग से हर चीज को देखेगा व स्व उत्थान उसका लक्ष्य रहेगा, तो वह निश्चित ही सफलता पाएगा !

बात नज़रिए की है ! नजर अपनी ओर ही रखनी है !

शुभ व मंगल कामनाएं

हर परिस्थिति को सुअवसर मानें

March 26, 2018

आज का चिन्तन

जब हम नई जगह काम पर लगते हैं या विवाह करके नए घर जाते हैं, क्यो हमें भय लगता है ? क्या कारण है कि इतनी प्रगाढ इच्छा के बाद जब इच्छा पूर्ण होती है तो हमें या तो भय

लगता है या हम adjust नहीं कर पाते और खीज कर निकलने की सोचने लग जाते हैं । राममय साधना हमें यहां क्या सिखाने का प्रयास कर रही होती है ?

सबसे पहले धैर्य । कोई भी नया कार्य एक दम नहीं आता । उसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है । चाहे नई नौकरी या नया परिवार । सो राम नाम से शक्ति की सतत प्रार्थना करनी होती है कि भगवन आपश्री ने इतनी कृपा की है कृपया मुझे शक्ति दीजिए कि मैं धैर्य से हर चीज सीखूँ !

दूसरी बात झुकना ! नई चीज सीखने के लिए झुकना पड़ेगा । दूसरे से पूछना पड़ेगा । कभी सहायता मिलेगी , कभी नहीं । पर आत्मविश्वास रखते हुए कि मेरे भीतर जो विराट शक्ति के स्रोत हैं उनके पास हर समस्या का हल है, मुझे वे हर समस्या का हल स्वयं प्रदान करेंगे जब मैं भीतर संयु्कत हो जाऊंगी/ जाऊँगा तो !

जब नए परिवार में मन नहीं मिलते तो हम दूसरों को नीचा समझने लगते हैं। हमें दूसरों में कोई गुण नहीं दिखता । हमें दूसरों की हर बात बेकार लगती है !

यहां पर हमें फिर से झुकने की आवश्यकता है और प्रार्थना की कि हे परमेश्वर मुझे दूसरों में गुण दिखें !

हर कार्य क्रोध व पलायन करने से सुलझता नहीं। तरकीबें भी लगाई जा सकती हैं। जैसे कि एक माँ ने अपने ३ वर्ष के बच्चे को डाँटा जब उसने रंग करते समय क़ालीन पर रंग गेर दिए ! पर अगली बार उसने ऐसी जगह बच्चे को बिठाया व नीचे कपड़ा बिछाया ताकि बच्चा यदि दंगा करे तो परेशानी न होवे ! सो यदि हम हर समय परिवार के सदस्यों से नहीं बात कर सकते तो हम छुट्टी के दिन बातबात कर सकते हैं ! हर समस्या को रचनात्मक ढंग से सुलझाया जा सकता है ।

हम अशान्ति व भय के भाव में तभी आते हैं जब हम अपने असली स्वरूप को भूल जाते हैं और मन में आकर बैठ जाते हैं ! जब हम बार बार अपने हृदय पर जाना आरम्भ करते हैं , बार बार स्वयं को यह स्मरण करवाना है कि मैं अपनी सबसे प्रिय मित्र हूँ , मैं प्रेममय हूँ , शक्ति का भण्डार हूँ और मेरे अंदर हर समस्या का समाधान है , तो हम तत्काल शान्ति को प्राप्त होते हैं ! हर परिस्थिति को बेहतर होने के लिए सुअवसर मानें !

करके देखिए !

शुभ व मंगल कामनाएं

पूज्य प्रेमजी महाराजश्री

March 26, 2018

आज किसी साधकजी ने परम पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री के बारे में बताने के लिए अनुरोध किया । उन्हें देखा तो नहीं पर जो सुना है वह संक्षेप में श्री चरणों में …..

