अनूठी होली

गुरूदेव ने खेली अनूठी होली

एक साधक नया था । और अपने महाराज से स्नेह हो गया । महाराजश्री उसके शहर से गुज़र रहे थे आज ! कल होली थी । कुछ समय के लिए रुकना था ।

श्री रामशरणम का निर्माण चल रहा था । मन ही मन आज सोचता जा रहा था कि महाराज के तो कितने साधक हैं क्या उनको कभी मेरी भी याद आती है ?

कल होली थी तो मन ही मन सोचता जा रहा था कि काश मुझे भी रंग लगाते …. बस ऐसे ही विचार लेते हुए पहुँचा । हॉल भर चुका था । बिल्कुल पीछे संगत के बीच में बारी आई ।

परम प्यारे पधारे । प्रणाम किया और स्टेज पर विराजे । एक दो पंक्तियाँ कहीं और बोले – यकीन मानिए साधक जनों आप सब की बहुत याद आती हैं !!!!

बस क्या था ! साधक का तो बाँध ही टूट पड़ा । माँ ने जो रूमाल रखा था पैंट में वह भरता गया उन प्रेम के इज़हार के अश्रुओं से ।

पूज्य महाराजश्री के जाने के पश्चात सब बाहर निकले । तो किसीने कहा कि यह मुँह पर लाल रंग कैसे लग गया !

उसने स्कूटर के शीशे में चेहरा देखा और सच में मुँह पर लाल रंग । जेब में रुमाल निकाल कर देखा तो वह लाल रंग का था जिसका रंग निकल गया आँसुओं से !

सो कितनी प्यारी व अनूठी स्मृति साधक जी ने बाँटी !!

अतिश्य धन्यवाद

5 thoughts on “अनूठी होली

    1. राम राम जी

      बहुत प्यार से राााााओऽऽऽऽऽऽऽऽम को पुकारें । व पुकारते जाएँ ।

      गुरूजन कृपा करेंगे ।

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