राममय साधना व गृहस्थ

March 30, 2018

आज का चिन्तन

परम पूज्यश्री परम श्रेध्य श्री श्री स्वामीजी महाराजश्री की साधना गृहस्थ की साधना है । गृहस्थ में रह कर परमेश्वर प्राप्ति ! ऐसी है उनकी साधना पद्धति । आध्यात्म योग के मूल से भक्ति के रस से परिपूर्ण ! जीवन के हर मौसम में राम से संयुक्त होकर जीवन यापन करना सिखाते हैं !

क्या यह सम्भव है कि जब परिवार वाले सहयोग न दें, जब अपने प्रेम या भाव न समझें, या जब परिस्थितियाँ हम प्रेममय होकर राममय होकर प्रेम विस्तृत कर सकते हैं ? सम्भव है! राम नाम के संग व गुरूचरणी से !

हमारी संस्कृति में गृहस्थ जीवन जहां त्याग व सेवा का प्रतीक है वहाँ प्रेम की नदि बहनी भी अनिवार्य है । हमारे सभी परमेश्वर रूप गृहस्थ हैं । प्रेम से परिपूर्ण ! पर क्या हमारे परिवार वैसे हैं ? क्या वैसा प्रेम हम दे पा रहे हैं ? और क्या सम्भव भी है ऐसा प्रेम ?

हैं ! क्योंकि राम तो प्रेम व शान्ति हैं ! सो कैसे लाएँ वैसा प्रेम?

प्रिय गुरूजन कहते हैं सबसे पहले अपने से प्रेम करके! यह अपने से प्रेम मतलब, जो हमारा सत्यस्वरूप है उससे प्रेम करके! जो हमें अनुपम बताता है उससे प्रेम करके! वह स्वरूप हमारे मन में नहीं बल्कि हमारे हृदय में वास करता है! जब हम उससे प्रेम करने लगते हैं, तो हम देना आरम्भ कर देते हैं बिना कुडकुड के बिना क्रोध के बिना रोष के! पर तभी जब हम हृदय पर केंद्रित हो!

यह सब गुरूजनों की ही सूक्ष्म कृपा से सम्भव है ! अपने गृहस्थ जीवन में प्रेम उँडेलना पर अपने राम से अतिश्य घनिष्ठ रूप से संयुक्त रहतर ! हमारी संस्कृति का मूल है गृहस्थ जीवन । सो जो हमारी जीवन रूपी थाली में हमें परोसा जाता है उसे सकारात्मक रूप से अपने से प्रेम करके दूसरों को प्रेम देना है, सेवा करनी है व अहम् के त्याग की सर्वोच्य उपलब्धी करनी है ! सब गुरूजन सम्भव बनाएँगे !

अतिश्य शुभ व मंगल कामनाएं

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