पूज्य प्रेम जी महाराजश्री बचपन से हनुमान चालीसा पढ़नी बहुत पसंद करते । वे एक सम्पन्न परिवार से थे ।

उन्होंने इंजीनियर की पढाई की ।

वे योगा करते थे और परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री को वे ऐसे समागम में मिले ।

वे बहुत ही शान्त प्रवृति के थे और कम बोलते थे । उन में सेवा भाव आरम्भ से ही था । उनका परिवार बँटवारे के समय हवाई जहाज से भारत आया । तब भी उनके हाथ बाल्टी थी जिससे शरणार्थियों को पानी वे पिलाते जा रहे थे ।

जब भी वे पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री को प्रणाम करते तो पूज्य स्वामीजी महाराजश्री अपनी जुराबें इत्यादि उतार देते । इस पर बाकि साधक एक बार बोले भी तो पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्रि ने कहा कि आप नहीं जानते यह कौन हैं ।

साधना सत्संग में पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री साधकों की मालिश करना पसंद करते । वे अपना तेल साथ रखते ।

रात रात भर वे कितने घण्टे पूज्यश्रि स्वामीजी महाराजश्री के कमरे के बाहर प्रणाम की मुद्रा में पाए जाते ।

पूज्य स्वामीजी महाराजश्री अपने कमरे में अकेले भोजन करना पसंद करते थे । और कभी न जूठन छोड़ते न कुछ ऐसे देते । एक बार उन्होंने पूज्यश्री प्रेमजी महाराजश्री को केला भेंट में दिया । तब पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री वह प्रसाद छिलके समेत खा गए ।

पूज्य श्री प्रेम जी महाराजश्री की प्रार्थनाओं में बहुत बल था । यदि किसी की प्रार्थना न करनी होती तो उन्हें आवाज़ आ जाती कि नहीं ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री एक आदर्श शिष्य थे । उन्होंने आजीवन पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के आदेशों को अक्षराक्षर माना ।

वे साइकल पर आते जाते । वे अपनी सारी तनख़्वाह श्रीरामशरणम को दे देते । पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कहते कि कुछ घर भेजा करो व कुछ अपने ख़र्च के लिए । वे अपने पास इतना भी नहीं रखते थे जिससे कि साइकल का पंचर लगाया जा सके !!

पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री के ग्रंथों के साथ मदद पूज्यश्री प्रेमजी महाराजश्री ही किया करते ।

पूज्य स्वामीजी के अंतिम समय में भी वे उनके साथ थे । स्वामीजी महाराजश्री को उन्हें कहना पड़ा था कि अब जाने दे न ! अंतिम घड़ियों में पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने उन्हें निकट बुला कर उनके कान में कहा था । जिसे शायद शक्ति देना कहा जाता है ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री को पूज्य स्वामीजीमहाराजश्री ने होमिओपैथिक पढ़ने को कहा । और फिर उन्होंने मुफ़्त में दवाई भी देनी आरम्भ की ।

गुरू के रूप में वे बहुत ही सीधे थे । वे पैंट शर्ट ही पहनते । या फिर सफ़ेद कुर्ता पजामा ।

उनकी आँखों में बहुत ही तेज़ था । और अथाह प्रेम । उनके साधक उनके अथाह प्रेम को भुला नहीं सकते , वह बिन कहे इतना प्रभाव शाली था ।

बहुत से असाध्य रोग वे केवल दृष्टि से ठीक कर देते या फिर हाथ लगा कर।

एक बार वे दीक्षा दे रहे थे और कुछ बच्चे भी थे दीक्षामें । आँख बंद करने को कहा । पर एक बच्चा बहुत नटखट। उसने आँख खोली तो वहाँ भगवान शेषनाग को पाया !!!

बहुत से साधकों ने अपना बचपन पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री के सानिध्य में गुज़ारा । उन्होंने बहुत आनन्द लूटा ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराज धीरे धीरे प्रवचनों में स्वामीजी महाराज श्री का नाम लेते ही अति भाव विभोर हो जाते। धीरे धीरे वे और मौन होते गए और प्रवचनों में केवल ” राम राम जपा कीजिए ” या ” गीता जी का पाठ किया कीजिए” बस इतना ही कहते ।

बहुत से चमत्कार के साक्षी हैं साधक ।

एक बार हरिद्वार साधना सत्संग के दौरान गंगा जी का पानी बहुत बड़ गया था । जब सैर करने निकले सभी तो पुलीस नील धारा नहीं जाने दे रही थी । पूज्य प्रेम जी महाराज ने गंगा जी की ओर देखा और वे चलते गए । रुके नहीं । गंगा जी का प्रवाह व पानी धीरे धीरे घटने लगा और कुछ समय पश्चात नीचे हो गया !

पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री उनके बहुत प्यारे शिष्य रहे । वे अपना स्नेह बहुत खुल कर उनके साथ व्यक्त करते थे ।

पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री अनेकों बार पूज्य डॉ महाराजश्री को किसी साधक को बुलाने को कहते । बिना पता दिए। और महाराजश्री बिना पता जाने सही पते पर सदा पहुँच जाते ।

जरूरत के समय अज्ञात रूप से अनाज की बोरी, पैसों की बोरी साधकों के पास पाई जाती ।

एक बार पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री किसी सिलसिले में एक परिवार से मिले । उन्होंने कहा कि मेरे गुरूदेव यहाँ आए हुए हैं , आप आइएगा ।

पर वे न गए । फिर से कहने पर दम्पति बिना मन के आए सत्संग में । उन महिला ने जब पूज्य प्रेम जी महाराजश्री को देखा तो वे अचेत हो गई !! होश आने पर बताया कि वे उनके सपनों में आ रहे थे कुछ दिनों से । और आज जब देखा तो भगवान नारायण को साक्षात बैठे पाया !! वे नारायण की उपासक थी !!

इसी तरह एक बार दीक्षा के समय एक साधक के मन में आया कि यह पैंट शर्ट वाले गुरू हैं ! माला देने के पश्चात जब पूज्य प्रेमजी महाराजश्री आगे गए तो उन साधक को पूज्य प्रेम जी महाराजश्री के सारे शरीर में अनन्त राम नाम के दर्शन हुए !!

पूज्य प्रेम जी महाराजश्री सपनों में आकर भी दीक्षा दे देते थे !

पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री ने साधकों के रोग स्वयं पर लेने आरम्भ कर दिए । वे साधकों के सपनों में भी आते व मार्ग दर्शन करते थे ।

उनको Parkinson’s की बीमारी हो गई जिससे उनका चलना बंद हो गया । पर वे अपने व्यक्तिगत कार्य स्वयं कर पाते थे ।

वे अपने अंतिम दिन सत्संग में नाचे थे !!

वे आज भी अपने शरीर छोड़ने के कितने वर्षों पश्चात भी साधकों पर सूक्ष्म रूप से कृपा बरसाते हैं ।

यह सब सुनी सुनाई बातें हैं । पूज्य गुरूवर का अतिश्य धन्यवाद कि आज उन्होंने कृपा बरसाई और अपने बारे में बातचीत करवाई ।

चिर ऋणी 🙏🙏🙏

परमेश्वर ऋणी

March 25, 2017

रविवार सत्संग प्रवचन का सारांश

परम पूज्यश्री महाराजश्री के मुखारविंद से

जिसे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए , कोई माँग नहीं है उससे, प्रभु उसके ऋणि हो जाते हैं ।

एक महात्मा हैं । कभी हँसते हैं कभी रोते हैं कभी झूमते हैं । परमेश्वर कि भक्ति में मस्त हैं । प्रभु को है कि इसने मुझसे आज तक कुछ नहीं माँगा । देवताओं को बुलाते हैं , कहते हैं कि जाओ और कुछ कीजिए कि वह मुझसे कुछ माँगे । देवता जाते हैं । कहते हैं प्रभु आप से बहुत प्रसन्न हैं । कहिए, जो चाहेंगे वे देंगे । वे सबकुछ दे सकते हैं ।

महात्मा बोले – मेरे लिए यही बहुत है कि वे मुझ जैसे से प्रसन्न हैं । मुझे कुछ नहीं चाहिए । देवताओं ने फिर कहा । माँगिए न ! वे बोले अच्छा । तो फिर ऐसा कीजिए कि कभी कुछ माँगने की ज़रूरत ही न पड़े ।

देवता ले आए संदेश । प्रभु तो सुन हि रहे थे । वे स्वयं न गए । क्योंकि जाते और वह न कर देता ! मेरा तो नियम है कि मैं जब जाता हूँ तो कुछ देकर आता हूँ ! और यह कुछ चाहता ही नहीं है ।

महात्मा कहते हैं – मुझे मुक्ति के लिए परमेश्वर नेमयह शरीर बक्शा है । अपनी आराधना के लिए यह मन व जिह्वा बक्शी है । इतना कुछ तो आगे दे रखा है । इतना को मैं आगे उसका ऋणि हूँ , और क्या माँगूँ ?

