स्व सुधार

March 28, 2018

आज का चिन्तन

जीवन में सुधार अपना ही करना है । संत महात्मा कहते हैं कि जितना हम अपना सुधार करते जाते हैं उतना प्रभाव दूसरों पर स्वयमेव ही पडता रहता है । वहाँ समझाने की आवश्यकता नहीं पडती, हमारी आभा ही सारा कार्य कर देती है, हमारे भीतर का गहन सहज मौन ही स्वयमेव सुधार कर देता है । पर बात है स्वयं के सुधार की !

आज के युवा बच्चे बहुत ज्ञानी हैं ! स्वतंत्र सोच वाले, आध्यात्मिक ज्ञान वाले, स्वावलम्बी , बुद्धिजीवी इत्यादि है !

किन्तु हम जैसे बुद्धिजीवी जीवन को सरल बनाने की बजाए जटिल बना देते हैं ! कैसे ? अपने को दूसरे से उत्कृष्ट समझ कर! स्वयं को अधिक समझदार समझने के चक्कर में दूसरे का सुधार दूसरे को सिखाना आरम्भ कर देते हैं ! पर आध्यात्म तो यह नहीं है ! न ही राममय साधना यह है !

आध्यात्म तो सदा स्व सुधार पर बल देता है ! अपने सत्य स्वरूप से मन का एक्य हो जाए , जो कि बुद्धि के बस का नहीं है, यही उद्देश्य होता है ! और जीवन में हम परिस्थितियाँ भी इस कारण आती हैं कि हम स्व सुधार कर सकें !

राममय साधना भी यही करती है ! स्वयं में राम जानकर दूसरों में भी राम देखना ही इसका गंतव्य है !यहां भी बुद्धि का कोई कार्य नहीं रह जाता !

जैसे कि एक बच्चा नए कॉलेज में गया है ! वहाँ की हर बात यदि वह गलत ठहराने लगे व कहे कि सब प्रक्रिया ही गलत है, तो न तो वह खुश रह पाएगा और न ही कुछ सीख कर अपना उत्थान कर पाएगा ! किन्तु यदि वह झुककर सब स्वीकार करके अपने रचनात्मक ढंग से हर चीज को देखेगा व स्व उत्थान उसका लक्ष्य रहेगा, तो वह निश्चित ही सफलता पाएगा !

बात नज़रिए की है ! नजर अपनी ओर ही रखनी है !

शुभ व मंगल कामनाएं

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