प्रेम व कृतज्ञता

March 31, 2018

आज की कृतज्ञता

आज के परम आलौकिक परम पुण्यमय दिवस पर रोम रोम से कृतज्ञ ही हो सकते हैं !

गुरूजन कहते हैं कि परमेश्वर की कृपा हुई और संत मिले ! और संत की कृपा हुई तो परमेश्वर का परम प्यारा नाम मिला ! नाम की कृपा से नामी का प्यार व नामी मिलते हैं ! जीवन वसन्त बन जाता है ! बाहरी मौसम कैसे भी हों , इन परम प्यारों के साथ जीवन वसन्त बन जाता है ।

परम पूज्यश्री गुरूदेव कहते हैं कि परमेश्वर अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं करते । उन्हें छिपाना बहुत अच्छा आता है और छिपना भी ।

पर हम समझते नहीं । इज़हार चाहते हैं। जाएज़ भी है ! जब तक प्रेम का इज़हार प्रेमी न करे तब तक कैसे पता चले कि प्रेम कहीं एक तरफ़ा तो नहीं ! यहीं संत आते हैं और वे भेद खोलते हैं कि पगले ! प्रेम की पहल तो प्रभु करते हैं । तुम तो बस बूंद पाकर गोते खाते हो! संत कहते हैं कि वह बहुत तड़पता है आपके लिए ! यह बातें भक्ति में ही हो सकती हैं! ज्ञान तो कहेगा परमेश्वर भावों से पार समता में रहते हैं, उन्हें कुछ लेना देना नहीं । पर प्रेमी भक्त तो मर ही जाए इस बात से!

सो परमेश्वर अपने प्रेम का इज़हार करना आरम्भ करते हैं! कभी अपनी याद देकर, कभी वियोग देकर, कभी संसार से अलगाव देकर, कभी शरीर से अलगाव देकर , कभी प्रियजनों से पीठ देकर ! अब हम कहें कि यह कैसा प्रेम हुआ ? हुआ न ! इन चीज़ों से वह अपनी ओर आकर्षित करता है ! और हमें ले चलता है अपनी खोज पर …. तब देता है अपने हस्ताक्षर चमत्कारों के रूप में या उत्थान के रूप में या अपने अंग की अभिव्यक्ति कर के ! या संत का सदृश्य या अदृश्य प्रेम देकर !

सो उस गुप्त, सूक्ष्म, साक्षात, प्रेम के लिए कृतज्ञता ! उन सुखद पलों के लिए आभार जब उनकी स्मरण रहा! उन पलों के लिए कृतज्ञता जब अपनी ओर और खींचा , उन पलों के लिए आभार जब सब कुछ अपने हाथों में ले लिया !

साधना का सार है ही आभार व प्रेम ! हर पल ऐसे रह सकें यही साधना है !

साष्टांग नमन ओ गुरूतत्व ! साष्टांग नमन !

Leave a comment