साधक जनों ऐसे लोगों का परमेश्वर सदा ऋणि रहते हैं । जब वे चले जाते हैं तब भी , जब वे स्वयं चले जाते हैं तब भी ।

प्रभु ने जाते समय रुक्मणी या सत्यभामा या अन्य रानियों को याद नहीं किया । विदुर को याद किया । बोले उधो! विदुर की याद आ रही है । भक्तजनों ! उस समय विदुर की याद आनी भी बहुत बडी बात थी । पर कहते – मैंने उसके लिए कुछ नहीं किया । उसने साग खिलाया था । पर मैंने उसके लिए कुछ नहीं किया ।

आज ब्रह्मा जी आए हैं । कहते हैं भगवान कृष्ण से कि आपने सब का हिसाब किताब कर दिया है । पर गोपियों को क्या देकर जा रहे हैं ? उनके लिए क्या किया है !

प्रभु बोले – मैंने यह किया , गोवर्धन उठाया, यह किया, वह किया । ब्रह्मा जी संतुष्ट न हुए – बोले यह कौन सी बड़ी बात है । यह तो आप करते ही । पर गोपियों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं ?

प्रभु जानते थे ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए । वे बोले – मैं उनका ऋणी जा रहा हूँ । उन्होंने मुझे इतना दिया है इतना प्यार दिया है कि मैं उनका ऋणि हूँ । प्यार तो चुकाया नहीं जा सकता !

उन्होंने घर न देखा, मेरे लिए पतियों को न देखा । बस मुझसे प्रेम किया । सब कुछ मेरे लिए छोड़ दिया । हर कार्य वे मुझे ही रिझाने के लिए करती । साज ऋंगार करती तो मेरे लिए करती ! मैं उनका सदा ऋणि ही रहूँगा ।

निष्कामता । निष्काम भक्ति निष्काम कर्म ।

राम बोल राम बोल राम बोल रााााओऽऽऽऽऽम

राम राम राम राम

राम राम जपते रहिएगा

राम राम जपते रहिएगा प्रेम पूर्वक जपते रहिएगा

एक यही साधन है जिससे अभिमान चूर चूर हो सकेगा। और कोई साधन नहीं दिखता ।

अहम् की भेंट

March 25, 2018

आज का चिन्तन

आज परम पूज्यश्री महर्षि स्वामी डॉ विश्वामित्र जी ने कहा कि परमेश्वर को प्रशाद, फल फूल , सामग्री अर्पण तरना गौण है। उसे तो अहम् पसंद है। सबसे उच्च भेंट परमेश्वर को अहम् की भेंट ही पसंद है !

राम नाम होते हुए , सबसे उच्च देव के होते हुए भी हम देवी देवताओं की पूजा करते हैं, जबकि गुरूजन कहते हैं कि राम नाम में ही सब देव विराजमान हैं ! पर सबकी अपनी श्रद्धा ! परमेश्वर व गुरूजन इतने दयालु होते हैं कि हर तरह की पूजा व अर्चना व भाव स्वीकार करते हैं !

पर बात आती है कि परमेश्वर व गुरूजनों को क्या पसंद है! वे बेचारे तो प्रेम से अर्पित किया गया रूखा सूखा बेस्वादा भी स्वीकार कर लेते हैं किन्तु बात आती है उनके पसंद की !

अहम् का भोग ही उन्हें सर्वप्रिय है ! वे बहुत आनन्द पूर्वक उसका भोग स्वीकार करेंगे ! हर उत्सव पर अहम् की भेंट यदि दें तो !!

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि इसकी तैयारी करनी है ! अहम् को भेंट करने की तैयारी ?? क्या तात्पर्य होगा इसका? मेरा अपना कुछ नहीं ! मेरी मैं भी कुछ नहीं ! अपना कुछ भी नहीं ! जो तुझे रीझे ! जो तुझे भाए ! तेरी रजा में मैं खुश ! इन भावों को स्वयं में बसाकर अहम् का त्याग !

यही अर्पण हमें करते जाना है हर उत्सव पर , हर विशेष दिन , हर रोज, ताकि वे देवाधिदेव प्यारों से प्यारे रीझें और हमारा समर्पण सम्पूर्ण हो व जीवन सफल बने !

शुभ व मंगल कामनाएं

राम नाम सब स्वयं देता है

March 25, 2018

आज का चिन्तन

राम नाम साधक, को केवल राम नाम की ही चाह होती है । राम नाम से प्रेम, राम नाम में डूबना, राम नाम से लिप्त रहना व राम नाम में समा जाना । यदि इसके इलावा कुछ चाह करता है तो मानो संसार चाह रहा है ।

किसी ने पूछा कि यह चक्र क्या होते हैं और कुण्डलीनि जागरण के क्या चिह्न होते है ? और इन्हें कैसे प्राप्त करें ? साधना में प्रगति का कैसे पता चले?

शक्ति जागरण होती है और विभिन्न अनुभूतियों का भण्डार लेकर आती है । पर, हमारे गुरूजनों के कहा है कि यह सब राम की देन होती है। राम नाम साधक को इसके पीछे भागना नहीं पडता बल्कि यह सहज में राम नाम से झोली में डलता है।

साधना में प्रगति हो रही है या ध्यान में प्रगति के गुरूजनों ने चिह्न कहें हैं कि संसारी विचार आने बंद हो जाते हैं। राम नाम में मस्ती आने लग जाती है। राम नाम के सिवाय कोई और विचार भाता नहीं है । राम के नाम लेने से प्रेमाश्रु बहने लगते हैं ! हर पल सुरति केवल राम पर ही रहती है ! सो यदि ऐसा होता है तो गुरूजन कहते हैं कि साधना प्रगतिशील हो रही है!

पर यदि कुछ नहीं दिखता तब भी साधना प्रगतिशील ही होती है। राम नाम भीतर कार्य कर रहे होते हैं ! किसी भी तरह का नाम लिया कभी व्यर्थ नहीं जाता । किन्तु निष्काम भाव से प्रेम भाव से लिया गया बहुत माएने रखता है !

राम नाम से प्रीति ही राममय साधना है ! केवल राम रह जाए ही राममय साधना का उद्देश्य है !

शुभ व मंगल कामनाएं

हररोज कुछ नया

March 23, 2018

आज का प्रश्न

क्या साधक वर्ग में विषाद ( depression) अधिक होता है ?

विषाद मतलब , किसी संसारी वस्तु , व्यक्ति , पद, की चाह । साधारण शब्दों में ” मैं ” या ” मेरेपन” की किसी रूप में चाह । अर्जुन को विषाद हो गया था जब वर रक्षभूमि के मध्य में आकर खडा हुआ। अपने प्रियजनों से मोह ! ” मेरे ” हैं वे ! मेरे पन से आसक्ति और उससे उत्पन्न भावनाएं जो पूर्ण न हों वे विषाद लेकर आती हैं । विषाद मानो depression.

सो यदि साधक है या संसारी, यदि उसे संसार से आसक्ति है या मैं या मेरेपन है, तब विषाद होने की सम्भावना हो सकती है।

परम पूज्यश्री महर्षि गुरूदेव ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जिनको depression है वे गीता जी का पाठ करें । गीता जी त्याग सिखाती हैं । मेरे पन का त्याग, मैं का त्याग ।

भगवानश्री कृष्ण ने कहा – अर्जुन ! तू सब धर्मों का त्याग करके एक मेरी शरण में आ जा ! मैं तुझे समस्त दुखों से पार कर दूँगा । विश्वास कर !

विश्वास कर ! हम नहीं करते ! क्यों ऐसा हुआ ? मेरे साथ ही क्यो? हाय! कहीं कुछ हो न जाए ! हाय! सब ठीक रहे! पता नहीं ऐसे दिन कब दूर होंगे …. वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह ! हम मानते ही नहीं कि जो कुछ हो रहा है वह मेरे प्यारे का प्रेम है! हम मानते ही नहीं कि मेरा प्यारों से प्यारा कभी कुछ गलत ही नहीं कर सकता ! हम मानते ही नहीं कि वह हमसे अत्यधिक प्रेम करता है और उसका हमें दुख तिरस्कार या नीचा करने का कोई इरादा नहीं है ! वह तो केवल प्रेम करता है व हर पल ध्यान रखता है!

सो जब हम ऐसा नहीं मानते तो हम उदास रहते हैं और विषाद में चले जाते हैं !

इसका एक और पहलु भी है । जब कोई संसारी इच्छा नहीं होती पर फिर भी मन शून्य होता है तब उस मनस्थिति को गुरूजन कहते हैं कि विषाद नाम नहीं देना चाहिए । वह साधना का एक पड़ाव होता है । उसे depression नहीं कहना चाहिए बल्कि इस समय राम को पुकारना चाहिए !

अपने आप को व्यस्थ रखें । अपने जीवन में दूसरों की सेवा करके या भीतर छिपे गुणों को बाहर लाकर नयापन लाएँ ! रोज कुछ नया करने की सोचें ! इससे मन प्रसन्नचित रहेगा !

शुभ व मंगल कामनाएं